Aligarh Tala: पूरे विश्व में मशहूर हैं अलीगढ़ के ताले, जानें इस कारोबार का 200 साल पुराना इतिहास
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Aligarh Tala: पूरे विश्व में मशहूर हैं अलीगढ़ के ताले, जानें इस कारोबार का 200 साल पुराना इतिहास

Aligarh Tala:  स्थानीय जानकार बताते हैं कि अलीगढ़ में ताले बनने का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. हालांकि, सन 1926 में ‘जॉनसंस एंड कंपनी’ ने जब अलीगढ़ में ताले बनाने की वर्कशॉप स्थापित की थी, तब से इसे पहचान मिलनी शुरू हुई. 

History of Aligarh Locks

प्रमोद कुमार/अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के हर जिले की अपनी एक अलग पहचान है. जिस तरह कानपुर ‘चमड़ा उद्योग’ के लिए, भदोही 'कालीन' के लिए, कन्नौज 'इत्र' और मुरादाबाद ‘पीतल नगरी’ के तौर पर देश भर में मशहूर है. इसी तरह अलीगढ़ (Aligarh) अपने ‘मजबूत तालों’ के लिए देश-विदेश में मशहूर हैं. अलीगढ़ के ताला कारोबार को जीआइ टैग भी मिल चुका है. कहा जाता है कि अलीगढ़ के तालों की चाबी अगर खो जाए तो इनको तोड़ना आसान नहीं होता. इसलिए इस ताले की मजबूती की मिसाल हर तरफ दी जाती है. ऐसे में आइये जानते हैं ताला नगरी के इतिहास के बारे में... 

200 साल पुराना है इतिहास
जानकारों की मानें तो गूगल भले ही ताले का 130 वर्ष पुराना इतिहास बताता है, मगर अलीगढ़ के ताले का इतिहास 200 वर्ष पुराना है. 200 साल पहले यहां मैनुअल ताले का काम शुरू हुआ था. यानी ताले हाथ से बनाए जाते थे, जिसकी शुरुआत राम कुमार नाम के व्यक्ति ने एक छोटे से कारोबारी ने की थी. वह नौरंगाबाद इलाके के रहने वाले थे. रामकुमार ने प्राचीन काल में ताले की कॉपी की थी. जिसकी मदद से उन्होंने हाथ से बना हुआ ताला तैयार किया था. यहां मार्केट में लंबे समय तक हाथ के बने हुए ताले बेचे जाते थे. 

130 साल पहले जॉनसंस एंड कंपनी ने शुरू किया था ताला बनाना 
130 साल पहले जॉनसन एंड कंपनी ने यहां ताला बनाना शुरू किया था. उस दौर में यह ताले इंग्लैंड से इंपोर्ट कर अलीगढ़ में बेचे जाते थे. आज अलीगढ़ में मौजूदा लगभग 5000 ताला फैक्ट्रियां मौजूद हैं, जो हर प्रकार के ताले बनाकर देश विदेशों में सप्लाई करती हैं. धीरे-धीरे यहां के तालों ने देश और दुनिया में अपनी पहचान बना ली. जिसका नतीजा है कि आज अलीगढ़ को ताला नगरी के नाम से भी जाना जाता है. 

50 वर्षों से मशीनों से बनते हैं ताले 
अब आपको बताते हैं कि ये ताले बनते कैसे हैं. ताला बनाने के लिए इसे करीब 90 तरह के प्रोसेस से गुजरना पड़ता है. इसमें करीब 200 से ज्यादा कारीगर अलग-अलग प्रक्रिया में ताले पर हाथ आजमाते हैं. इसके बाद ताले के छोटे-छोटे पार्ट्स को असेम्बल किया जाता है. एक ताला को बनाने के लिए करीब 500 लोगों की मदद लगती है. हालांकि, जैसे-जैसे डिमांड बढ़ती गई ताले बनाने की मशीनें भी आ गईं. 

पिछले करीब 50 वर्ष से अलीगढ़ में ताला मशीनों से तैयार हो रहा है. इसमें केवल 10 परसेंट ही लेबर की आवश्यकता पड़ती है. ताला कारोबारी मार्केट से पत्ती खरीद कर लाते हैं. पत्ती की पावर प्रेस से कटिंग होने के बाद कलर किया जाता है. कलर करने के बाद फिर हाथ से चढ़ाई की जाती है. इसके बाद ताले में लगभग 40 उपकरण लगाए जाते हैं. फिर ताले को पैक कर देश व विदेश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है. आज अलीगढ़ में 5000 से ज्यादा ताले की फैक्ट्री संचालित होती हैं. इन फैक्ट्रियों में हजारों लोग नौकरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. 

बढ़ रहा है ताला करोबार
वहीं, अलीगढ़ को अब ताला नगरी के साथ-साथ पीतल कारोबार के नाम से भी पहचान मिलने लगी है. ताले कारोबार में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. पिछली सरकारों में तो स्थिति यहां तक हो गई थी कि ताला कारोबारियों को अलीगढ़ से पलायन कर गुजरात में कारोबार खोलना पड़ा था. हालांकि, देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद कारोबारी अलीगढ़ की तरफ दोबारा से मूव कर गये हैं.  अब अलीगढ़ को ताले के हब के नाम से जाना जाता है. ताला कारोबारी चेतन पांडे ने बताया कि बीजेपी सरकार ने हम लोगों के लिए बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं, जिसके बाद लगातार ताला कारोबार बढ़ता हुआ नजर आ रहा है. 

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