क्या आपको पता है कि स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म कहां हुआ. उनका मूल नाम क्या था. उनकी आंखों की रोशनी कैसे चली गई और आध्यात्म की राह पर चलकर वह कैसे इतने प्रकांड विद्वान बन गए. चलिए आइए जानते हैं.
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था. मकर संक्रांति को दिन साल 1950 में उनका जन्म सरयूपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम शचि देवी और पिता का नाम राजदेव मिश्रा था.
क्या आपको पता है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य का असली नाम गिरिधर मिश्रा है. उनके इस नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. दरअसल उनके दादा की चचेरी बहन मीरा बाई की भक्त थीं, इसलिए उनका नाम गिरिधर रखा गया.
स्वामी रामभद्राचार्य की उम्र जब केवल दो महीने की थी, तभी उनकी आंखों की रोशनी चली गई. उनकी आंखों में रोहे नामक संक्रमण की बीमारी हुई थी. लेकिन अस्पताल में आंख में गलत ड्रॉप डालने से उनकी रोशनी चली गई.
जगद्गुरु प्रतिभा के धनी हैं. नेत्रहीन होने के बाद भी उनको 22 भाषाओं का ज्ञान है. यही नहीं वह 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं. महज 8 साल की उम्र में ही वह रामकथा और भागवत का पाठ करने लगे थे.
उनकी जन्मजात प्रतिभा ही थी कि पंडित मुरलीधर मिश्रा के सानिध्य में महज 5 साल की उम्र में उन्होंने केवल 15 दिनों में ही 700 श्लोकों के साथ भगवद्गीता रट ली.
सात साल की उम्र तक रामभद्राचार्य पूरी रामचरितमानस कंठस्थ कर चुके थे. धीरे-धीरे उन्होंने वेदों, उपनिषदों और पुराणों को कंठस्थ कर लिया.
अयोध्या के विद्वान ईश्वरदास महाराज ने गायत्री मंत्र के साथ गुरु दीक्षा ली. कम उम्र में ही वो रामकथा का पाठ करने लगे और कथावाचक के तौर पर उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई.
जौनपुर के आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय के बाद वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. 1974 में उन्होंने स्नातक यानी शास्त्री की उपाधि ली और फिर आचार्य यानी परस्नातक भी संपूर्णानंद से किया.
रामभद्राचार्य ने चित्रकूट जिले में दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. वह उसके आजीवन कुलपति हैं. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन्होंने अध्ययन के लिए ब्रेल लिपि का सहारा नहीं लिया.
1976 में करपात्री महाराज ने उनसे आजीवन ब्रह्मचारी और विवाह न करने का वचन लिया. साथ ही वैष्णव पंथ में दीक्षा लेने की सलाह दी. 1983 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानंद संप्रदाय में श्री श्री 1008 रामचरणदास महाराज से दीक्षा पूर्ण हुई और वो गिरिधर मिश्र की जगह रामभद्रदास यानी रामभद्राचार्य कहलाए.
रामभद्राचार्य को उनकी को पद्मविभूषण सम्मान भी मिला है. रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में एक रामभद्राचार्य भी थे.