Mahakumbh 2025: प्रयागराज में महाकुंभ के आगाज के साथ ही अखाड़ों की 'सरकार' का कार्यकाल भी पूरा हो गया. अखाड़ों का कामकाज देखने वाली सभी कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है.
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Prayagraj Mahakumbh 2025: संगमनगरी में भव्य और दिव्य महाकुंभ के आगाज के साथ ही अखाड़ों की 'सरकार' का कार्यकाल भी पूरा हो गया. अखाड़ों का कामकाज देखने वाली सभी कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है. इनकी जगह पर राष्ट्रपति शासन जैसी पंचायती व्यवस्था लागू की गई है. महाकुंभ होने तक इसी व्यवस्था के तहत कामकाज आगे बढे़ंगे. इसके बाद दोबारा अखाड़े नई सरकार चुनेंगे. जिनका कार्यकाल 6 साल का होगा.
अष्टकौशल देखता कामकाज
साधु संतों के समूह को अखाड़ा कहा जाता है. कुल 13 अखाड़े हैं, जिनसे अलग-अलग साधु-संत संबंध रखते हैं. अखाड़ों का अपना अलग कानून होता है. संन्यासी संत परंपरा के सात अखाड़े हैं. जिनमें महामंडलेश्वर से लेकर नागा संन्यास तक हजारों सदस्य होते हैं. अखाड़े की व्यवस्था को चलाने के लिए 8 महंतों का अष्टकौशल होता है. इनका चुनाव होता है. जो अखाड़े का कामकाज चलाते हैं. इनकी सहायता के लिए 8 उपमहंत भी चुने जाते हैं. जबकि 16 सदस्यों की कमेटी अन्य पदों का चयन करती है.
चेहरा-मोहरा से व्यवस्था
महाकुंभ की शुरुआत के साथ ही अष्ट कौशल समेत अन्य कार्यकारिणी का कार्यकाल पूरा हो गया है, जिसके बाद यह स्वत: भंग हो गई. दरअसल जब अखाड़े छावनी में प्रवेश करते हैं तो कार्यकारिणी का कार्यकाल पूरा मान लिया जाता है. इसके बाद कुंभ मेले की व्यवस्था 'चेहरा मोहरा' से की जाती है.
अब महाकुंभ तक पंचायती परंपरा के तहत ही फैसले लिए जाएंगे. इसके लिए धर्म ध्वजा के पास 'चेहरा-मोहरा' स्थापित किया गया है. चेहरा-मोहरा के जरिए ही कुंभ मेले की पूरी व्यवस्था होती है. इसके लिए कार्यकारिणी बनाई जाती है, जिसकी अगुवाई प्रधान करते हैं. चेहरा मोहरा में महंतों की बैठक होती है, जिसमें जरूरी फैसले लिए जाते हैं. यह व्यवस्था कुंभ तक रहती है. इसके बाद अष्टकौशल बनाए जाते हैं, जिनका कार्यकाल 6 साल होता है.
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