Delhi Chunav: सत्ता की खींचतान और जनता की आवाज के बीच दिल्ली का चुनावी सफर हमेशा दिलचस्प रहा है. 1952 में पहली विधानसभा बनने से लेकर अब तक दिल्ली की राजनीति में कई बड़े बदलाव हुए हैं.
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Delhi Election history: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने वाले हैं और राजधानी को अपना अगला मुख्यमंत्री मिलने वाला है. इसी कड़ी में हम आपको दिल्ली के चुनावी इतिहास से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ दे रहे हैं, जो शायद आपकी नजरों से अब तक दूर रही हों. दिल्ली दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दिल है. यहाँ के चुनाव देश के अन्य राज्यों से कई मायनों में अलग होते हैं. सत्ता की खींचतान और जनता की आवाज के बीच दिल्ली का चुनावी सफर हमेशा दिलचस्प रहा है. 1952 में पहली विधानसभा बनने से लेकर अब तक, दिल्ली की राजनीति में कई बड़े बदलाव हुए हैं. खासकर 1956 से 1993 तक, जब दिल्ली की विधानसभा भंग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस, बीजेपी और अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपना वर्चस्व स्थापित किया है. आइए, जानते हैं दिल्ली के चुनावी इतिहास की झलक.
1952: दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव
1951-52 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में दिल्ली को 42 निर्वाचन क्षेत्र और कुल 48 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में कांग्रेस ने 39 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भारतीय जनसंघ को 5 और सोशलिस्ट पार्टी को 2 सीटें मिलीं. चौधरी ब्रह्म प्रकाश को दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन तत्कालीन मुख्य आयुक्त ए.डी. पंडित से उनके मतभेद बढ़ते चले गए. आखिरकार, 1955 में ब्रह्म प्रकाश को इस्तीफा देना पड़ा और गुरुमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री बने. लेकिन 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और विधानसभा भंग कर दी गई.
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग और 1993 में विधानसभा की वापसी
1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम के तहत 56 निर्वाचित और 5 नामांकित सदस्यों वाली ‘मेट्रोपॉलिटन काउंसिल’ बनाई गई, लेकिन इसे केवल सिफारिशी अधिकार दिए गए. लंबे संघर्ष के बाद, 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने दिल्ली को सीमित अधिकारों के साथ विधानसभा देने का फैसला किया. 1993 में पहली बार 70 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी ने 49 सीटें जीतकर मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया. 1995 में हवाला कांड में नाम आने के बाद खुराना को इस्तीफा देना पड़ा और साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने. 1998 में बीजेपी ने मुख्यमंत्री बदलकर सुषमा स्वराज को सामने किया, लेकिन कांग्रेस की वापसी को नहीं रोक पाई.
1998-2013: शीला दीक्षित का दौर
1998 में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं. उनके कार्यकाल में दिल्ली में मेट्रो, फ्लाईओवर निर्माण और सीएनजी बसों जैसी कई योजनाएँ लागू हुईं, जिससे दिल्ली की तस्वीर पूरी तरह बदल गई. 2003 और 2008 में भी कांग्रेस ने क्रमशः 47 और 43 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी. लेकिन 2013 के चुनावों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा.
आम आदमी पार्टी का उदय और त्रिशंकु विधानसभा
अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी (AAP) ने पहली बार 2013 में चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीत लीं. बीजेपी को 31 सीटें मिलीं, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस सिर्फ 8 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी सरकार बनाने में असमर्थ रही, जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई. हालांकि, लोकपाल बिल पास न होने की वजह से उन्होंने 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.
2015 और 2020: आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत
2015 में आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर राजनीतिक इतिहास रच दिया. बीजेपी सिर्फ 3 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने और उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दिया. 2020 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी, जबकि बीजेपी सिर्फ 8 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस एक बार फिर शून्य पर रही. अब 2025 के परिणामों की ओर सभी की नजरें टिकी हैं. क्या बीजेपी वापसी कर पाएगी या आम आदमी पार्टी फिर से दिल्ली की जनता का भरोसा जीतकर सत्ता में लौटेगी.