Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुख्य न्यायाधीश (CJI) की कार्यकारी नियुक्तियों में भागीदारी पर सवाल उठाते हुए कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं के समन्वय की जरूरत पर जोर देने की बात कही. उनका यह बयान ऐसे समय में आया जब जल्द ही नए चुनाव आयुक्त की सिलेक्शन होने वाला है.
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Vice President Jagdeep Dhankhar: जल्द ही देश को नया चुनाव आयुक्त मिलने वाला है, इसके लिए 17 फरवरी को बैठक भी होनी है लेकिन उससे पहले उपराष्ट्रपित जगदीप धनखड़ ने बड़ा बयान दे दिया है. किसी भी तरह के एग्जीक्यूटिव अपॉइंटमेंट में देश के चीफ जस्टिस को हिस्सा नहीं लेना चाहिए. धनखड़ ने शुक्रवार को सवाल उठाया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के निदेशक या किसी अन्य कार्यकारी नियुक्ति के सलेक्शन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं.
भोपाल में नेशनल जुडिशियल एकेडमी में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,'न्यायिक सक्रियता और अति-सक्रियता (ओवररीच) के बीच की रेखा बहुत पतली होती है, लेकिन इसका लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है. यह पतली रेखा लोकतंत्र और तानाशाही के बीच की दूरी को दर्शाती है.'
VIDEO | Addressing a gathering at National Judicial Academy in Madhya Pradesh's Bhopal, Vice-President Jagdeep Dhankhar (@VPIndia) said: "To stir your minds, how can in a country like ours or in any democracy, by statutory prescription, Chief Justice of India participates in the… pic.twitter.com/2BUvcBfp5O
— Press Trust of India (@PTI_News) February 14, 2025
उप राष्ट्रपति धनखड़ ने आगे आगे कहा,'क्या कोई कानूनी आधार हो सकता है कि चीफ जस्टिस को किसी कार्यकारी नियुक्ति में शामिल किया जाए? यह परंपरा इसलिए बनी क्योंकि उस समय की कार्यपालिका ने एक न्यायिक फैसले के आगे झुककर इसे स्वीकार कर लिया, लेकिन अब इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है.' धनखड़ ने कहा कि आज के समय में 'न्यायपालिका के ज़रिए कार्यपालिका की भूमिका निभाने की घटनाएं अक्सर देखी और चर्चा की जा रही हैं.'
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उन्होंने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाए रखने के लिए संस्थानों को मतभेद करने चाहिए, लेकिन बिना बाधा डाले असहमति व्यक्त करनी चाहिए. धनखड़ ने आगे कहा,'लोकतंत्र संस्थागत अलगाव पर नहीं, बल्कि समन्वित स्वायत्तता (coordinated autonomy) पर आधारित होता है.' उन्होंने यह भी कहा कि जब कार्यकारी भूमिकाएं चुनी हुई सरकार के ज़रिए निभाई जाती हैं तो उनकी जवाबदेही जनता और संसद के प्रति होती है, लेकिन अगर कार्यपालिका की भूमिका किसी और को दे दी जाती है, तो फिर जवाबदेही तय करना मुश्किल हो जाता है.
धनखड़ ने यह भी कहा कि संविधान सभा ने लोकतंत्र के लिए जो उच्च मानक तय किए थे, वे आज कमजोर पड़ रहे हैं. उन्होंने पूछा,'हम लोकतंत्र के मंदिरों (संसद) में हंगामा और बाधाएं कैसे स्वीकार कर सकते हैं? जनता के प्रतिनिधियों को अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए. राष्ट्रीय हित को दलगत राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और टकराव के बजाय सहमति का मार्ग अपनाना चाहिए.'