Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti: आगरा किला में इस बार छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती समारोह दीवान-ए-आम के बजाय जहांगीरी महल के बाहर बने पार्क में मनाई जाएगी. इस दौरान शिवाजी के जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति भी होगी.
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Chhatrapati Shivaji Maharaji Birth Anniversary: ऐसा कोई नहीं होगा जो छत्रपति शिवाजी महाराज की कहानियां या उनकी वीर गाथाएं सुनकर बड़ा न हुआ हो. छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के नाक में दम कर दिया था. आपको बता दें कि आगरा किले के उसी दीवान-ए-आम में, जहां मुगल बादशाह औरंगजेब ने तख्त पर बैठकर छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद करने का आदेश दिया था, इस बार उनकी जयंती नहीं मनाई जाएगी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दीवान-ए-आम के स्थान पर जहांगीरी महल के बाहर स्थित पार्क में समारोह आयोजित करने की अनुमति दी है.
इसका आयोजन 19 फरवरी को होगा, जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत कई मंत्रियों के शामिल होने की संभावना है. आयोजकों ने 2,000 लोगों के लिए अनुमति मांगी थी, लेकिन एएसआई ने केवल 800 लोगों को आमंत्रित करने की अनुमति दी है.
यह समारोह डिजिटल माध्यम से एक करोड़ से अधिक शिव प्रेमियों तक पहुंचेगा, और इसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति भी होगी. आयोजकों द्वारा लगाए गए बड़े एलईडी स्क्रीन पर लोग कार्यक्रम का लाइव प्रसारण देख सकेंगे.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि 2023 में जी-20 प्रतिनिधियों के लिए हुई सांस्कृतिक प्रस्तुति के दौरान दीवान-ए-आम की दीवारों में दरारें आ गई थीं, जिससे इस बार साउंड सिस्टम की आवाज 40 डेसिबल तक रखने की शर्त रखी गई है, ताकि स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे.
कब हुआ था शिवाजी का जन्म?
19 फरवरी 1630 में मराठा परिवार में जन्मे छत्रपति शिवाजी की वीरगाथाएं आज इतिहास के पन्नों को स्वर्णित करता है. आज शिवाजी महाराज की 395वीं जयंती है. महज 15 साल की उम्र में ही शिवाजी महाराज ने पहली बार मुगलों के विरुद्ध आक्रमण किया और 16 साल की उम्र में अपना कब्जा तोरणा किले पर किया. 17 साल की उम्र में रायगढ़ व कोंडला किले को शिवाजी ने जीत लिया.
छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी और औपचारिक रूप से सम्राट बने. उन्हें मराठा गौरव कहा गया. 3 अप्रैल 1680 को गंभीर बीमारी से उनका निधन हुआ, लेकिन उनका योगदान अमर रहा. उनके बाद पुत्र संभाजी ने राज्य संभाला.
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