पुराने समय में इन क्रूर तरीकों से दी जाती थी मौत की सजा, जानकर ही रूह कांप उठेगी!
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पुराने समय में इन क्रूर तरीकों से दी जाती थी मौत की सजा, जानकर ही रूह कांप उठेगी!

Ancient Execution Methods: प्राचीन काल में मौत की सजा पाने वालों को दम तोड़ने से पहले भयानक टॉर्चर से गुजरना पड़ता था. एक नजर मृत्युदंड देने के क्रूरतम तरीकों पर.

पुराने समय में इन क्रूर तरीकों से दी जाती थी मौत की सजा, जानकर ही रूह कांप उठेगी!

Methods Of Execution: क्या आप जानते हैं कि दुनिया में पहली बार मौत की सजा किसे दी गई थी? ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, पहली मौत की सजा 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व मिस्र में दी गई थी. एक कुलीन वर्ग के सदस्य पर जादू-टोने का आरोप लगा था. उसे अपनी ही जान लेने का आदेश दिया गया था. उस दौर में, गैर-कुलीन लोगों को आमतौर पर कुल्हाड़ी से मार दिया जाता था. 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हित्ती संहिता में भी मृत्युदंड का प्रावधान था. 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व के  एथेंस में हर अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई जाती थी. सजा-ए-मौत के तरीके बेहद क्रूर होते थे. किसी अपराधी को सूली पर चढ़ा दिया जाता तो किसी को समुद्र में डुबो दिया जाता. जिंदा दफनाने और पीट-पीटकर मार डालने का भी चलन था. इतिहास के सबसे कुख्यात मृत्युदंड में से एक, लगभग 399 ईसा पूर्व में हुआ. जब यूनानी दार्शनिक सुकरात को जहर पीना पड़ा था. लगभग 29 ईस्वी में यरुशलम के बाहर ईसा मसीह को सूली पर लटका दिया गया था. आज भी दुनिया के कई देशों में मौत की सजा दी जाती है, जिनमें से भारत भी एक है. प्राचीन काल की तुलना में अब मृत्युदंड के तरीके काफी मानवीय हो गए हैं. अब सजा-ए-मौत पाने वाले अपराधी को तड़पाया नहीं, जल्द से जल्द मौत के घाट उतार दिया जाता है. प्राचीन काल में तो मौत की सजा के तरीके ऐसे होते थे कि उनके बारे में पढ़कर ही रूह कांप उठे. ऐसे ही 5 बर्बर तरीकों के बारे में आगे जानिए.

सूली पर चढ़ाना

यह सजा-ए-मौत के सबसे पुराने और आम तरीकों में से एक है. अपराधी को लकड़ी के बीम या क्रॉस से बांध दिया जाता था. अक्सर हाथ-पैरों में कीलें गाड़ दी जाती थीं. कलाई के नीचे की हड्डियों में कीलें गाड़ी जाती थीं जिससे वे वजन उठा सकें. इससे उंगलियां जकड़ जाती थीं और हाथ बेहद दर्द में नीचे की ओर झुक जाते थे. एक बार पैर कमजोर पड़ने के बाद हाथों को ही पूरे शरीर का भार उठाना पड़ता था. इससे कंधे उखड़ जाते थे. जल्द ही कोहनियां और कलाइयां भी उखड़ जातीं. खिंचने की वजह से भुजाएं कई इंच लंबी हो जातीं. शरीर का सारा वजन छाती को सहन करना पड़ता जिससे अंततः अपराधी का दम घुट जाता था.

चमड़ी उतरवाना

तमाम फिल्मों और साहित्य में यह डायलॉग सुना होगा- तुम्हारी खाल उधड़वा दूंगा, चमड़ी निकलवा दूंगा... प्राचीन काल में सजा का यह भी एक तरीका था. अपराधी को पहले नंगा किया जाता, उसके हाथ-पैर बांध दिया जाते. इसके बाद तेज धार वाले चाकू से अपराधी की खाल निकाली जाती. कुछ वाकयों में तो अपराधी के कुछ अंगों को उबाला भी जाता जिससे त्वचा मुलायम हो जाए और आसानी से निकल आए. इस तरीके में मरने की वजह कई हो सकती थीं- सदमा, खून या तरल पदार्थ की हानि, हाइपोथर्मिया, या संक्रमण भी. अपराधी की कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन में मौत हो जाती थी.

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खाल उतारने की सजा दिखाती एक पेंटिंग (फोटो: Wellcome Trust)

रोमन कैंडल

अपराधी को एक खंभे से बांध दिया जाता, बदन में कीलें ठोक दी जाती थीं. इसके बाद, उन पर राल, तेल, मोम और अन्य ज्वलनशील तरल पदार्थ डाले जाते. फिर आग लगा दी जाती. टॉर्चर लंबे समय तक चले, इसके लिए सबसे पहले पैरों में आग लगाई जाती. रोमन सम्राट नीरो इस तरीके से सजा-ए-मौत देने के लिए कुख्‍यात था.

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द रैक

यह मौत की सजा देने के लिए बनी मशीन थी. इसमें एक लंबी मेज होती थी जिसके दोनों सिरों पर धुरी और लीवर थे. अपराधी को जबरन लिटाया जाता, फिर चमड़े के पट्टों से उसकी कलाइयां और एड़‍ियां बांध दी जातीं. इन पट्टों में चेन या रस्सियां लगी होती थीं जो धुरी पर घूमती थीं. धीरे-धीरे लीवर बढ़ाने पर धुरी घूमती और शरीर खिंचने लगता. हाथों और पैरों पर प्रेशर पड़ता तो रीढ़ की हड्डी बढ़ती, जोड़ और मांसपेशियां जवाब दे जातीं. पसलियां फेफड़ों पर दबाव डालतीं, हड्डियां टूट जातीं, असहनीय दर्द होता होगा.

चूहों से टॉर्चर

अपराधी को लिटाने के बाद उसके पेट पर एक पिंजरा बांध दिया जाता. पिंजरे में एक या कई चूहे डाल दिए जाते. इस पिंजरे को बाहर से गर्म किया जाता जिससे चूहों को गुस्सा आता. वे बाहर निकलने के लिए छटपटाते मगर निकलने का एक ही रास्ता दिखता, इंसान की नर्म मुलायम खाल कुतरने का. बडी तेजी से चूहे अपराधी का पेट कुतर जाते. टॉर्चर के लिए यह तरीका खूब इस्तेमाल होता था.

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