Milkipur Byelection 2025 Result: अयोध्या की हार का बदला बीजेपी ने मिल्कीपुर में प्रचंड जीत से लिया है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए भी 2027 विधानसभा चुनाव को साधने के लिए मिल्कीपुर की हार से 5 सबक लेने की जरूरत हैं.
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Milkipur Byelection 2025 Result: कुंदरकी समेत उपचुनाव की 9 सीटों में 7 सीटों पर मिली हार के बाद अब मिल्कीपुर का मजबूत किला भी समाजवादी पार्टी के हाथ से फिसल गया है. बीजेपी के चंद्रभान पासवान ने अजीत प्रसाद को करारी पटखनी देकर अयोध्या में मिली हार का बदला लिया. 2027 विधानसभा चुनाव में अगर सपा को जीत का परचम लहराना है तो मिल्कीपुर की हार से अखिलेश यादव को सबक लेना होगा.
संगठन को धार
सियासी जानकारों की मानें तो मिल्कीपुर में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी को अपने संगठन को नए सिरे से धार देना होगा. मिल्कीपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं ने सपा प्रत्याशी के लिए खास जोश नहीं दिखाई दिया. यही नहीं पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे सूरज चौधरी ने भी चुनाव से ठीक पार्टी छोड़ दी और बागी कर आजाद समाज पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर गए. इसका असर भी चुनाव में पड़ा.
कोर वोटर्स का साथ जरूरी
कोर वोटर को पाले में रखना भी सपा के लिए बड़ी चुनौती होगा. यादव मतदाताओं को सपा का कोर वोटर माना जाता है लेकिन मिल्कीपुर में यादव वोटर्स में पार्टी प्रत्याशी को लेकर नाराजगी देखने को मिली. सीट के रुझान इसी ओर इशारा कर रहे हैं. यहां के मित्रसेन यादव परिवार का दबदबा रहा है. लेकिन चर्चा है कि अवधेश प्रसाद की ओर से उनको उपचुनाव में खास तवज्जो नहीं दी गई, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा.
सूरज चौधरी की जगह परिवार मोह में बेटे को टिकट
मिल्कीपुर में पासी बनाम पासी (बीजेपी के चंद्रभान पासवान और अजीत प्रसाद दोनों पासी बिरादरी से आते हैं) की लड़ाई समाजवादी पार्टी के लिए भारी पड़ गई. सपा ने बेहद पहले यहां से अजीत प्रसाद को प्रत्याशी घोषित कर दिया लेकिन बीजेपी ने उम्मीदवार का ऐलान आखिरी समय में सूझबूझ और जातीय गुणा-गणित बिठाने के बाद किया. पासी वोट बंटने से सपा को नुकसान हुआ. बीजेपी उम्मीदवार की साफ छवि का भी फायदा बीजेपी को मिला.
'पीडीए' पर 'एक हैं तो सेफ और बटेंगे तो कटेंगे'
लोकसभा चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के फॉर्मूले पर चुनाव में उतरी समाजवादी पार्टी की साइकिल खूब दौड़ी थी. इसी फॉर्मूले की बदौलत सपा ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन कर सर्वाधिक 37 सीटों के साथ ही 33.59 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे. लेकिन उपचुनाव में पीडीए दांव की काट में बीजेपी ने एक रहेंगे सेफ रहेंगे और बटेंगे तो कटेंगे का नारा दिया. जो भारी पड़ता दिखा. कुंदरकी के बाद मिल्कीपुर में हार के बाद पार्टी को समीक्षा करनी होगी.
अखिलेश की लखनऊ से दूरी
सियासी जानकारों की मानें तो अखिलेश यादव के सांसद बनने और दिल्ली की राजनीति में सक्रियता के चलते यूपी की सियासत में पकड़ कमजोर पड़ी है. 2027 को साधने के लिए लखनऊ की दूरी को पाटना होगा.
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पहले कुंदरकी अब मिल्कीपुर...क्यों फिर लड़खड़ाई अखिलेश की साइकिल, लोकसभा चुनाव के बाद झटके पर झटके