डॉ पल्लवी के मॉडल से किसानों को अब मिलेगा अपनी पराली का दाम, नहीं पड़ेगी उसे जलाने की जरूरत
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डॉ पल्लवी के मॉडल से किसानों को अब मिलेगा अपनी पराली का दाम, नहीं पड़ेगी उसे जलाने की जरूरत

डॉ पल्लवी के इस प्रोडक्ट से बड़ा फायदा यह रहेगा कि किसान पराली जलाने से बच जाएंगे और पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा....

डॉ पल्लवी के मॉडल से किसानों को अब मिलेगा अपनी पराली का दाम, नहीं पड़ेगी उसे जलाने की जरूरत

नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी की बेटी डॉ पल्लवी अग्रवाल ने पराली में गोबर और ट्राइकोडरमा मिलाकर एक ऐसा उत्पाद तैयार किया है, जिसके उपयोग से मिट्टी की संरचना उपजाऊ बनेगी. साथ ही पैदा होने वाली उपज भी गुणवत्ता पूर्ण होगी. पराली से तैयार इस प्रोडक्ट का नाम हाइग्रो स्कोपिक पिलेट दिया गया है. डॉ पल्लवी ने अब अपने इस मॉडल को डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी (डीएसटी) को स्वीकृत के लिए भेज दिया है.

डॉ पल्लवी के इस प्रोडक्ट से बड़ा फायदा यह रहेगा कि किसान पराली जलाने से बच जाएंगे और पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा. साथ ही इस पराली से हाइग्रोस्कोपिक पिलेट बनाकर किसान इसे बाजार में भी बेच सकेंगे, जिससे किसानों को अपनी पराली के दाम भी मिल जाएंगे. डॉ पल्लवी का यह प्रोजेक्ट करीब-करीब पूरा हो चुका है और जल्द ही वह इसे पेटेंट भी कराएंगी.

किसान बाजार में भी बेच सकेंगे
बाराबंकी के आवास विकास कॉलोनी में रहने वाली और राष्ट्रीय वनस्पतिक शोध संस्थान (एनवीआरआई) लखनऊ की प्रोजेक्ट वैज्ञानिक डॉ पल्लवी ने बताया कि साल 2020 में उन्होंने पराली पर काम करना शुरू किया था. उन्होंने पराली पीसकर उसमें गोबर और ट्राइकोडरमा मिलाकर उनकी गोलियां बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसे उन्होंने हाइग्रोस्कोपिक पिलेट नाम दिया. उन्होंने बाराबंकी के सतावां और भानमऊ गांव के 10 से ज्यादा किसानों के खेतों पर अपने इस प्रोडक्ट को डालकर उसका परीक्षण भी किया है, जिसका उम्मीद से काफी बेहतर परिणाम भी देखने को मिला. खुद किसान डॉ पल्लवी के प्रोडक्ट को काफी फायदेमद बता रहे हैं. इस हाइग्रोस्कोपिक पिलेट को किसान ऑर्गेनिक खाद के रूप में प्रयोग करके न केवल अच्छी उपज पा सकते हैं, बल्कि इससे खेतों में सूखे की स्थिति से भी निजात मिलेगी. इससे सबसे बड़ा फायदा ये रहेगा कि किसान पराली जलाने से बच जाएंगे और पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा. इस पराली से हाइग्रोस्कोपिक पिलेट बनाकर किसान इसे बाजार में भी बेच सकेंगे.

अमेरिका में करेंगी शोध
उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से इसे इसी स्टेज पर रोक देने की गुजारिश की है, क्योंकि पराली पर शोध कर उसे किसानों के लिए उपयोगी बनाने में जुटी डॉ. पल्लवी अग्रवाल अब खट्टे फलों के उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने पर शोध करेंगी. उनको अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने रिसर्च करने के लिए बुलाया गया है. बायोसाइन्सेस विषय से पीएचडी कर चुकी डॉ. पल्लवी, दो साल अमेरिका में रहकर खट्टे फलों खासकर संतरे पर शोध करेंगी और नई वेरायटी विकसित करेंगी, ताकि खट्टे फलों की गुणवत्ता बनी रहे. फिर वापस अपने देश आकर वह उस वैराइटी की खेती को प्रोत्साहित करेंगी.

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों ने महसूस किया कि उनके देशों में पाए जाने वाले खट्टे फलों में किसी बीमारी के चलते उत्पादकता कम हो रही है, जिसके चलते उत्पादकों को काफी घाटा हो रहा है. साल 2011 में गेट (GATE) और साल 2012 में CSIR-UGC NET क्वालीफाई कर चुकी डॉ. पल्लवी के मुताबिक हमारे देश के नागपुर में भी संतरों के उत्पादन में भी इसका असर पड़ रहा है. ऐसे में डॉ पल्लवी विदेश में रहकर जब खट्टे फलों खासकर संतरे पर शोध करेंगी और नई वेरायटी विकसित करेंगी तो वह वापस अपने देश आकर उस वैराइटी की खेती को प्रोत्साहित करेंगी, जिससे खट्टे फलों का उत्पादन और उसकी गुणवत्ता बढ़ेगी.

पति ने किया हमेशा प्रोत्साहित
वहीं, डॉ पल्लवी एक शादीशुदा महिला हैं और उनकी एक छोटी बेटी भी है. डॉ पल्लवी के पति हिमांशु गुप्ता बैंक ऑफ बड़ौदा में कार्यरत हैं. डॉ. पल्लवी अपनी इस सफलता का सबसे बड़े श्रेय अपने पति को देती हैं. उनका कहना है कि शादी के बाद अक्सर महिला वैज्ञानिकों के करियर में फुल स्टॉप लग जाता है, लेकिन उनके पति ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया. जिससे आज वह इस मुकाम पर पहुंच सकी हैं. साथ ही डॉ. पल्लवी अग्रवाल अपने माता-पिता और सास-ससुर को भी अपनी सफलता में भागीदार मानती हैं. उनका कहना है कि उनके मायके और ससुराल से उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया गया. जिससे उन्हें काफी हिम्मत मिली, जिससे आज वह यह सफलता हासिल करनें में कामयाब हो सकी हैं.

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