Rajasthan News: राजस्थान में भजनलाल शर्मा सरकार ने 449 स्कूलों को उनके आसपास के बड़े स्कूलों के साथ विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सरकार के इश फैसले का जमकर विरोध हो रहा है.
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Rajasthan News: राजस्थान में भजनलाल शर्मा सरकार ने 449 स्कूलों को उनके आसपास के बड़े स्कूलों के साथ विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सरकार के इश फैसले का जमकर विरोध हो रहा है. सानिया, मानसी, मोनिका और बुशरा...ये सभी यहां कि पहली पीढ़ी की छात्राएं हैं. उनके लिए उनका स्कूल उनके उज्जवल भविष्य का रास्ता है. सरकार ने इस कदम के पीछे कम दाखिले का कारण बताया है.
सरकार के इस कदम ने पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन का लोगों को मौका दे दिया है. पैरेंट्स भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ हैं. क्योंकि इससे बच्चों, खासकर लड़कियों और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
जोधपुर और बीकानेर में पिछले हफ्ते कई बड़े विरोध प्रदर्शन हुए. इन सबमें बड़ा मुद्दा लड़कियों के स्कूलों को को-एड इंस्टीट्यूट्स में विलय करना था. कई पैरेंट्स को उनकी बेटियों की सुरक्षा और शैक्षिक माहौल को नुकसान पहुंचने का डर हैं. अन्य चिंताओं में कई छात्राओं के लिए घर से स्कूल की दूरी का बढ़ना और स्कूल के मीडियम और सांस्कृतिक वातावरण में बदलाव भी बाधा बन रहा है.
माता-पिता ही नहीं, पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी इस फैसले की निंदा की थी. बीकानेर पश्चिम से भाजपा विधायक जेठानंद व्यास ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को पत्र लिखकर अपने निर्वाचन क्षेत्र में लड़कियों के स्कूल के लिए छूट देने का अनुरोध भी किया है.
सानिया, मानसी, मोनिका और बुशरा....ये लड़कियां सरकारी स्कूलों में पढ़ती हैं, जिनका अब विलय हो जाएगा. जोधपुर के सिवांची गेट इलाके में मानसी के सरकारी गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल का उसी कैंपस में सुबह की शिफ्ट में चलने वाले को-एड स्कूल के साथ विलय होगा. विलय के बाद, 20 कक्षाओं में 1,400 से अधिक बच्चे साथ बैठेंगे. लड़कियों को डर है कि अगर विलय हो गया तो उनके माता-पिता उन्हें आगे पढ़ने नहीं देंगे.
वहीं अजमेर में भी स्थिति काफी अलग है. अंदरकोट में जहां मुसलमानों की आबादी अच्छी-खासी है, वहां कि 12-वर्षीय नेहा चिंता में हैं. क्योंकि उनका 83 साल पुराना उर्दू-मीडियम स्कूल उसी परिसर में स्थित हिंदी-मीडियम स्कूल में विलय हो जाएगा. विलय हो रहे कई स्कूल केवल लड़कियों के हैं, जो मुख्य रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों और अल्पसंख्यक समूहों की सेवा से चलते हैं . इनमें से कोई भी कम या ज़ीरो दाखिलों वाला स्कूल नहीं था.