Devra Yatra in Rudraprayag: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में कुंभ मेले के आयोजन जैसा ही मां इन्द्रासनी देवी की देवरा यात्रा निकाली जाती है. हर बार की तरह इस बार भी भक्तों का गुलजार होने लगा है.
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Rudraprayag Hindi News/हरेंद्र नेगी: रुद्रप्रयाग के जखोली विकासखंड की फुटगर पट्टी में स्थित मां इन्द्रासनी देवी का दो माह का देवरा भ्रमण संपन्न हो चुका है. मां इन्द्रासनी, जो बैष्णवी स्वरूप में पूजी जाती हैं, 7 फरवरी को अपने गर्भगृह में विराजमान होंगी. इस मौके पर 9 दिवसीय महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.
12 वर्ष में होती है भव्य देवरा यात्रा
मां इन्द्रासनी देवी की देवरा यात्रा हर 12 वर्ष में आयोजित होती है, ठीक वैसे ही जैसे कुंभ मेले का आयोजन होता है. इस दौरान माता पूरे क्षेत्र का भ्रमण करती हैं, गांव-गांव जाकर अपने भक्तों का हाल-चाल लेती हैं और क्षेत्र की खुशहाली का आशीर्वाद देती हैं. इस बार भी माता ने अपने भक्तों की कुशलक्षेम पूछी और 9 दिन के महायज्ञ के बाद मंदिर में वापस विराजमान होंगी.
मां इन्द्रासनी की अद्भुत विशेषताएं
मां इन्द्रासनी का भव्य, दिव्य और अलौकिक मंदिर कंडाली गांव में स्थित है. यहां माता के साथ-साथ उनके रक्षक क्षेत्रपाल देवता और स्वयं भगवान भोलेनाथ का भी मंदिर है.
बैष्णवी स्वरूप: माता एक शुद्ध वैष्णवी देवी के रूप में पूजी जाती हैं.
सोना नहीं, पीले वस्त्र प्रिय: मां को स्वर्णाभूषणों का शृंगार पसंद नहीं है, वे केवल पीले वस्त्र और पीले फूल ही स्वीकार करती हैं.
श्रीफल नहीं चढ़ता: अन्य देवी-देवताओं की पूजा में नारियल (श्रीफल) चढ़ाया जाता है, लेकिन मां इन्द्रासनी के मंदिर में यह निषेध है.
मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी: मां इन्द्रासनी को मनोकामना देवी भी कहा जाता है. जो भी भक्त सच्चे मन से माता से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.
सूर्यप्रयाग में गंगा स्नान के बाद होगी गर्भगृह में वापसी
देवरा यात्रा के समापन के बाद माता ने सूर्यप्रयाग में गंगा स्नान किया, जिसके पश्चात मंदिर में 9 दिन तक अखंड महायज्ञ किया जा रहा है. इस अनुष्ठान के पूर्ण होने पर 7 फरवरी को मां इन्द्रासनी को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा.
श्रद्धालुओं के लिए यह एक दुर्लभ और पवित्र अवसर है, जिसमें वे अपनी आराध्य देवी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. मंदिर के महंतों के मुताबिक यह यात्रा और यज्ञ क्षेत्र की सुख-समृद्धि का प्रतीक है, और इससे समूचे इलाके में शुभता और शांति बनी रहती है.
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