Babulal Marandi Birthday: 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य बना, और बाबूलाल मरांडी को पहला मुख्यमंत्री बनने का सम्मान मिला. उन्होंने अपनी सादगी और विकास पर ध्यान देने वाली नीतियों से लोगों में नई उम्मीद जगाई.
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रांची : झारखंड में बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. उनके निवास पर सुबह से ही कार्यकर्ता और समाजसेवियों का जमावड़ा लगा हुआ है. सोशल मीडिया के माध्यम से भी उन्हें काफी बधाई मिल रही है. अगर उनके राजनितिक इतिहास की बात करें तो बाबूलाल मरांडी ने अपनी ईमानदारी और संघर्षशीलता से अलग पहचान बनाई. 11 जनवरी 1958 को गिरिडीह जिले के कोदाईबांक गांव में जन्मे बाबूलाल मरांडी का बचपन सादगी और कठिनाइयों के बीच बीता. पढ़ाई के प्रति उनकी लगन और समाज सेवा का जज्बा बचपन से ही स्पष्ट था.
शिक्षक से आरएसएस कार्यकर्ता तक का सफर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पढ़ाई पूरी करने के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपने गांव के एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया. यह नौकरी उनके परिवार के लिए आर्थिक सहारा थी, लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया, जिसने उनके करियर की दिशा बदल दी. एक बार उन्हें किसी काम से शिक्षा विभाग जाना पड़ा, जहां एक क्लर्क ने उनसे रिश्वत मांगी. इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. मरांडी ने तुरंत अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और तय किया कि वे ऐसे भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ काम करेंगे. इस घटना के बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ने का फैसला किया. संघ के अनुशासन और विचारधारा ने उनके व्यक्तित्व को निखारा और उन्हें सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया.
राजनीति में पहला कदम
मरांडी की राजनीति में एंट्री का सफर 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने भाजपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा. हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन उनका हौसला टूटा नहीं. उन्होंने अपने काम से जनता के बीच पैठ बनानी शुरू की. 1998 में उनकी मेहनत रंग लाई, जब उन्होंने संताल क्षेत्र से शिबू सोरेन जैसे बड़े नेता को हराकर इतिहास रच दिया. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री
15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य के गठन के बाद बाबूलाल मरांडी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ. उन्होंने अपनी सादगी और विकास केंद्रित नीतियों से राज्य में नई उम्मीद जगाई. हालांकि, 2003 में राजनीतिक अस्थिरता के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
अपनी पार्टी का गठन और चुनौतियां
साथ ही बता दें कि 2006 में मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का गठन किया. उनकी पार्टी ने शुरुआती चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन बाद में इसका ग्राफ गिरता चला गया. आखिरकार, 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया.
नक्सली हमले का दर्द
मरांडी के जीवन का सबसे दुखद अध्याय 2007 में आया, जब उनके बेटे अनूप मरांडी की नक्सली हमले में हत्या हो गई. इस घटना ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से गहरा आघात पहुंचाया. आज भी बाबूलाल मरांडी झारखंड की राजनीति में सक्रिय हैं और अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए राज्य की सेवा कर रहे हैं. उनका जीवन संघर्ष, सेवा और ईमानदारी की मिसाल है.
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