सुल्तानपुर की पूर्व बीजेपी सांसद मेनका गांधी को हाईकोर्ट से लगा झटका, विरोधी नेता को राहत
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सुल्तानपुर की पूर्व बीजेपी सांसद मेनका गांधी को हाईकोर्ट से लगा झटका, विरोधी नेता को राहत

Prayagraj News: सुल्तानपुर की पूर्व बीजेपी सांसद मेनका गांधी को हाईकोर्ट से लगा झटका, विरोधी नेता को राहत

 

सुल्तानपुर की पूर्व बीजेपी सांसद मेनका गांधी को हाईकोर्ट से लगा झटका, विरोधी नेता को राहत

Prayagaraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वरिष्ठ बीजेपी नेता मेनका गांधी द्वारा दायर चुनाव याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने इस याचिका को समय सीमा के उल्लंघन और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 81 और 86 के खिलाफ माना है.

इस चुनाव याचिका में मुख्य रूप से आरोप लगाया गया था कि चुने गए उम्मीदवार रामभुआल निषाद के खिलाफ कुल 12 आपराधिक मामले लंबित हैं, जबकि चुनाव प्रक्रिया के दौरान दाखिल किए गए फॉर्म-26 में उन्होंने केवल 8 मामलों का ही खुलासा किया. याचिका में कहा गया कि आपराधिक पृष्ठभूमि के मामलों का खुलासा न करना या जानबूझकर जानकारी छिपाना भ्रष्ट आचरण का कार्य है, और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 के अंतर्गत आता है.

याचिका में मांग की गई थी कि इस आधार पर ही सुल्तानपुर-38 लोकसभा चुनाव 2024 को अवैध घोषित किया जाए. हालांकि, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए इसे समय सीमा और अन्य प्रावधानों के उल्लंघन का मामला माना.

क्या था मामला
मेनका गांधी के वकील प्रशांत सिंह अटल के मुताबिक याचिका में बताया गया था कि सपा सांसद रामभुआल निषाद पर 12 आपराधिक केस दर्ज हैं लेकिन उन्होंने सुल्तानपुर लोकसभा चुनाव के दौरान के चुनाव आयोग को दिये अपने हलफनामे में केवल खुद पर 8 केसों के बारे में ही जानकारी दी थी. याचिका में कहा गया कि आपराधिक पृष्ठभूमि के मामलों का खुलासा न करना या जानबूझकर जानकारी छिपाना भ्रष्ट आचरण का कार्य है, और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 के अंतर्गत आता है. इसी आधार पर सुल्तानपुर- लोकसभा चुनाव 2024 को अवैध घोषित किया जाए. 

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"खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे"
सपा सांसद रामभुआल निषाद से जब एक कार्यक्रम के दौरान मेनका गांधी द्वारा दायर की याचिका पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा था, "यह खिसयानी बिल्ली खंबा नोचने वाली कहावत है. जब जनता ने उन्हें हरा दिया तो उन्हें अपनी हार को स्वीकार करना चाहिए."

रामभुआल निषाद ने कहा कि अगर उन्हें आपत्ति थी तो जब पर्चा दाखिल किया था उन्हें तब आपत्ति दर्ज करानी थी. आपत्ति दर्ज कराने के लिए सात दिन का समय होता है. उन्होंने वो समय बर्बाद कर दिया. मेनका गांधी की याचिका में कोई दम नहीं है.

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