Republic Day 2025: भारतीय संविधान के शिल्पकार कहे जाने वाले डॉ. अंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को दिए अपने एक भाषण में कहा - "संविधान अंतत: बुरा साबित होगा..." उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसकी सफलता उन पर निर्भर करती है, जो इसे क्रियान्वित करेंगे.
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Constitution of India: भारत के संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर को "संविधान के शिल्पकार" के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र और संविधान को सशक्त आधार प्रदान किया. लेकिन 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में दिए अपने ऐतिहासिक भाषण में डॉ. अंबेडकर ने एक महत्वपूर्ण और चेतावनीपूर्ण बयान दिया. उन्होंने कहा, "संविधान अंततः बुरा साबित होगा, यदि वे लोग, जो इसे लागू करने वाले हैं, बुरे साबित होंगे."
अंबेडकर का दृष्टिकोण और संदर्भ
डॉ. अंबेडकर का यह बयान संविधान के महत्व और उसकी सफलता के लिए आवश्यक शर्तों को उजागर करता है. उनके अनुसार, संविधान एक निष्क्रिय दस्तावेज है, जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता. इसे क्रियान्वित करने वाले लोग ही तय करते हैं कि यह समाज और देश के लिए कितना प्रभावी होगा. उन्होंने कहा कि किसी भी संविधान की सफलता का आधार उस देश की राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक क्षमता और नैतिक मूल्यों पर निर्भर करता है.
संविधान के क्रियान्वयन पर जोर
डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा को संबोधित करते हुए चेताया कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर इसे लागू करने वाले नेता, प्रशासक और जनता अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहते हैं, तो संविधान की पूरी शक्ति व्यर्थ हो जाएगी. उन्होंने कहा कि "जो लोग संविधान को लागू करेंगे, उनके आचरण और नैतिकता पर देश की प्रगति निर्भर करेगी."
चेतावनी का अर्थ और प्रासंगिकता
अंबेडकर का यह बयान एक गहरी समझ और अनुभव का परिणाम था. वे जानते थे कि
1. संविधान को लागू करने वाले लोगों का चरित्र: अगर नेता और अधिकारी ईमानदार, निष्ठावान और समाज के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे, तो संविधान की शक्ति कमजोर हो जाएगी.
2. लोकतंत्र के लिए नागरिकों की जिम्मेदारी: उन्होंने जनता को भी आगाह किया कि अगर नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों को सही ढंग से नहीं निभाएंगे, तो संविधान विफल हो सकता है.
आज के संदर्भ में संदेश
डॉ. अंबेडकर की यह चेतावनी आज भी प्रासंगिक है. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कोई भी संविधान अपने आप देश को बदलने में सक्षम नहीं है.
अगर प्रशासन में भ्रष्टाचार हो, राजनीतिक प्रणाली में नैतिकता की कमी हो, या समाज में समानता और न्याय के प्रति उदासीनता हो, तो संविधान की भावना और उद्देश्य कमजोर हो जाएंगे.