ICU Patients: सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में 48 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है. गाइडलाइंस समस्या का हल कितना कर पाएंगी ये कहना तो मुश्किल है लेकिन मरीज के परिवार को नई गाइडलाइंस ने कुछ ताकत जरूर दे दी है.
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Hospital ICU Guidelines: किसी मरीज को बिना जरूरत लंबे समय तक आईसीयू में भर्ती करने की शिकायत, तो किसी मरीज को जरूरत पड़ने पर आईसीयू बेड ना मिल पाने की शिकायत. देश में अलग-अलग अदालतों में ऐसी शिकायतों का अंबार लगा है. ऐसा ही एक मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सबसे बड़ी अदालत ने सरकार से पूछा कि क्या हमारे देश में आईसीयू एडमिशन को लेकर कोई दिशा-निर्देश हैं या नहीं. 2016 में आए इस निर्देश के लगभग 8 सालों के बाद आईसीयू में भर्ती किए जाने को लेकर गाइडलाइंस तैयार हो चुकी हैं.
इन गाइडलाइंस को आपको अच्छे से समझना चाहिए, जिससे आप खुद को अस्पताल के हाथों लुटने से बचा सकें. आप अपने अधिकारों को समझ पाएं और डॉक्टर से तर्कपूर्ण बातचीत कर सकें. आपका मरीज आईसीयू में रहेगा या नहीं, ये फैसला अब आप भी ले सकते हैं.
जहां सरकारी अस्पतालों में ICU बेड्स मिलना समंदर लांघने जितना मुश्किल है. वहीं कई प्राइवेट अस्पतालों में मरीज और उसके रिश्तेदारों को ये लगता है कि उन्हें बिल बनाने के लिए आईसीयू में जमा किया गया है. जबकि इलाज तो साधारण वॉर्ड में भी हो सकता था. ऐसी मुश्किलों का हल ढूंढने के लिए अब सरकार ने ये तय किया है कि किसी मरीज को आईसीयू में एडमिट करने का सही आधार क्या होना चाहिए.
ICU एडमिशन का आधार
अगर मरीज का कोई ऑर्गन फेल हो चुका है.
ऐसी आशंका है कि मरीज की मेडिकल हालत बिगड़ने वाली है.
मरीज पूरी तरह होश में नहीं है.
मरीज का ब्लड प्रेशर, पल्स या हार्ट रेट बहुत असामान्य है.
मरीज को सांस नहीं आ रही और उसे ऑक्सीजन, वेंटिलेटर की जरूरत है.
मरीज को हर मिनट मॉनिटरिंग की जरूरत है.
मरीज की बीमारी बिगड़ती जा रही है.
मरीज की कोई बड़ी सर्जरी हुई है या सर्जरी के दौरान कोई दिक्कत हो गई है. बड़ी सर्जरी यानी पेट की बड़ी सर्जरी, गले या हार्ट की बड़ी सर्जरी, एक्सीडेंट या ब्रेन इंजरी.
किस मरीज को आईसीयू में भर्ती नहीं किया जा सकता
मरीज का परिवार आईसीयू में मरीज को भर्ती करने से मना कर दे.
किसी ने जीते जी अपनी वसीयत कर दी हो कि वो आईसीयू में एडमिट नहीं होना चाहता.
ऐसे मरीज जो मरने के कगार पर हैं और मेडिकल तौर पर उनके इलाज में कोई फायदा संभव ना हो.
अगर आपदा की स्थिति हो और बेड्स सीमित हों तो प्राथमिकता के आधार पर ICU एडमिशन मिले.
इन गाइडलाइंस को 24 एक्सपर्ट्स की टीम ने मिलकर तैयार किया है. आईसीयू गाइडलाइंस टीम के सदस्य देश के जाने-माने क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ आर के मनी और उनकी टीम के साथ हमने एक प्राइवेट अस्पताल के आईसीयू का दौरा किया और समझा कि ये बेड साधारण बेड से कैसे अलग हैं और वो किस आधार पर किसी मरीज को आईसीयू में भर्ती करते हैं.
क्या लिखा है गाइडलाइंस में?
गाइडलाइंस में साफ लिखा गया है कि अगर परिवार को लगता है कि मरीज को अस्पताल में रखने से उसकी हालत में सुधार की गुंजाइश नहीं है तो वो भी ये फैसला ले सकते हैं कि मरीज को घर ले जाएं. हालांकि जहां तक संभव हो ये फैसला पैसों की कमी की वजह से ना लिया जाए. जब तक मरीज को आईसीयू में बेड नहीं मिल जाता, तब तक उसका ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, हार्ट रेट, ऑक्सीजन मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी अस्पताल की है.
कोलकाता में एक मरीज को जब जरूरत पड़ने पर आईसीयू में भर्ती नहीं किया गया और मरीज की जान चली गई तो परिवार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. 2013 से चल रहे इस केस की वजह से ही सरकार को आईसीयू गाइडलाइंस बनानी पड़ी. एक अनुमान के मुताबिक देश में प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के पास कुल 20 लाख बेड्स हैं. इनमें से आईसीयू बेड्स की संख्या केवल 1 लाख 25 हजार के लगभग है.
प्राइवेट अस्पताल में बेहिसाब खर्च
अप्रैल 2023 में सीजीएचएस यानी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सरकार ने आईसीयू का अधिकतम रेट 5400 रुपये तय किया था. इस रेट में कमरे का किराया और डॉक्टर की फीस शामिल है. हालांकि सच ये है कि आम आदमी भारत में एक प्राइवेट अस्पताल के आईसीयू बेड का औसत खर्च 30 हजार रुपये से लेकर 1 लाख रोज का होता है, जिस पर किसी भी तरह से लगाम नहीं लग पा रही है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में 48 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है. गाइडलाइंस समस्या का हल कितना कर पाएंगी ये कहना तो मुश्किल है लेकिन मरीज के परिवार को नई गाइडलाइंस ने कुछ ताकत जरूर दे दी है.