Bhishma Vachan: जब भीष्म ने देखा श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप, दुर्योधन की इस बात पर आया था क्रोध
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Bhishma Vachan: जब भीष्म ने देखा श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप, दुर्योधन की इस बात पर आया था क्रोध

Bhishma Pitamah Vachan: भीष्म के हर वचन हस्तिनापुर (hastinapur) को खंडित होने से बचाने वाले थे. भीष्म इतने गंभीर और गरिष्ठ थे कि उनके वचन भाव भंगिमा से भी परिलक्षित हो जाते थे. शांति प्रस्ताव को लेकर आगे जानते हैं कि क्या थे भीष्म के वचन. 

Bhishma Vachan: जब भीष्म ने देखा श्रीकृष्ण का विराट स्वरूप, दुर्योधन की इस बात पर आया था क्रोध

Mahabharata Bhishma Vachan : युद्ध न हो का शांति प्रस्ताव लेकर महाराज धृतराष्ट्र (Dhritarashtra) की सभा में श्रीकृष्ण (Sri Krishna) ने पांडवों को हस्तिनापुर का राज्य देने के लिए कहा था, लेकिन दुर्योधन के इनकार करने पर 5 गांव ही देने का प्रस्ताव किया. इसको लेकर भीष्म के मन में प्रसन्नता का संचार हुआ. भीष्म को मन ही मन भरोसा हो गया कि अब युद्ध नहीं होगा, क्योंकि वासुदेव ने केवल 5 गांव देने का प्रस्ताव रखा है. सभी जानते हैं कि कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने  गीता का उपदेश दिया और अपना विराट स्वरूप दिखाया. अर्जुन से पहले भी श्रीकृष्ण अपना विराट स्वरूप दिखा चुके थे और इसे देखा था भीष्म के साथ कुरुवंश के गुरु द्रोणाचार्य (Guru Dronacharya) और महात्मा विदुर (Vidur) ने. राजसभा में वासुदेव श्रीकृष्ण के पहुंचने  पर धृतराष्ट्र ने उनसे पूछा कि तुम मेरे अनुज पुत्रों की तरफ से क्या संदेश लाए हो तो श्रीकृष्ण ने साफ कहा कि मैं किसी की ओर से नहीं बल्कि अपनी ओर से आया हूं और अपना ही संदेश लेकर आया हूं. मुझे यह विश्वास है कि मैं जो भी कहूंगा उसे पांडु पुत्र स्वीकार कर लेंगे. 

श्रीकृष्ण ने बोली थी ये बात  

श्रीकृष्ण ने कहा मैं जानता हूं कि शांति कोई प्रस्ताव नहीं है, जिस पर वाद-विवाद किया जाए. युद्ध में विजय तो एक पक्ष की ही होती है किंतु दोनों ही ओर से लड़ने वाले योद्धा वीरगति को प्राप्त होते हैं. उन्होंने कहा कि यह एक महान राजसभा है, जहां पितामह, कृपाचार्य (kripacharya) और गुरु द्रोण जैसे महान महात्मा और योद्धा हैं, इसलिए युद्ध को रोकने का दायित्व भी सबसे ज्यादा इसी सभा का है. युद्ध हुआ तो महात्माओं और योद्धाओं का यह जमघट निःसंदेह बिखर जाएगा. 

 
धृतराष्ट्र को देना होगा जवाब 

वासुदेव ने महाराज धृतराष्ट्र से कहा कि युद्ध हुआ तो इतिहास उत्तरदायी महाराज धृतराष्ट्र को ही ठहराएगा. आप तो भरत वंश के धर्म की धरोहर हैं. शांति कभी भी असंभव नहीं हो सकती है. आप कुरुवंश को शांति के मार्ग पर ले चलिए, इसमें भारत वर्ष और सारे संसार की भलाई है. श्रीकृष्ण ने कहा इतिहास गांधार नरेश शकुनि से यह नहीं पूछेगा कि इन्होंने द्रूत कीड़ा में कपट क्यों किया, क्योंकि कपट तो आपकी सभा में हुआ था. इतिहास दुर्योधन से भी नहीं पूछेगा कि इन्होंने भरी सभा में भरत कुल वधु को क्यों बुलवाया, कोई दुःशासन से भी नहीं पूछेगा कि कुल वधु का अपमान करने की घ्रष्टता क्यों की, इतिहास इन सबके लिए भी आपको ही दोषी ठहराएगा. 

भीष्म वासुदेव की बात से पूर्ण सहमत

श्रीकृष्ण और महाराज धृतराष्ट्र के बीच के संवाद को सुनकर भीष्म को अंदर ही अंदर बड़ी पीड़ा हो रही थी. वह मन ही मन चाहते थे कि युद्ध किसी भी कीमत पर न हो तभी तो श्रीकृष्ण की बात को काटते हुए भीष्म बोले, युद्ध तो कदाचित कोई नहीं चाहता है. इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि यह कदाचित शब्द ठीक नहीं है. ऐसे शब्दों की छाया में शांति की बात नहीं हो सकती है. आप ही अपने नरेश को समझाइए. इस पर भीष्म की भाव भंगिमा ऐसी थी कि मानों वह महाराज से कह रहे हों कि मान जाइए श्रीकृष्ण की बात और हस्तिनापुर का राज्य पांडवों को दे दीजिए, लेकिन नेत्रहीन महाराज भीष्म को देखकर उन्हें नहीं पढ़ सकते थे. धृतराष्ट्र मौन रहे. 

भीष्म ने दुर्योधन को डांटा

महाराज के कुछ बोलने के पहले ही दुर्योधन ने क्रोधित होकर प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया. इस पर श्रीकृष्ण ने पांडवों के लिए 5 गांव मांगे तो दुर्योधन बोला सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं देंगे. श्रीकृष्ण का जब दुर्योधन ने अपमान किया तो भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बुरी तरह डांटा और कहा कि हे पुत्र दुर्योधन वासुदेव की पूरी बात तो सुन लो. 

वासुदेव ने दिखाया विराट रूप

शांति प्रस्ताव से गुस्साए दुर्योधन ने श्रीकृष्ण का अपमान करते हुए सैनिकों को बंदी बनाने का आदेश दिया. श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र युक्त विराट स्वरूप दिखाया, जिसे सिर्फ पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और महात्मा विदुर ही देख सके और उन्होंने वासुदेव भगवान के इस रूप को प्रणाम किया, लेकिन उनके तेज से सभा में उपस्थित सभी अन्य सभी लोगों की आंखें चौधिया गईं और उन्हें कुछ भी न दिखा. इसके बाद श्रीकृष्ण वहां से चले गए.
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