Holi 2023 : उत्‍तराखंड के 100 से ज्‍यादा ऐसे गांव जहां आज भी नहीं मनाई जाती होली, कारण जान आपभी हो जाएंगे हैरान
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Holi 2023 : उत्‍तराखंड के 100 से ज्‍यादा ऐसे गांव जहां आज भी नहीं मनाई जाती होली, कारण जान आपभी हो जाएंगे हैरान

Holi 2023 : उत्‍तराखंड में पिथौरागढ़ से धारचूला और मुनस्‍यारी के 100 से गांवों में कई वर्षों से होली का त्‍योहार नहीं मनाते. यहां के स्‍थानीय लोग पहाड़ों को अपना भगवान मानते हैं. लोगों की मान्‍यता है कि होली पर रंग खेलेंगे तो इनके भगवान नाराज हो सकते हैं. 

Holi 2023 : उत्‍तराखंड के 100 से ज्‍यादा ऐसे गांव जहां आज भी नहीं मनाई जाती होली, कारण जान आपभी हो जाएंगे हैरान

Holi 2023 : एक तरफ जहां पूरे देश में भी होली की धूम है. वहीं, दूसरी तरफ उत्‍तराखंड में पिथौरागढ़ से धारचूला और मुनस्‍यारी के 100 से ज्‍यादा ऐसे गांव हैं जहां होली नहीं मनाई जाती. यहां के लोगों ने रंगों के इस पर्व से दूरी बना ली है. खास बात यह है कि होली न मनाने का कारण जानकर हर कोई हैरान हो सकती है. 

पहाड़ों को गंदा नहीं करना चाहते लोग 
दरअसल, उत्‍तराखंड की सुंदरता पहाड़ों की वजह से ही है. यहां के लोग पहाड़ को अपना भगवान मानते हैं. ऐसे में उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़, धारचूला और मुनस्‍यारी के 100 से अधिक गांव के लोग आज भी होली नहीं मनाते हैं. इन गांव के लोगों का कहना है कि हमारे भगवान इन पहाड़ों पर बसे हैं. ऐसे में रंगों के दाग से इन्‍हें (पहाड़ों) को गंदा नहीं करना चाहते. 
 
यह है मान्‍यता 
धारचूला के बरम गांव निवासी नरेंद्र सिंह ने कहा कि यहां के स्‍थानीय लोग छिपला केदार (Chipla Kedar) की पूजा करते हैं. लोगों की मान्‍यता है कि यहां कभी 7 सरोवर स्थित थे, जिनके सूखने से अब यह क्षेत्र पहाड़ी घाटी के रूप में बदल गया है. स्‍थानीय लोगों का मानना है कि इन पहाड़ों पर देवी-देवता निवास करते हैं. यहां जनजातीय लोग सामूहिक पूजा करते हैं. ऐसे में होली के रंग से पहाड़ गंदे न हो जाएं, इसलिए यहां वर्षों से होली नहीं मनाई जाती है. 

हर साल में केदार यात्रा का आयोजन 
वहीं, यहां हर 3 साल में छिपला केदार यात्रा का आयोजन किया जाता है. यह 14 किलोमीटर की यात्रा दुर्गम होती है. यह यात्रा स्‍थानीय लोगों में काफी लोकप्रिय है. इस यात्रा के दौरान स्‍थानीय लोग छिपला केदार कुंड की परिक्रमा करते हैं. साथ ही यहां डुबकी भी लगाते हैं. इस कुंड को गुप्‍त कैलाश भी कहा जाता है. यहां करीब 16000 फीट ऊंचाई पर बसा है. नरेंद्र सिंह का कहना है कि रंगों से यह मैला हो सकती है. 

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