भारतीय छात्र संसद: राजनीति में युवाओं की भागीदारी के मुद्दे पर मंथन
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भारतीय छात्र संसद: राजनीति में युवाओं की भागीदारी के मुद्दे पर मंथन

एक समय ऐसा था कि छात्र राजनीति के साथ ही सामाजिक सक्रियता से युवाओं को राजनीति में प्रवेश मिल जाता था. लेकिन जैसे-जैसे राजनीति में पैसा और बाहुबल का बोलबाला हुआ, राजनीति में युवाओं की भागीदारी घटी है. ऐसे में 12वीं भारतीय छात्र संसद जैसे आयोजनों से देश में युवाओं की राजनीति सहभागिता का मुद्दा एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है. पढ़ें खास रिपोर्ट

भारतीय छात्र संसद: राजनीति में युवाओं की भागीदारी के मुद्दे पर मंथन

अरविन्द मिश्रा/लखनऊ: एक समय था जब राजनीति में युवाओं के लिए मिशन होता था. वह राजनीतिक क्षेत्र को फुल टाइम करियर के रूप में अपनाते थे. छात्र संघ चुनाव से लेकर सामाजिक सक्रियता से उनकी राजनीति यात्रा प्रारंभ होती थी. हालांकि बाद राजनीति का मिजाज भी बदला और तौर तरीके भी. ऐसे में अब युवाओं की राजनीति में भागीदारी कम हुई है. इसका सीधा असर हमारे संसदीय लोकतंत्र पर पड़ रहा है. बदलते दौर के साथ युवाओं की राजनीति में सहभागिता के प्रश्न न सिर्फ धुमिल होने लगे बल्कि राजनीति में वंशवाद, जातिवाद और क्षेत्रवाद का बोलबाला हो गया.

पुणे में आयोजित 12वीं भारतीय छात्र संसद के जरिए यूपी के विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, सपा विधायक रागिनी सोनकर ने युवाओं से राजनीति में प्रवेश करने का आह्वान किया. यहां पहुंचे केंद्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने इस बात को बेबाकी से लोगों के सामने रखा कि छात्र संघ चुनाव किसी जमाने में राजनीति में प्रवेश का द्वार होते थे. तीन दिन तक चली भारतीय छात्र संसद के आयोजन में उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड से हजारों की संख्या में छात्रों ने शिरकत की.

संसद में युवाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी

आंकड़ों के मुताबिक देश में 37.14 करोड़ युवा हैं. यह कुल आबादी का 27.3 प्रतिशत है. देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ. पहली लोकसभा में 40 से कम उम्र के 26 प्रतिशत सांसद चुने गए थे. 16वीं लोकसभा के आंकड़े भी करते हैं. इस लोकसभा में 543 में से केवल 70 सांसद ही 40 वर्ष से कम आयु के थे. अर्थात सिर्फ 12.89 प्रतिशत और बाकी 87 प्रतिशत सांसद 40 वर्ष से अधिक के थे जबकि भारत की 67 प्रतिशत आबादी 40 से कम की है. 
नीति निर्माण के क्षेत्र में हो कौशल विकास
देशभर में छात्रों की राजनीतिक सहभागिता के मुद्दे डेढ़ दशक से काम कर रहे भारतीय छात्र संसद के संयोजक राहुल कराड के मुताबिक सुशासन के लिए संसदीय प्रक्रियाओं से प्रशिक्षित युवाओं की मौजूदगी स्थानीय निकाय से लेकर संसद तक बढ़ानी होगी. भारतीय छात्र संसद जैसी पहल से राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ना तय है. भारतीय छात्र संसद के 12वें संस्करण ने राजनीतिक वंशवाद,  लोकतंत्र और कॉर्पोरेटशाही को लेकर चिंता जाहिर की है. राहुल कराड कहते हैं स्थानीय निकायों और विधानसभा के स्तर पर नीति निर्माण और सुशासन को समझ रखने वाले युवा प्रशिक्षित किए जाने चाहिए. इससे भारतीय राजनीति में युवाओं की सहभागिता बढ़ेगी.

कभी छात्र संघ से तैयार होते थे युवा
उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक हर जगह छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर आए दिन प्रदर्शन होते रहते हैं. दरअसल कुछ सालों पहले तक छात्र संघ चुनाव को राजनीति की पाठशाला कहा जाता था. लेकिन समय के साथ छात्र राजनीति में आई कुछ कमियों की वजह से इन पर या तो रोक लगा दी गई. या फिर छात्र संघ राजनीति की धार कमजोर हो गई. ऐसे में युवाओं की राजनीति में सहभागिता के मुद्दे को हल कर संसदीय लोकतंत्र को नई ऊर्जा दी जा सकती है.

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