Science News: वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि एक खास प्रजाति के घुन कैसे बिना सेक्स के प्रजनन कर पाते हैं. यह प्रजाति पिछले 20 मिलियन (2 करोड़) साल से भी अधिक समय से बिना सेक्सुअल रीप्रोडक्शन (यौन प्रजनन) के जीवित रही है.
Trending Photos
Science News in Hindi: पृथ्वी पर एक जीव ऐसा है जिसे संतान पैदा करने के लिए साथी की जरूरत नहीं होती. बच्चे अपने मां की हूबहू कॉपी होते हैं. यह जीव हमारे घरों में भी पाया जाता है. हम इन्हें 'घुन' कहते हैं. इस घुन की एक प्रजाति Platynothrus peltifer ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है. मां अंडों से फीमेल्स को जन्म देती हैं, जिन्हें किसी भी मेल द्वारा फर्टिलाइज नहीं किया गया होता है. इस प्रक्रिया को पार्थोजेनेसिस कहते हैं और Mites यानी घुन की यह प्रजाति इसी तरह अपनी आबादी बढ़ाती है. नर माइट्स या तो अनुपस्थित रहते हैं या बेहद दुर्लभ होते हैं.
20 मिलियन साल से बिना सेक्स के अस्तित्व
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्रजाति 20 मिलियन सालों से बिना यौन प्रजनन के जीवित है. यह खोज विकासवादी सिद्धांतों को चुनौती देती है, जो यौन प्रजनन को अनुकूलन और जीन विविधता के लिए जरूरी मानते हैं. रिसर्च के अनुसार, इन माइट्स का अस्तित्व Meselson Effect की वजह से संभव हुआ है. यह प्रक्रिया उनकी दो क्रोमोसोम प्रतियों को स्वतंत्र रूप से विकसित होने देती है, जिससे जीनोम में नए वेरिएंट्स उत्पन्न होते हैं. ये वेरिएंट्स माइट्स को पर्यावरणीय दबावों के अनुसार अनुकूलित होने में मदद करते हैं.
रिसर्च से क्या पता चला?
इन घुनों के जीनोम में Horizontal Gene Transfer (HGT) प्रक्रिया भी देखी गई है. इसमें माइट्स बाहरी स्रोतों से जीन प्राप्त करती हैं. इससे उनकी अनुकूलन क्षमता बढ़ती है. कुछ ट्रांसफर्ड जीन उन्हें पौधों की कोशिका दीवारों को पचाने में सक्षम बनाते हैं, जिससे उनके भोजन के विकल्प बढ़ जाते हैं.
इसके अलावा, इन माइट्स के जीनोम में ट्रांसपोजेबल एलिमेंट्स (jumping genes) पाए गए हैं. ये जीन अपनी स्थिति बदलते रहते हैं, जिससे जीनोम में विविधता और गतिशीलता आती है. एक क्रोमोसोम कॉपी में ये जीन सक्रिय रहते हैं, जबकि दूसरी निष्क्रिय रहती है.
हर 60 गर्भधारण में से किसी एक केस में कम से कम 2 बच्चे क्यों हो रहे पैदा?
रिसर्चर डॉ. जेंस बास्ट ने कहा, 'यह स्टडी यह समझने में मदद करती है कि विकास के लिए यौन प्रजनन के अलावा अन्य तंत्र भी संभव हैं.' उनकी स्टडी Science Advances जर्नल में छपी है. इसे जैव विकास और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.