Stambheshwar Mahadev Mandir: गुजरात वडोदरा में समुद्र में भगवान शिव की लीला पिछले हजारों वर्षों से जारी है. उनके दर्शनों के रोजाना सैकड़ों लोग वहां पहुंचते हैं लेकिन कुछ ही भाग्यवानों को उनके दर्शन नसीब हो पाते हैं.
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Stambheshwar Mahadev Temple Vadodara Mystery: हमारे वैदिक ग्रंथों में भगवान शिव के 11 रुद्र रूपों का जिक्र है. कपानी, पिंगल भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चंड और भव. मान्यता है कि इन सभी रुद्र रूपों में भगवान शिव, तीनों लोकों में अलग-अलग भूमिकाएं निभाते हैं. लेकिन जब शिव इन 11 रुद्र रूपों को एक साथ धारण करते हैं, तो वो होती है महारुद्र लीला. आज की स्पेशल रिपोर्ट में आपको बताएंगे एक ऐसे रहस्यमयी शिव मंदिर का चमत्कार, जो समुद्र की लहरों के साथ जीवन और मरण का रहस्य आपके सामने साक्षात कर जाता है.
लहरों के बीच बचता है शिखर अदृश्य हो जाता है शिवलिंग
पौराणिक गाथाओं में जो शिव शिखरों के महादेव कहे जाते हैं, बीच समुद्र में, उनके अनूठे मंदिर की अद्भुत लीला साक्षात होती है. यहां शिव का जलाभिषेक समुद्र करता है, तो भगवान शिव खुद समुद्र के जल में 12 घंट की समाधि हर रोज लेते हैं. भगवान शिव की ये समुद्रलीला देखने के लिए हजारों श्रद्धालु हर हर दिन गुजरात के कवि कंबोई गांव में आते हैं. ये गांव भरूच जिले में पड़ता है.
जिला मुख्यालय से करीब 85 किलोमीटर दूर है जंबूसर का ये समुद्रतट जहां बना है भगवान शिव का अनूठा मंदिर- स्तंभेश्वर महादेव. तट से करीब 1 किलोमीटर समुद्र के अंदर बना शिव मंदिर, जहां पहुंचने के लिए बना है एक प्लेटफॉर्म, लेकिन मंदिर की असली रहस्य छिपा है, इसके गर्भगृह में जहां शिवलिंग के दर्शन दिन में सिर्फ दो बार ही होते हैं.
महादेव मंदिर को स्तंभेश्वर इसलिए नाम दिया गया, क्योंकि समुद्र के बीच ये 4 स्तंभों के ऊपर बनाया हुआ है. ये बनावट दूर से ही दिखती है. लेकिन मंदिर को लेकर बड़ा रहस्य ये है कि इसे समुद्र के बीचों बीच बनवाया किसने और इसका मकसद क्या था. इसे लेकर कई कथाएं हमारे पुराणों में मिलती है, इसमें से एक है स्कंदपुराण, जिसमें महादेव के इस मंदिर का जिक्र मिलता है. हमारी स्पेशल रिपोर्ट के इस हिस्से में देखिए स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक व्याख्या.
हजारों साल से जारी है लीला
भगवान विष्णु का साम्राज्य कहे जाने वाले समुद्र में महादेव का ऐसा प्रताप अपने आप में अतुलनीय है. हजारों साल से ऐसा चमत्कार, जिसके आगे समुद्र शीश नवाता है और सूर्य अपनी किरणों की आहुति देता है. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के पास समुद्र और सूर्य की लीला का ये रेयर वीडियो है. लहरे आती हैं, इनके बीच शिवलिंग अदृश्य होता है और फिर 6 घंटे में 27 फीट तक ऊपर चढा पानी अपने आप समुद्र में वापस चला जाता है. इस अद्भुत दृश्य के साथ ये रहस्य भी कम नहीं, कि समुद्र के बीच मंदिर हजारों सालों के होने के बावजूद ना तो इसके गर्भगृह को छति पहुंची है और ना ही शिवलिंग को.
इस शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि ये हजारों साल पुराना है. आपको ये पूरा विवरण स्तंभेश्वर मंदिर के अहाते में मिल जाएगा. यहां लगी पुरणों की पट्टिकाएं और मंदिर का इतिहास इसे महाभारत काल से भी पहले के दौर का बताती हैं. ये सब देखने के बाद जेहन में सवाल सहज ही आता है कि वडोदरा के समुद्री तट पर ये शिवलिंग स्थापित किसने किया. तो इसकीएक कहानी महाभारत काल की सामने आती है. ये पांडवों के अज्ञातवास का दौर था. जिस इलाके में अपना भेष बदलकर जाते पांडव, वहां शिव की अराधना करना नहीं भूलते.
क्या पांडवों ने की थी स्तंभेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना?
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव जब कवि कंबोई गांव पहुंचे, तो शिव की अराधना यहां के समुद्र तट के एकांत में शुरू की. इसी अराधना के लिए उन्होने 4 फीट ऊंचे शिवलिंग की स्थापना की. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की दूसरी पौराणिक कथा भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि तड़कासुर नाम के एक दैत्य ने भगवान शिव की तपस्या कर अनूठा वरदान हासिल कर लिया था. इसके मुताबिक अगर उसे कोई मार सकेगा तो वो सिर्फ भगवान शिव की संतान, वो भी 6 दिन से कम उम्र का.
तड़कासुर को ये वरदान देकर शिव तो अपनी साधना में चले गए, इस दौरान तड़कासुर का आतंक स्वर्गलोक तक पहुंच गया. तब त्राहिमाम करते देवताओं 5 दिन पहले जन्मे शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तड़कासुर का वध किया. लेकिन जब कार्तिकेय को ये एहसास हुआ कि उन्होंने अपने पिता के एक भक्त का वध कर दिया है, तब प्रायश्चित के लिए उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित कर पूजा की.
समुद्र में किसने किया था इस मंदिर का निर्माण?
हालांकि इन दो कहानियों के बाद भी स्तंभेश्वर मंदिर का रहस्य पूरी तरह खुलता नहीं, बल्कि समुद्री लहरों के साथ और बढ़ता जाता है. रहस्य ये, कि आखिर पौरणिक कहानियों के आधार पर बीच समुद्र में ये मंदिर बनाया कैसे और किस मकसद से गया होगा.
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के पौराणिक दस्तावेज तो इसे द्वापर युग का बताते हैं. मगर आधुनिक इतिहास को देखें, तो इसकी खोज 29वीं शताब्दी में, यानी आज से करीब ढ़ेढ़ सौ साल पहले हुई थी. तब मंदिर रेत के नीचे दबा हुआ मिला था. अरब सागर के जिस तटीय इलाके में ये मंदिर स्थित है, वो इलाका खंभात की खाड़ी का क्षेत्र है. इस क्षेत्र के बारे में एक मान्यता ये है कि यहां सिंधु घाटी सभ्यता से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष है. हालांकि इसकी डेटिंग को लेकर पुरातत्व विशेषज्ञों में एक राय नहीं है, लेकिन स्तंभेश्वर मंदिर की पौराणिकता को लेकर कोई दो राय नहीं है.
किसने बनवाया स्तंभेश्वर महादेव?
एक तरफ द्वापर युग की जलमग्न द्वारकानगरी, दूसरी तरफ भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग और बीच स्तंभेश्वर महादेव का रहस्यमयी शिवलिंग. वडोदरा के जिस तटीय क्षेत्र में है स्तंभेश्वर मंदिर, वो लोकेशन ही इसे दिव्य, और दैवीय रहस्य से भरता है. मौजूदा दस्तावेजों के मुताबिक इस मंदिर को डेढ़ सौ साल पहले खोजा गया. इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में बताया जाता है. मंदिर का शिवलिंग चावड़ी संतों को समुद्र के बीच मिला था. चावड़ी संतों ने 4 फीट के शिवलिंग को स्थापित कर मंदिर बनवाया. 8वीं शताब्दी में मंदिर का पुनर्निर्माण शंकराचार्य ने कराया.
स्तंभेश्वर मंदिर से शंकराचार्य के जुड़ने के बाद ये धीरे धीरे इसकी ख्याति आम लोगों तक पहुंचने लगी. क्योंकि यहां से कुछ ही दूरी पर सोमनाथ का भी प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर के पास त्रिलोचनगढ़ का किला है, जिसका निर्माण सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की सुरक्षा के लिए कराया गया था. इस तरह ये भगवान शिव का अनूठा मगर दुर्गम मंदिर गुजरात के प्राचीन मंदिरों में शामिल हुआ. रही बात यहां लहरों के चमत्कार की, तो ऐसा समुद्र में उठने वाले ज्वार की वजह से होता है.
दिन में दो बार आता है ज्वार भाटा
ज्वार भाटा के समय के मुताबिक स्तंभेश्वर मंदिर में शिवलिंग के दर्शन का समय तय होता है. इसकी पूरी सूचना मंदिर परिसर में पहले ही दे दी जाती है. दिन के हिसाब से जिस दिन ज्वार का उठना होता है, उसके 6 घंटे बाद मंदिर में शिवलिंग की पूजा की अनुमति दी जाती है. एक बार ज्वार आने के बाद गर्भ गृह में करीब 1 फीट तक समुद्री रेत भर जाती है. जिसे साफ करने में एक से डेढ़ घंटे का समय और हजारों लीटर साफ पानी लगता है.
ये प्रक्रिया स्तंभेश्वर मंदिर में दो बार करनी पड़ती है, क्योंकि खंबात के समुद्री तट पर ऊंची लहरों वाला ज्वार दो बार आता है. ये लहरे आमवस्या और पूर्णिमा के इर्द-गिर्द और भी ऊंची होती है. यानी स्तंभेश्वर मंदिर में लहरों की पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक होती है. लेकिन एक रहस्य अब भी रह जाता है, इतनी मुश्किल जगह पर ये शिवलिंग स्थापित कैसे किया गया और लहरों के पूरे अनुमान के साथ ये मंदिर किस तकनीक से तैयार किया गया कि सैकड़ों साल से लहरों को झेलता हुआ ये शिवलिंग आज भी साक्षात और साबूत है.