बागपत का पुरा महादेव मंदिर भगवान महादेव के प्राचीन मंदिरों में से एक है. मान्यता है कि यहां भगवान महादेव से मांगी गई हर मुरादें पूरी होती हैं. महादेव का यह मंदिर बागपत रेलवे स्टेशन से मात्र 23 किलोमीटर दूर है.
इसे परशुरामेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि अपने पिता के कहने पर परशुराम ने एक ही झटके में अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया था.
इसके बाद उन्हें मां की हत्या की ग्लानि अंदर से होने लगी थी. इस पर भगवान परशुराम ने आत्मशांति के लिए कजरी वन के करीब शिवलिंग की स्थापना कर महादेव की घोर तपस्या की थी.
पौराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम की घोर तपस्या से खुश होकर महादेव ने उनकी मां रेणुका को पुन: जीवित कर दिया था. पुरा महादेव मंदिर को लेकर एक और मान्यता भी है.
एक अन्य मान्यता है कि एक बार रुड़की स्थित कस्बा लंढौरा की रानी अपने लाव लश्कर के साथ कहीं जा रही थीं. जैसा ही उनका काफिला इस स्थान पर पहुंचा हाथी अचानक रुक गया.
रानी की तमाम कोशिशों के बावजूद भी हाथी हिलने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर रानी ने उस स्थान की खुदाई करवाई तो वहां एक शिवलिंग मिला. इसके बाद रानी ने महादेव का मंदिर बनवाया.
यही शिवलिंग और इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है. इसी पवित्र स्थल पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी तपस्या की थी.
हर साल सावन के महीने और महाशिवरात्रि पर लाखों भक्त पुरा महादेव परशुरामेश्वर मंदिर पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं. सावन में भी भक्तों की भारी भीड़ जुटती है.
बागपत के साथ ही मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, दिल्ली और शामली के भक्त इस मंदिर में पहुंचकर महादेव के दर्शन करते हैं. साथ ही जलाभिषेक भी करते हैं. दिल्ली-नोएडा और गाजियाबाद से इसकी दूरी 70 से 80 किलोमीटर है.
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