Sindoor Khela 2024: क्या होता है सिंदूर खेला? बनारस समेत यूपी के शहरों में आज दुर्गा पूजा पर होगा आयोजन
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Sindoor Khela 2024: क्या होता है सिंदूर खेला? बनारस समेत यूपी के शहरों में आज दुर्गा पूजा पर होगा आयोजन

Sindoor Khela 2024: दशमी तिथि के साथ नवरात्र पर्व का समापन होने वाला है. इसे दशहरा या विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन बंगाली समुदाय के लोग सिंदूर खेला की रस्म अदा करते हैं. अब ये परंपरा बंगाल से निकलकर यूपी के कई शहरों में शुरू हो गई है. पढ़िए इसके बारे में सबकुछ.

Sindoor Khela 2024

Sindoor Khela 2024: विजयादशमी...जिसे दशहरा भी कहते हैं. इस दिन देशभर में अलग ही रौनक देखने को मिलती है. खास तौर पर बंगाल में नवरात्र के अगले दिन मनाए जाने वाले दशहरा को अलग ही नजारा देखने को मिलता है. बंगाली समुदाय इस दिन सिंदूर खेला की रस्म अदा करता है. ये रस्म इस समुदाय की परंपरा का अहम हिस्सा है, लेकिन अब ये परंपरा बंगाल से निकलकर देश के अलग-अलग हिस्सों में भी पहुंच गया है. ऐसे में इस बार यूपी के वाराणसी समेत कई शहरों में सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाएगी. वाराणसी की बात करें तो इस बार जहां भव्य पंडाल बनाए गए हैं, वहीं सिंदूर खेला भी खूब सुर्खियों में है. 

शहर में 12 आर्टिफिशियल कुंड
वाराणसी में आज शाम से मां दुर्गा का विसर्जन होने लगेगा. इस बार गंगा समेत किसी भी नदी में प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं होगा. ऐसे में मां दुर्गा के विसर्जन को लेकर शहर में 12 आर्टिफिशियल कुंड बनाए गए हैं. जिन जगहों पर ये कुंड बनाए जाएंगे उनमें लक्ष्मी कुंड, मंदाकिनी कुंड, ईश्वरगंगी, शंकुलधारा, पहड़िया तालाब, गणेशपुर तालाब, विश्वसुंदरी पुल के पास कृत्रिम कुंड, रामनगर, मछोदरी, भिखारीपुर पोखरा, लहरतारा तालाब और खड़गपुर तालाब शामिल हैं. नगर निगम ने इसकी पूरी तैयारी की हुई है. इस कुंड के पास बैरिकेडिंग भी की गई है. इसके अलावा जल पुलिस एवं SDRF की टीम अलर्ट है. मां दुर्गा की झांकी जिन मार्गो से निकाली जाएगी उन सभी मार्गों के बीच पड़ने वाले पौधों की छंटाई की गई है. शहर में कुल 648 पंडाल बनाया गया हैं.

क्या होता है ये रस्म?
विजयादशमी को बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाते हैं. इसके साथ ही माता रानी के पंडालों में मौजूद लोग एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर दूर्गा पूजा की शुभकामनाएं देते हैं. जिसके साथ इस अनोखी रस्म का आगाज हो जाता है. इस दौरान महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती है और धूमधाम से दुर्गा पूजा का समापन करती हैं. यहीं परंपरा सिंदूर खेला के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर है. ऐसी मान्यता है कि 10 दिनों के लिए मां दुर्गा अपने मायके आती हैं. इस मौके पर उनके स्वागत के लिए बड़े-बड़े पंडालों में मां की प्रतिमा स्थापित होती है. दशमी तिथि के दिन सिंदूर की होली खेल कर मां दुर्गा को विदा किया जाता है.

क्यों मनाई जाती है ये परंपरा?
जहां देशभर में दशहरे के पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, वहीं बंगाल में इस त्योहार को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. जिसकी शुरूआत नवरात्र की पंचमी तिथि से होती है और दशमी तिथि को समाप्त होती है. ऐसे में यहां दशहरे को विजयदशमी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन सिंदूर खेला नाम की परंपरा निभाई जाती है. ये बंगालियों की एक खास परंपरा है, जिसे हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने एक शीशा रखा जाता है, जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं. मान्यता है कि इस शीशे में घर में सुख और समृद्धि का निवास होता है. बंगाली मान्यताओं के हिसाब से यह रस्म विवाहित महिलाओं के लिए है, जो पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाती है. ऐसा माना जाता है कि ये रस्म सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्य लाता है और उनके पतियों की उम्र भी बढ़ाता है. यहीं वजह है कि इस उत्सव का सुहागिन महिलाएं सालभर इंतजार करती हैं.

यूपी में कहां-कहां होगा आयोजन?
बंगाली समुदाय की ये अनोखी परंपरा अब उत्तर प्रदेश में भी शुरू हो गई है. इस बार इस परंपरा को यूपी के वाराणसी, गोरखपुर, कुशीनगर, कानपुर समेत कई शहरों में निभाई जाएगी. इसके लिए शहरों में खास इंतजाम किए गए हैं. माना जा रहा है कि सिंदूर खेला के आयोजन में महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगी. इसके बाद मां दुर्गा को भोग अर्पित किया जाएगा और फिर प्रसाद भक्तों में बांटा जाएगा.

दुर्गा विसर्जन के शुभ संयोग
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो 12 अक्टूबर को दुर्गा विसर्जन के 3 शुभ संयोग बन रहे हैं. आज सुबह में 05 बजकर 25 मिनट से श्रवण नक्षत्र शुरू है, जो 13 अक्टूबर को प्रात: 4 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. फिर उसी दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह में 06 बजकर 20 मिनट से बन रहा है, जो 14 अक्टूबर को प्रात: 04 बजकर 27 मिनट तक है. इसके अलावा रवि योग भी बन रहा है, जो दुर्गा विसर्जन को पूरे दिन रहेगा.

जानें दुर्गा विसर्जन का मंत्र
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। 
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।। 

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