MP Election: मध्य प्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां दावा करती हैं कि आदिवासी वोटर उनके पाले में रहेंगे. लेकिन जानिए क्या है इस पर एक्सपर्ट की राय.
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Tribal voters For MP Election: साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां काफी तेज हो गई है. भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) दोनों पार्टियां अपना दम खम लगाने में जुटी हुई हैं. दोनों पार्टियों की नजर आदिवासी वोटरों पर टिकी हुई है. क्योंकि प्रदेश में आदिवासियों की संख्या काफी ज्यादा है. इस विधानसभा चुनावी में आदिवासी कितने अहम हैं आइए जानते हैं राजनीतिक विश्लेषक और एक्सपर्ट सुभाष चंद्र की कलम से..
चुनावी मोड में आ चुके मध्य प्रदेश पर राज्य ही नहीं, देश के दूसरे प्रदेशों की भी नजर है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के सभाओं का दौर शुरू हो चुका है. हर नेता अपने हिसाब से जनता को अपने पक्ष में करने के लिए बातें कर रहा है. हाल ही में कांग्रेस ने अपने चुनावी टीम की घोषणा की है. कांग्रेस पार्टी ने भी मंगलवार को चुनाव प्रचार अभियान समिति की घोषणा कर दी. इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बनाई गई इस समिति में 32 नेता हैं और इनकी कमान सौंपी गई है पार्टी के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को.
इनके नाम की घोषणा से इतना तो तय है कि कांग्रेस आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए ऐसा कर रही है. एक समय में कांतिलाल भूरिया राज्य के सबसे बड़े आदिवासी नेता के तौर पर पहचाने जाते थे. हाल के दिनों में कांग्रेस की गुटबाजी ने उन्हें साइड कर दिया, कई गुटों में बंटी कांग्रेस के नेता कांतिलाल भूरिया को अधिक तवज्जो नहीं देते थे. अब जब कांग्रेस नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को लगा कि आदिवासियों को अपने पक्ष में करना, बेहद जरूरी है, तो भूरिया को आगे किया गया.
असल में, आदिवासी बहुल रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से कांतिलाल भूरिया पांच बार सांसद रह चुके हैं. आदिवासी समाज में उनकी बेहतर पकड़ के चलते कांग्रेस पार्टी ने उन्हें भारी विरोध के बाद भी चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख बनाया है. दरअसल, मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. वहीं राज्य की 84 सीटों पर यह समुदाय जीत हार का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता है. मध्य प्रदेश में कहा जाता है कि जिसने आदिवासी समाज का वोट जीत लिया, उसने ही सूबे की सत्ता पर काबिज होना है.
पिछले विधानसभा चुनावों के पहले तक ये वोट भाजपा को जा रहा था. बीते तीन वर्षों में जिस प्रकार से भाजपा सरकार की ओर से जनजातियों के लिए कई प्रकार की योजनाओं को लागू किया गया, उससे कांग्रेस के हाथ-पांव फूले हुए हैं. साल 2018 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 17 ही जीत सकी थी, वहीं कांग्रेस के खाते में 30 सीटें आईं. राज्य में प्रचलित कहावत के अनुसार, कांग्रेस ने ही सरकार बनाई. वहीं 2013 में भाजपा ने 47 में से 31 सीटों पर चुनाव जीता था, उस समय बिना किसी रोकटोक के भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इसलिए इस बार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों आदिवासी समुदाय को लुभाने की कोशिश में है.
वर्तमान की सभाओं को देखने पर पता चलता है कि कांग्रेस की आदिवासियों के बीच अपेक्षाकृत पकड़ कम है. हाल ही में जब इंदौर में आदिवासी युवा सम्मेलन का आयोजन किया गया और मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी थे, उस समय भी खाली कुर्सियों को लेकर सोशल मीडिया पर खूब तस्वीरें वायरल हुई थीं. बात आदिवासी की हो रही है और सम्मेलन इंदौर का ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर को चुना गया. यह कार्यक्रम आदिवासियों के मुद्दों और समस्याओं को लेकर राज्य में कांग्रेस से संवाद के लिए आयोजित किया गया था. आदिवासी युवा महापंचायत में कमलनाथ के साथ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह मौजूद थे. और तो और, नेशनल स्टूटेंड्स यूनियन ऑफ इंडिया के प्रभारी कन्हैया कुमार भी उपस्थित थे.वही कन्हैया कुमार, जो जेएनयू के बवाल से खूब सुर्खियां बटोर चुके हैं. बावजूद ये तीनों इस ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर की खाली कुर्सियों को नहीं भर सके.
दूसरी ओर, सरकारी योजनाओं में आदिवासियों की बात करें, तो केंद्र सरकार सरकार ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 15 नवंबर को देश के इतिहास और संस्कृति में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने के जश्न के हिस्से के रूप में बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने हेतु 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मंज़ूरी दी है.
15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंड की जयंती मनाई जाती है. यह दिन सभी जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने और जनजातीय क्षेत्रों व समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रयासों को फिर से सक्रिय करने के लिए भी मनाया जाता है. जनजातीय गौरव दिवस समारोह 2047 में देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर दूर-दराज के इलाकों, गांवों में रहने वाले जनजातीय लोगों को मूलभूत सुविधाएं, रोजगार, शिक्षा देने का संकल्प लेने की दिशा में एक कदम है.
(सुभाष चंद्र राजनीतिक विश्लेषक और विशेषज्ञ हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)