Mandir Or Maszid: दरगाह के हिंदू ट्रस्टी, कोर्ट के एक फैसले के आधार पर दावा करते हैं कि ये जगह हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों की सामूहिक धरोहर है. श्री मलंग बाबा की मजार या समाधि वाले विवाद के बीच, दो तस्वीरें आपको दिखाना जरूरी है.
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Haji Malang Dargah: दिल्ली स्थित सुल्तानगढ़ी के एक मकबरे के बारे बताया जाता है कि ये भारत की सबसे पुरानी दरगाह है. इस दरगाह में सैकड़ों वर्ष पुराने शिव मंदिर के सबूत आज भी मौजूद हैं. इस दरगाह से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर कुतुबमीनार भी है. लेकिन दावा किया जाता है कि कुतुबमीनार के परिसर में हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेष फैले हुए हैं. भारत में ऐसे सैकड़ों धार्मिक स्थल हैं जहां, हिंदू मंदिरों के अवशेष मिलते रहे हैं. ज्ञानवापी, अयोध्या और मथुरा में मौजूद ये धार्मिक स्थल इसके बड़े उदाहरण रहे हैं. अब ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र की राजनीति को गर्मा रहा है. महाराष्ट्र के ठाणे जिले में अंबरनाथ में मौजूद एक दरगाह को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है.
- माथेरान की पहाड़ी श्रृंखलाओं पर मौजूद पहाड़ी किले मलंग गढ़ की तलहटी में एक धार्मिक स्थल है. जिसको लेकर दो तरह के दावे किए जा रहे हैं.
- मुस्लिम समुदाय का दावा है कि ये जगह एक मज़ार है. उनका दावा है कि इस जगह पर हाजी अब्द-उल-रहमान की मज़ार है, जिन्हें मलंग बाबा कहा जाता है इसलिए ये एक दरगाह भी है. यही नहीं इस स्थल पर दो मज़ारें हैं जिसमें एक मलंग बाबा की बेटी फातिमा की भी है. यानी एक ही जगह पर दो मज़ारें हैं.
- हिंदू समुदाय का दावा है कि इस जगह पर मंदिर है. दावा ये है कि यहां नाथ संप्रदाय के दो हिंदू संतों की समाधियां हैं. जिसमें एक समाधि मलंग बाबा मछेंद्रनाथ और दूसरी समाधि बाबा गोरखनाथ की है.
इस विवाद को लेकर वर्ष उन्नीस सौ बयासी से कोर्ट में अलग-अलग तरह के मामले भी चल रहे हैं. हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक ऐसा बयान दिया, जिसको लेकर ये मुद्दा बहुत गर्म हो गया. हाजी मलंग की दरगाह या मलंग बाबा की समाधि के इस मुद्दे को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष, एक बार फिर से आमने सामने आ गए हैं. एकनाथ शिंदे ने मलंगगढ़ मुक्ति आंदोलन की बात कही. जिससे एक संकेत ये गया है कि इस धार्मिक स्थल को हाजी मलंग की दरगाह वाली पहचान को मिटाकर, मलंग बाबा की समाधि वाली पहचान दिलाने की कोशिश की जाएगी. यानी वो एक तरह से इस स्थल पर हिंदू पक्ष के दावों को मजबूत करने का प्रयास करेंगे.
मलंग एक ऐसा शब्द है, जो कई हिंदू संतों और मुस्लिम सूफियों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. हिंदू इस दरगाह को मंदिर बताते हैं, और यही विवाद का विषय है. दरगाह के हिंदू ट्रस्टी, कोर्ट के एक फैसले के आधार पर दावा करते हैं कि ये जगह हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों की सामूहिक धरोहर है. श्री मलंग बाबा की मजार या समाधि वाले विवाद के बीच, दो तस्वीरें आपको दिखाना जरूरी है.
वैसे आज की मौजूदा स्थिति ये है कि इस धार्मिक स्थल को पूरी तरह से दरगाह के रंग में रंग दिया गया है. 14 पीढ़ियों से इस धार्मिक स्थल का प्रबंधन देख रहे केतकर परिवार का कोई भी सदस्य फिलहाल ट्रस्टी के तौर पर नहीं है. हालांकि हिंदू ट्रस्टी को जल्दी शामिल किए जाने की बात जरूर कही जा रही है. ये मामला अचानक यूंही नहीं उठा है, इसके अपने राजनीतिक कारण भी हैं.
एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दीघे ने वर्ष 1980 में इस मामले को लेकर आंदोलन चलाया था.
उन्हीं का दावा था कि इस इमारत की जगह पर नाथ संप्रदाय के संतों से संबंधित एक पुराना हिंदू मंदिर है जिसे ‘मछिंद्रनाथ मंदिर’ कहा जाता है.
वर्ष 1996 में वो 20 हजार शिवसैनिक लेकर मंदिर जाने पर अड़ गए थे.
उस वर्ष तत्कालीन सीएम मनोहर जोशी और उद्धव ठाकरे भी पूजा में शामिल हुए थे.
तभी से मलंगगढ़ का मछेंद्रनाथ मंदिर या कहें कि हाजी मलंग बाबा दरगाह, शिवसेना के लिए एक बड़ा मुद्दा है.
हालांकि पिछले काफी समय से ये मुद्दा शांत था. लेकिन वर्ष 2024 चुनाव होने में करीब 3 महीने हैं, ऐसे में इस विवाद के दोबारा उठने के पीछे एक वजह चुनाव भी है. जिस मुद्दे पर महाराष्ट्र में बवाल मचा हुआ है. हमने उस मंदिर या दरगाह पर जाने का फैसला किया. हमने ये भी तलाशने की कोशिश की, कि जिस जगह को मंदिर या दरगाह कहा जा रहा है, उस जगह का इतिहास क्या कहता है. यही नहीं हमने वहां के लोगों से भी बात की और इस मुद्दे से जुड़े कुछ ऐसे लोगों से भी बात की जो मंदिर या दरगाह होने का दावा कर रहे हैं.
मंदिर या मस्जिद के एक विवाद का अंत हमने देखा
क्या अब हम मंदिर या दरगाह के एक नए विवाद की शुरुआत देखने जा रहे हैं?
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के मलंगगढ़ का धार्मिक स्थल...हिंदू-मुस्लिम विवाद का नया विषय बन गया है.
ये धार्मिक स्थल किसी हाजी की दरगाह है...या किसी संत का मंदिर...विवाद इस विषय पर है.
ZEE न्यूज की टीम...इस धार्मिक स्थल की सच्चाई और इसके विवाद की स्थिति समझने के लिए उस जगह पहुंची,
जो इस विवाद का इपिसेंटर है..
पहाड़ी की तलहटी में बने इस धार्मिक स्थल तक पहुंचने के लिए करीब 4 किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है.हर साल इसी रास्ते हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग, पूजा और इबादत करने पहुंचते हैं. इस रास्ते की एक खास बात है. दरगाह बताई जाने वाले धार्मिक स्थल के रास्ते में कई मंदिर हैं. जो हिंदू इस दरगार को मछेंद्रनाथ मंदिर मानकर जाते हैं, वो रास्ते में पड़ने वाले सभी मंदिरों में माथा टेकते हैं.
हमें इस पूरे पहाड़ी रास्ते पर वर्षों पुराने मंदिर नजर आए. एक जगह पर एक मजार भी दिखी, जो एक मंदिर की दीवार से सटी हुई दिखाई दी. हमने यहां कुछ श्रद्धालुओं से भी बात की, जो हाजी मलंग दरगाह को मछेंद्रनाथ मंदिर मानते हुए, पूजा अर्चना के लिए जा रहे थे.
दरगाह से पहले हमें एक ऐसा मंदिर भी नजर आया है, जिसके बारे में स्थानीय लोगों का दावा है कि ये मंदिर भी सैकड़ों वर्ष पुराना है. हाजी मलंग बाबा की दरगाह कहें या फिर बाबा मछेंद्रनाथ का मंदिर, दोनों को मानने वाले, इस धार्मिक स्थल पर कई दशकों से आ रहे हैं. कुछ लोग इस हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी मानते हैं.
जल्दी ही हम दरगाह और मंदिर कहे जा रहे इस धार्मिक स्थल पर पहुंच गए. हमने यहां पर दोनों धर्मों के लोगों को देखा. यहां दो मज़ारें या समाधि थीं. मुस्लिम पक्ष का दावा है कि इसमें बड़ी वाली मज़ार यमन से आए हाजी अब्द उल रहमान की है, जो हाजी मलंग के नाम से मशहूर थे. दूसरी समाधि नल राजा के बेटी जिन्हें हाजी मलंग ने गोद लिया था, उनकी है. इन्हें फातिमा मां कहा जाता है. ये दोनों दावे 1882 में छपे बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गजट से मिलती हैं. इसके अलावा भी कई दावे मुस्लिम पक्ष करता है
हालांकि हिंदू पक्ष इसको लेकर अलग दावे करता है. उनका कहना है कि हाल फिलहाल कुछ वर्षों में इस जगह पर पूरी तरह से दरगाह में बदल दिया गया है. उनका कहना है कि कभी किसी वक्त में यहां पर दोनों धर्मों से जुड़े पवित्र चिन्ह हुआ करते थे, लेकिन धीरे धीरे हिंदू प्रतीकों साजिश के तहत हटा दिया गया.
हिंदू पक्ष अपने दावे को ये कहकर मजबूत बताता है, कि दुनिया की किसी भी मज़ार पर चंदन का लेप या भस्म वगैरह नहीं लगाई जाती, ना ही मज़ार की पालकी यात्रा निकली जाती है. लेकिन बाबा मछेंद्रनाथ के मंदिर को दरगाह बताने वाले यही पूजा पद्धति अपनाते आ रहे हैं.
ये विवाद भले ही राजनीतिक रूप से उठा हो,लेकिन ऐसा नहीं है ये विवाद, कभी विवाद नहीं था. हाजी मलंग बाबा की मज़ार या मलंग बाबा मछेंद्रनाथ का मंदिर, इस सवाल का जवाब, कई वर्षों से तलाशने की कोशिश की जाती रही है. इसको लेकर कोर्ट में अलग-अलग केस भी चल रहे हैं. इस मुद्दे से हिंदू-मुस्लिम को कितना लाभ या नुकसान होगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता,लेकिन इससे राजनीतिक लाभ जरूर लिया जाएगा, ये तय है.