Year Ender 2024: साल 2024 में अब महज 10 दिनों का वक्त बचा है. इसके बाद 2025 का आगमन होने वाला है. इस साल बिहार की राजनीति सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही. इस साल सियासत की रपटीली राहों में राजनीतिक संबंधों की कई यादगार कहानियां लिखी गईं. इन सभी कहानियों में मुख्य भूमिका में सीएम नीतीश कुमार रहे तो दूसरा तेजस्वी यादव की भूमिका भी अहम रही. पप्पू यादव सालभर सुर्खियों में रहे, तो वहीं प्रशांत किशोर की चर्चा भी काफी हुई. पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच की दूरी कम नहीं हुई. उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी भी मीडिया में छाए रहे. अब साल 2024 के अंत में इनकी बात होनी तो बनती है.
- 2024 की शुरुआत में ही बड़ा उलटफेर- 2024 की शुरुआत में ही बिहार का सियासी पारा हाई हो गया था. जनवरी 2024 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से पलटी मारी और लालू यादव को छोड़कर बीजेपी से दोस्ती कर ली. एनडीए में नीतीश कुमार की घर-वापसी होते ही 28 जनवरी को बिहार की सत्ता में बदलाव हो गया. बीजेपी के सहयोग से नीतीश कुमार ने 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. ये अपने आप में ही एक अनोखा रिकॉर्ड है.
- तेजस्वी ने सरकार गिराने की धमकी दी- सत्ता परिवर्तन होते ही तेजस्वी यादव ने फ्लोर टेस्ट में ही सरकार गिराने की धमकी दी. उन्होंने दावा किया कि जेडीयू और बीजेपी के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. फ्लोर टेस्ट में नीतीश कुमार बहुमत साबित नहीं कर पाए. मुख्यमंत्री ने उनकी धमकी को सीरियसली लिया और फ्लोर टेस्ट के दौरान तेजस्वी यादव के साथ ही खेला हो गया. राजद के 4 विधायक अचानक से एनडीए सरकार को वोट कर दिया. ये तेजस्वी की रणनीति को तगड़ा झटका था. लोकसभा चुनाव के बाद लालू यादव ने केंद्र की मोदी सरकार के गिरने का दावा किया. वहीं नीतीश-मोदी की जोड़ी मानो फेविकोल का मजबूत जोड़ बन गई है.
- साल भर छाए रहे चाचा-भतीजे- इस पूरे साल बिहार के चाचा-भतीजे यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान सुर्खियों में रहे. सियासी जानकारों को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में दिवंगत रामविलास पासवान का परिवार और पार्टी फिर से एक हो जाएंगे. बीजेपी इसके लिए प्रयास भी कर रही थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. चिराग और पारस दोनों ने बीजेपी को साफ कर दिया कि अब दल और दिल नहीं मिल सकते. हालांकि, इस जंग में चिराग पासवान भारी पड़े और NDA में उनको तवज्जो मिली. लोकसभा चुनाव में पारस के हाथ कुछ नहीं आया. चुनाव बाद पारस का मंत्रालय भी चिराग को मिल गया. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पारस से सरकारी बंगला भी वापस ले लिया.
- हिट रही मोदी-नीतीश की जोड़ी- बिहार में लोकसभा चुनाव हों या उपचुनाव, PM मोदी और CM नीतीश की जोड़ी हिट साबित हुई है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश ने एनडीए में वापसी की थी. चुनाव में सीट शेयरिंग से लेकर कैंडिडेट सेलेक्शन तक, सबमें बीजेपी ने नीतीश कुमार को शामिल करके फैसले लिए. इसका नतीजा ये हुआ कि बिहार में एनडीए ने जबरदस्त प्रदर्शन किया. एनडीए को लोकसभा की कुल 40 में से 30 सीटें मिलीं. इसी तरह से हाल ही में हुए उपचुनाव में विपक्ष का सूपड़ा ही साफ हो गया. चारों सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की जीत हुई.
- मीडिया में छाए रहे पप्पू यादव- बिहार के बाहुबली नेता कर पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव इस पूरे साल मीडिया में छाए रहे. पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पप्पू यादव ने अपनी पार्टी- जाप का कांग्रेस में विलय कर दिया. इसके बाद लालू यादव ने उनके साथ खेला कर दिया और पूर्णिया सीट अपने पास रख ली. पप्पू यादव की लाख मिन्नतों के बाद भी लालू नहीं पसीजे तो पप्पू ने निर्दलीय ताल ठोंक दी और जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने डॉन लॉरेंस विश्नोई को अपना दुश्मन बना लिया. सलमान खान के मामले में पप्पू यादव ने लॉरेंस विश्नोई पर टिप्पणी कर दी. जिसके बाद से उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं.
- कुशवाहा-सहनी को नहीं कर सकते इग्नोर- बिहार की राजनीति की बात हो तो उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी जैसे नेताओं को इग्नोर नहीं कर सकते. काराकाट सीट से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा की वैल्यू कम नहीं हुई और उन्हें राज्यसभा के रास्ते दिल्ली पहुंचाया गया. इसी तरह से मुकेश सहनी को लोकसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने अपने खेमे में मिला लिया था. पूरे चुनाव में तेजस्वी ने महागठबंधन के किसी नेता को अपने मंच पर नहीं बुलाया, लेकिन मुकेश सहनी को अपने साथ परछाई की तरह रखा. चुनाव के दौरान ही मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव को अपने हाथ से बनी मछली खिलाई थी, जिस पर काफी विवाद हुआ था क्योंकि उस समय नवरात्रि चल रही थी.
- सियासत में पीके-रोहिणी की एंट्री- इस साल बिहार की सियासत में लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की धांसू तरीके से एंट्री हुई. लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने रोहिणी आचार्य को लॉन्च करते हुए सारण सीट से मैदान में उतारा. बेटी को जीताने के लिए लालू यादव खुद चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन इसके बाद भी वह चुनाव हार गईं. उनको बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी ने हराया था. दूसरी ओर प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को अपनी पॉर्टी लॉन्च की थी. इससे पहले वह पूरे बिहार में पदयात्रा निकाल रहे थे. पीके को भी पहली परीक्षा में असफलता का सामना करना पड़ा.
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