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Maha kumbh 2025 GK Quiz: साल 2025 में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया जा रहा है. तीनों अमृत स्नान संपन्न हो चुके हैं. कुंभ मेले को सबसे बड़े धार्मिक मेले के रूप में विश्व भर में जाना जाता है. इस मेले में न केवल भारत के बल्कि दुनिया भर के हिंदू श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं, साथ ही अन्य धर्मों के अनुयायी भी इस मेले की रौनक को देखने आते हैं. 2025 में 13 जनवरी से महाकुंभ मेले की शुरूआत हो गई है और 26 फरवरी को अंतिम शाही स्नान किया जाएगा. क्या आप जानते हैं कि, अमृत स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार क्यों होती है ? अगर आपका जवाब नहीं है तो आप सही पेज पर आए हैं.इस मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं, महाकुंभ पर आधारित ये खास क्विज...देखते हैं कि आप कुंभ के बारे में कितना जानते हैं.
शाही स्नान के बाद क्यों होती है अखाड़ों में पुकार की परंपरा
महाकुंभ मेले के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान की परंपरा काफी पुरानी है. इसके अलावा शाही स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार की परंपरा भी पूरी की जाती है. इसके तहत अखाड़े के साधु-संत संन्यासी अपने गुरु को भेंट देते हैं. आइए जानते हैं इस परंपरा के बारे में.
क्या होती है पुकार परंपरा?
अमृत स्नान के बाद अखाड़ों में पुकार की परंपरा महाकुंभ मेले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह पुकार अखाड़ों के साधु-संतों द्वारा की जाती है, जो अपने अखाड़े की पहचान और सम्मान का प्रतीक होती है. अमृत स्नान के बाद, अखाड़ों के साधु-संत अपने अखाड़े की पुकार करते हैं, जो एक प्रकार का सामूहिक आह्वान होता है जो अखाड़े की एकता और शक्ति को दर्शाता है.
कब होती है ये परंपरा?
महाकुंभ मेले में अमृत स्नान करने के बाद पुकार परंपरा पूरी की जाती है.इसके तहत अखाड़े दशनामी गुरुओं के नाम पर भेंट देते हैं. कुंभ मेले के दौरान जब अखाड़े शाही स्नान करके शिविर में लौटते हैं तो सबसे पहले सभी साधु-संतों की तरफ से दशनामी गुरुओं के नाम पर दक्षिणा भेंट देते हैं. इस भेंट में दी जाने वाली रकम में लाखों रुपये लेकर 50 रुपये तक शामिल होता है.
किस स्थान पर होती है ये परपंरा पूरी?
अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे ईष्टदेव की जहां पर मूर्ति स्थापित की जाती है, वहीं पर बैठकर अखाड़े के महंत या प्रमुख पदाधिकारी पुकार की परंपरा को पूरा किया जाता है. सभी अखाड़े इस परंपरा को निभाते हैं.
कितनी बार होती है पुकार?
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव महंत रवींद्रपुरी महाराज ने बताया कि अखाड़ों में शाही (अमृत) स्नान के बाद अखाड़े के शिविर में स्थापित धर्मध्वजा और ईष्ट देव के मंदिर से ही पुकार की परंपरा को पूरा किया जाता है. महाकुंभ में सिर्फ 3 बार ही पुकार होती है.
कितनी दी जाती है भेंट?
पुकार के दौरान अखाड़े से जुड़े संत-महंत और महामंडलेश्वर अपनी तरफ से दशनाम गुरुओं के लिए भेंट देते हैं. पुकार में साधु-संत अपनी क्षमता के अनुसार भेंट देते हैं. यह अखाड़े के कोष में जमा किया जाता है.
पुकारा जाता है भेंट देने वाले का नाम
पुकार के दौरान जो भी भेंट मिलती है, उसमें जिस साधु की तरफ से जितनी भेंट दी जाती है, उसकी जानकारी माइक से एनाउंस करके पूरे शिविर को दी जाती है. इसमें एनाउंस में संत का नाम और उनके द्वारा दी गई रकम के बारे में बताया जाता है.
क्या होती है नगाड़े की भूमिका?
इसके बाद वहीं पर रखे नगाड़े को एक नागा साधु बजाकर उस संत के द्वारा पुकार में दी गई राशि के बदले सम्मान दिया जाता है.
कौन करवाते हैं पुकार?
पुकार की परंपरा सदियों पुरानी है. उसका पालन आज भी किया जाता है. अखाड़े से जुड़े ज्यादातर साधु-संत संन्यासी पुकार करवाते हैं. पुकार के बाद ब्रह्मजली देने की परंपरा है. इसमें आचमन के लिए गंगा जल दिया जाता है. ब्रह्मजली सिर्फ उसी को दी जाती है जिसे अखाड़े की जमात में शामिल माना जाता है.
कौन नहीं हो सकता पुकार में शामिल?
अगर कोई साधु अखाड़े द्वारा किसी प्रकार की सजा पाया हुआ होता है तो उसको पुकार करवाने का अधिकार नहीं होता है और न ही वो पुकार में भेंट दे सकता है.सजा पाने वाले को ब्रह्मजली भी नहीं दी जाती है.
डिस्क्लेमर
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.
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