Jaipur news : राजस्थान हाईकोर्ट ने संपत्ति नीलामी से जुड़े मामले में झालावाड़ के तत्कालीन कलेक्टर वैभव गालरिया और सहकारी समितियां, झालावाड़ के सहायक रजिस्ट्रार सुभाष चौधरी सहित झालावाड़ नागरिक सहकारी बैंक लि. के तीन अधिकारियों को 16 साल बाद अवमानना की कार्रवाई से मुक्त कर दिया है.
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Jaipur : राजस्थान हाईकोर्ट ने संपत्ति नीलामी से जुड़े मामले में झालावाड़ के तत्कालीन कलेक्टर वैभव गालरिया और सहकारी समितियां, झालावाड़ के सहायक रजिस्ट्रार सुभाष चौधरी सहित झालावाड़ नागरिक सहकारी बैंक लि. के तीन अधिकारियों को 16 साल बाद अवमानना की कार्रवाई से मुक्त कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने इस संबंध में दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया है. जस्टिस महेंद्र कुमार गोयल की एकलपीठ ने यह आदेश अनिल कुमार की अवमानना याचिका को खारिज करते हुए दिए.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता ने मूल राशि का एक चौथाई हिस्सा जमा कराया, लेकिन बैंक के अनुसार कुल राशि का एक चौथाई हिस्सा जमा कराना था. इसके बाद बैंक ने याचिकाकर्ता को नोटिस भी जारी किए, लेकिन उसका जवाब नहीं दिया गया. ऐसे में अधिकारियों को अवमानना के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
ये कहा गया याचिका में
याचिका में कहा गया, कि उसने झालावाड़ नागरिक सहकारी बैंक लि. से लोन लिया था. वहीं लोन नहीं चुकाने पर बैंक ने नीलामी का नोटिस जारी किया. इसे अदालत में चुनौती देने पर हाईकोर्ट ने एक अगस्त, 2007 को आदेश दिए कि याचिकाकर्ता की ओर से एक माह में एक चौथाई राशि जमा कराने पर नीलामी कार्रवाई पर रोक मानी जाएगी. याचिका में कहा गया कि उसकी ओर से एक चौथाई राशि जमा करा दी गई, लेकिन बैंक ने नीलामी की कार्रवाई शुरू कर दी.
अवमानना की कार्रवाई
संपत्ति नीलाम नहीं होने पर जिला कलेक्टर ने संपत्ति को बैंक को सौंप दिया. ऐसे में अधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई की जाए. वहीं बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेके सिंघी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने लोन राशि 17 लाख मानते हुए उसका एक चौथाई हिस्सा जमा कराया था. जबकि मूल राशी मय ब्याज व अन्य खर्च के करीब 23 लाख रुपए होती है.याचिकाकर्ता को अधिक राशि जमा करानी चाहिए थी.
ऐसे में पूरी राशि जमा नहीं होने पर नीलामी से स्टे हटा माना जाएगा. बैंक की ओर से याचिकाकर्ता को नोटिस भी दिए गए, लेकिन याचिकाकर्ता ने उसका जवाब नहीं दिया. वहीं संपत्ति पर अभी भी याचिकाकर्ता का ही कब्जा है. ऐसे में उन्हें अवमानना के लिए दोषी नहीं माना जा सकता. जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 16 साल बाद याचिका खारिज कर अधिकारियों को अवमानना से मुक्त कर दिया है.
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