Milkipur ka Itihaas: मलिक नाथ पासी के नाम पर कैसे बसा मिल्कीपुर? जाट मुसलमानों की कौम, पाकिस्तान के कराची से भी कनेक्शन
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Milkipur ka Itihaas: मलिक नाथ पासी के नाम पर कैसे बसा मिल्कीपुर? जाट मुसलमानों की कौम, पाकिस्तान के कराची से भी कनेक्शन

Milkipur ka Itihaas: इन दिनों उपचुनाव को लेकर मिल्कीपुर सुर्खियों में है. यह शहर अपने इतिहास और पौराणिक कथाओं के लिए फेमस है. तो आइये जानते हैं इसका इतिहास. 

Milkipur ka Itihaas

Milkipur ka Itihaas: वैसे तो इन दिनों मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए सुर्खियों में है. नेताओं के बीच जुबानी जंग भी खूब तेज है. ऐसे में अक्सर लोग इस शहर के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करना चाहते हैं. अगर आप भी इस शहर के बारे में जानना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए हैं. जी हां, यूपी के अन्य शहरों की तरह मिल्कीपुर का भी एक खूबसूरत इतिहास है. मिल्कीपुर नगर की स्थापना पासी जाति के मलिक नाथ पासी ने की थी, जो प्राचीन काल में कभी यहां रहा करते थे. उन्हीं के नाम पर इस नगर का नाम मिल्कीपुर पड़ा.

क्या है मिल्कीपुर का इतिहास?
दरअसल, पासी हिंदू की एक जाति है, जो मुख्य रूप से यूपी के अवध क्षेत्र में पायी जाती है. थोड़ी संख्या में पासी जाति के लोग पाकिस्तान के कराची शहर में भी पाए जाते हैं. लोग मुख्य रूप से लेखक, या प्रशासनिक अधिकारी होते थे. कुछ लोगों को मुंशी या चपरासी का काम भी दिया गया था. मिल्कीपुर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. जब राजा दशरथ सरयू किनारे शिकार के लिए निकले थे, तब श्रवण को अपना शिकार समझ अनजाने में बाण चला दिया था. 

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कैसे पड़ा शहर का नाम?
श्रवण कुमार अपने माता-पिता को मिल्कीपुर क्षेत्र के बारून बाजार के पास आश्रम पर बैठाकर पानी लाने गए थे, जो आज भी आस्था का केन्द्र है. इस इलाके में अगस्त मुनि की कुटी भी आस्तीकन बाजार में है, आस्तीकन से सटकर ही यमदग्नि का भी स्थान है. जिसका जिक्र शास्त्रों में भी है. 'मलिक नाथ पासी' महान शिव भक्त और मां दुर्गा के भक्त थे. इन्हीं पासी राजा मलिक नाथ के नाम से इसका नाम मलिकपुर रखा गया था. इसके बाद इसका नाम मिल्कीपुर पड़ा.

मुस्लिम समुदाय है मिल्की 
मिल्की यूपी में पाया जाने वाला एक मुस्लिम समुदाय है. उन्हें जाट मुसलमान के रूप में भी जाना जाता है और वे पूरी तरह से अवध क्षेत्र में पाए जाते हैं. कुछ मिल्की पाकिस्तान में भी पाए जाते हैं. मिल्की को उनका नाम इस तथ्य से मिलता है कि उनके पूर्वज एक वर्ग थे, जिन्हें दिल्ली सल्तनत के काल में भूमि का राजस्व मुक्त अनुदान दिया जाता था. उन्हें जमीन पर बसने के लिए प्रोत्साहन के रूप में जमीन का ये अनुदान दिया गया था. उन्नाव जिले में वे जमींदार थे और उस जिले के इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई. वे अवध क्षेत्र में मुंशी, प्रशासक, लेखक, मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश, वकील, मुख्य कार्यकारी अधिकारी और ग्राम लेखाकार भी थे.

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