kushinagar News: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक ऐसा गांव जहां मंदिर और मस्जिद पास - पास ही बना है. खास बात यह हा कि यहां 62 साल तक कभी भी कोई विवाद नहीं हुआ.
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kushinagar News: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक ऐसा गांव है जहां आज भी सामाजिक समरसता और धार्मिक सौहार्द कायम है. इस गांव में मंदिर और मस्जिद पास - पास ही बना है. मंदिर में आरती होती है तो मस्जिद के अजान का माइक बंद कर दिया जाता है और जब मस्जिद में अजान होता है तो मंदिर पर लगे माइक की आवाज को कम कर दिया जाता है. इतना ही नहीं मंदिर में पूजा पाठ या भंडारा होता है तो मस्जिद के मौलवी प्रसाद लेते हैं और जब मुस्लिमों का त्यौहार पड़ता है तो मंदिर के पुजारी उसमें शिरकत करते हैं. रमजान के महीने में तो मंदिर के पुजारी रोजा अफ्तारी के लिए पकवान भी भेजते हैं. सन 1965 में मंदिर और मस्जिद दोनों बना मंदिर बना तो मुस्लिम समाज ने ईंट दिया और जब मस्जिद बना तो हिंदुओं ने भी नींव के लिए ईंट दिया.
मंदिर की आधारशिला सन 1960 में रखी गई
कुशीनगर के कसया तहसील का टेकुआटार हरिहर पट्टी गांव में आज भी गंगा जमुनी तहजीब की मिशाल कायम है. मंदिर की आधारशिला सन 1960 में रखी गई थी. इसके बनने में लगभग 3 साल लगे इसके बाद 1965 में मस्जिद का निर्माण हुआ. मंदिर और मस्जिद की जमीन को एक कच्ची सड़क अलग करती है. यानी दोनों के बीच महज 30 फीट की दूरी होगी. मंदिर और मस्जिद की दूरी भले से कुछ फिट हो लेकिन मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी और मौलवी मोहम्मद मासूम के दिलों की में कोई दूरी नहीं है.रोज सुबह मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. पुजारी कन्हैया तिवारी राम राम कहते हैं तो मौलवी मस्जिद के मौलवी मोहम्मद मासूम वालेकुम सलाम कहते हैं.
62 साल तक कभी भी कोई विवाद नहीं
मंदिर और मस्जिद एक साथ बने लगभग 62 साल बीत गया लेकिन अभी तक किसी तरह का टकराव नहीं हुआ है. मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी का कहना है कि पास में मस्जिद होने से कोई परेशानी नहीं होती है. दोनों लोग अपने अपने धर्म के हिसाब से पूजा करते हैं. मंदिर में जब आरती होती है तो मस्जिद में अजान का माइक बंद कर दिया जाता है. हमारे पूजा या भंडारे में मौलवी साहब और अन्य मुस्लिम समाज के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. मस्जिद के मौलवी मोहम्मद मासूम का कहना है कि हम सभी लोग एक है बस हमारी पूजा पद्धति अलग है. पास में मंदिर होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है. मंदिर के भंडारे में मैं भी पूड़ी सब्जी खाने जाता हूं और रमजान में पुजारी चाचा हमारे लिए पकवान भेजते हैं.
मंदिर में आरती और अजान एक साथ होता है
इस गांव की सामाजिक समरसता पूरे इलाके में मिशाल मानी जाती है. इस गांव में हिंदुओं की अपेक्षा मुस्लिम आबादी अधिक है. बावजूद इसके जब मंदिर निर्माण शुरू हुआ तो मुस्लिम समाज के लोगों ने न केवल ईंट दिया बल्कि शारीरिक श्रम भी किया और जब मस्जिद की नींव पड़ी तो हिंदू समाज के लोगों ने ईंट दिया. गांव के रहने वाले बुजुर्ग व्यास तिवारी और मोहम्मद अरब का कहना है की इस गांव में आज तक मंदिर या मस्जिद को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ है. मंदिर में आरती और अजान एक साथ होता है लेकिन किसी को कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. गांव के रहने वाले युवक शैलेंद्र कुमार उर्फ मोनू गुप्ता का कहना है की हम लोगों तो याद नहीं है कि कब मंदिर और मस्जिद बना लेकिन हम लोग अपना अपना त्यौहार एक दूसरे से मिलकर मानते हैं हमारे भंडारे में मुस्लिम समाज के लोग शामिल होते हैं तो हम लोग भी उनकी ईद में सेवई खाते हैं.