उत्तराखंड के वो तीन इलाके, जिन पर नेपाल ने ठोका दावा, चीन में छप रहे नेपाली नोटों में दिखाई वो जगहें
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उत्तराखंड के वो तीन इलाके, जिन पर नेपाल ने ठोका दावा, चीन में छप रहे नेपाली नोटों में दिखाई वो जगहें

Uttarakhand News: उत्तराखंड और नेपाल के बीच से काली नदी बहती है. यूं तो प्रकृति ने दोनों देशों के बीच सीमा तय की है लेकिन नेपाल भारत के हिस्से में आने वाले लिपुलेख दर्रे, कालापानी और लिंपियाधुरा पर अपना दावा ठोक रहा है.

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Uttarakhand News: यूं तो भारत और नेपाल के मैत्री संबंध सदियों पुराने हैं लेकिन बीते कुछ वक्त में हिमालयी देश के रवैए में बहुत बदलाव देखने को मिला है. हाल में फिर से नेपाल ने उत्तराखंड स्थित उन जगहों पर दावा ठोका है जो कि लंबे समय से भारतीय क्षेत्र में हैं. इसमें रणनीतिक रूप से अहम तीन क्षेत्रों लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल अपना हिस्सा बता रहा है. दरअसल नेपाल ने अपने संशोधित नक्शे वाले 100 रुपये के नए नोट छापने के लिए एक चीनी कंपनी को चुना है. इस नोट में जो नक्शा है उसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का हिस्सा बताया गया है.

आपको बता दें कि नेपाल के नए नक्शे को दो साल पहले नेपाली संविधान में संशोधन कर मंजूरी दी गई थी. इसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है. हालांकि भारत ने नेपाल के इस दावे पर आपत्ति जताई थी और जताता रहा है. भारत का रुख साफ है कि भारत नेपाल सीमा पर स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा भारत का अभिन्न अंग हैं.

लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा कहां हैं

कालापानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आता है.हालांकि 1997 से नेपाल इस पर दावा कर रहा है. नेपाल का कहना है कि यह जगह उसके धारचूला का हिस्सा है. धारचूला नेपाल में आता है. आपको बता दें कि कालापानी घाटी, जिसके टॉप पर लिपुलेख दर्रा है, कैलाश-मानसरोवर के लिए जाने का रास्ता है. यह भारत और नेपाल के लिए तिब्बत का पारंपरिक व्यापारिक मार्ग भी है. दरअसल काली नदी इस क्षेत्र में भारत और नेपाल के बीच सीमा बनाती है.

हालाँकि, भारत का कहना है कि नदी के पानी को सीमा में शामिल नहीं किया गया है. नेपालियों का दावा है कि काली नदी लिम्पियाधुरा पर्वतमाला के नीचे से निकलती है. इसलिए यह हिस्सा उनका है. आपको बता दें कि लिपुलेख दर्रे का इस्तेमाल प्राचीन काल से व्यापारियों, भिक्षुकों और भारत और तिब्बत के बीच आने-जाने वाले तीर्थयात्रियों द्वारा किया जाता रहा है. 1962 में इसे भारत ने बंद किया और फिर बाद में खोल दिया था.

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