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DNA Analysis: भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 में लिखा है कि राज्य यानी सरकार किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगी. भारत का संविधान देश के 140 करोड़ भारतीयों को बराबर मानता है. लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि जब नूपुर शर्मा एक टीवी डिबेट में पैगम्बर मोहम्मद साहब का अपमान करती हैं तो तमाम मुस्लिम देश इसके विरोध में भारत के प्रति अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं. उदयपुर और अमरावती में नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर लोगों की हत्या कर दी जाती है. देश का एक खास वर्ग और सुप्रीम कोर्ट भी इस पर अपनी नाराज़गी जताता है. लेकिन जब हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया जाता है तो इस पर देश में सन्नाटा छा जाता है. कहा जाता है कि ये तो अभिव्यक्ति की आज़ादी है. ये Creative Freedom है. इस पर किसी को कैसे कोई आपत्ति हो सकती है. क्या धार्मिक अपमान को लेकर ये दोहरे मापदंड नहीं हैं?
देवी काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया?
ये सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि फिल्म-मेकर लीना मणि-मेकलई ने अपनी एक नई Documentary का पोस्टर रिलीज़ किया है, जिसमें देवी काली का अपमान किया गया है. हम आपको इस फिल्म का विवादित पोस्टर तो नहीं दिखा सकते लेकिन ये ज़रूर बता सकते हैं कि इसमें देवी काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है और उनके एक हाथ में LGBTQ समुदाय का भी झंडा है. LGBTQ का मतलब.. Lesbian, Gay, Bisexual और transgender Community से है.
Creative Freedom के नाम पर कुछ भी
हर रोज़ जब मैं आपके सामने आता हूं तो मेरी कई ज़िम्मेदारियां होती हैं. हम टीवी News को Regulate करने वाली संस्था News Broadcasting Standards Authority की गाइडलाइंस का पूरी तरह से पालन करते हैं. हम आपको किसी आतंकवादी का इंटरव्यू नहीं दिखाते हैं. Dead Body की तस्वीरें नहीं दिखाते. खून नहीं दिखाते. गंभीर मामलों में पीड़ित की पहचान नहीं बताई जाती. इसके अलावा शराब और धूम्रपान की तस्वीरें हम नहीं दिखाते हैं और हिंसक घटनाओं की रिपोर्टिंग करते हुए भी हमें कई दिशा-निर्देशों का पालन करना होता है. ये गाइडलाइंस सभी News Channels पर लागू होती हैं. हम आपको इस फिल्म का ये पोस्टर बिना ब्लर किए इसलिए नहीं दिखा रहे हैं क्योंकि हम कई तरह की ज़िम्मेदारियों से बंधे हुए हैं. लेकिन ये लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी और Creative Freedom के नाम पर कुछ भी करते हैं.
मनोरंजन के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान
सोचिए हमारे देश में News Channels पर धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगता है. हिन्दू-मुस्लिम करने के आरोप लगाए जाते हैं. लेकिन आज हम पूछना चाहते हैं कि जब मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया जाता है तो हमारे देश के डिज़ायनर बुद्धिजीवी इस पर मौन क्यों हो जाते हैं? वो भी तब जब ये ऐसे असर करता है, जैसे लोगों के DNA में धार्मिक नफ़रत का इंजेक्शन लगा दिया गया हो. विडम्बना ये है कि जो देश धार्मिक सहनशीलता के मुद्दे पर बड़े बड़े लेक्चर देते हैं, उन्हीं देशों के द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के इस अपमान को बढ़ावा दिया जाता है.
इन देशों का असली चरित्र समझना जरूरी
जिस Documentary में देवी काली का अपमान किया गया है, वो Documentary कनाडा के एक Film Festival में दिखाई जानी है. कनाडा वही देश है, जहां से कई खालिस्तानी संगठनों को आर्थिक मदद मिलती है. यानी एक तरफ़ ये देश भारत को ये बताते हैं कि उसे सभी धर्मों का सम्मान करना सीखना चाहिए और दूसरी तरफ़ यही देश ऐसी फिल्मों को प्रमोट करने के लिए मंच सजाते हैं, जिनमें हिन्दू देवी देवताओं का अपमान किया जाता है. इसलिए आज आपको इन देशों का असली चरित्र भी समझ लेना चाहिए.
फिल्म-मेकर लीना मणिमेकलई ने क्या कहा?
ये Documentary.. फिल्म-मेकर लीना मणिमेकलई ने बनाई है. उनका कहना है कि उन्होंने हिन्दू देवी देवताओं का अपमान नहीं किया है. बल्कि इसे वो अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी मानती हैं. अब सवाल है कि इस देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी धर्म के आधार पर कैसे अलग-अलग हो सकती है? उदयपुर में कन्हैया लाल अगर नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट करते हैं तो उनका सिर धड़ से अलग करके उनकी हत्या कर दी जाती है?.. लेकिन तब कोई ये नहीं कहता कि कन्हैया लाल की हत्या, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है?
नुपूर शर्मा के समर्थन पर हत्या
इसी तरह अमरावती में उमेश कोल्हे को सिर्फ़ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने भी नूपुर शर्मा का समर्थन किया था. तो क्या हम ये मान लें कि भारत में कन्हैया लाल और उमेश कोल्हे जैसे हिन्दुओं के पास अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार नहीं है?. ये अधिकार केवल उन लोगों के पास है, जो हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करते हैं और इसे Creative Freedom बताते हैं. ये Documentary कनाडा में चलाए जा रहे एक सामाजिक अभियान के तहत बनाई गई है, जिसका नाम है, Under The Tent . इस अभियान का मकसद है, कनाडा में मौजूद अलग अलग संस्कृतियों के बारे में लोगों को जागरुक करना. लेकिन फिल्म-मेकर लीना मणि-मेकलई ने जो Documentary बनाई है, उसमें देवी काली का अपमान किया गया है. इसलिए यहां ये भी सवाल है कि वो अपनी Documentary में हिन्दू देवी का अपमान करके कौन सी संस्कृति के बारे में लोगों को जागरुक करना चाहती हैं?
गृह मंत्रालय से शिकायत
सोचिए कनाडा में जो लोग इस Documentary के माध्यम से हिन्दू धर्म की संस्कृति को जानेंगे, उनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति कैसी भावना होगी?.. वो हिन्दू संस्कृति को उसी रूप में देखेंगे, जो रूप इस Documentary में पेश किया गया है. इसलिए हमें लगता है कि आज इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना बेहद ज़रूरी है. इस मामले में गृह मंत्रालय को भी एक शिकायत भेजी गई है, जिसमें इस Documentary को बनाने वाले सभी लोगों पर कार्रवाई की मांग की गई है.
ये पहली बार नहीं
हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब मनोरंजन के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं की गलत छवि पेश करके उनका अपमान किया गया है. हमारे देश में ज्यादातर व्यवस्था धर्म के आधार पर बंट चुकी है. खाना धर्म के आधार पर बंट चुका है. रंग धर्म के आधार पर बंट चुके हैं और यहां तक कि पहनावा भी धर्म के आधार पर बंट गया है. सिर्फ़ एक देश का संविधान और कानून ही था, जिसका धर्म के आधार पर बंटवारा नहीं हुआ था. लेकिन अब इस पर भी बंटवारा शुरू हो गया है.
हिन्दू देवी देवताओं का अपमान फैशन?
इसे आप मुनव्वर फारूकी और कन्हैया लाल की तस्वीरों से समझ सकते हैं. इसमें एक तरफ़ Comedian मुनव्वर फारूकी हैं और दूसरी तरफ़ कन्हैया लाल हैं. दोनों ही लोगों को धार्मिक अपमान के मामले में IPC की धारा 295A के तहत गिरफ़्तार किया गया था. लेकिन मुनव्वर फारूकी की गिरफ्तारी के बाद वो जेल से बाहर आ गए और उन्होंने एक रिएलिटी शो जीत लिया. जबकि कन्हैया लाल की जेल से बाहर आते ही निर्ममता से हत्या कर दी गई. इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे देश में हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करना फैशन क्यों बन गया है?
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#DNA : अभिव्यक्ति की आजादी का धार्मिक बंटवारा? @irohitr pic.twitter.com/Bp0yhl630h
— Zee News (@ZeeNews) July 4, 2022