रिक्शा चलाने से लेकर अब मंत्रालय चलाने की तैयारी तक, ऐसी है रत्नेश सदा के संघर्ष की कहानी!
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रिक्शा चलाने से लेकर अब मंत्रालय चलाने की तैयारी तक, ऐसी है रत्नेश सदा के संघर्ष की कहानी!

बिहार में महागठबंधन से जिस तरह से सहयोगी दल नाराज नजर आ रहे हैं उसकी एक और केवल एक वजह है और वह है लोकसभी चुनाव 2024 का नजदीक आना. दरअसल बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर किस तरह से महागठबंधन के 7 दलों को सीटों की हिस्सेदारी तय होगी इसी को लेकर सभी उलझन में हैं.

(फाइल फोटो)

Ratnesh Sada Profile: बिहार में महागठबंधन से जिस तरह से सहयोगी दल नाराज नजर आ रहे हैं उसकी एक और केवल एक वजह है और वह है लोकसभी चुनाव 2024 का नजदीक आना. दरअसल बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर किस तरह से महागठबंधन के 7 दलों को सीटों की हिस्सेदारी तय होगी इसी को लेकर सभी उलझन में हैं. इस बीच महागठबंधन की सरकार से जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष मांझी ने अपना इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से ही बिहार की सियासत में भूचाल सा आ गया. दरअसल महादलित वोट बैंक में सेंध लगता देख नीतीश और तेजस्वी दोनों परेशान हो गए. ऐसे में बिहार सरकार के कैबिनेट के विस्तार की बात शुरू हो गई और इस बार जदयू के एक ऐसे विधायक को मंत्रीमंडल में जगह देने पर विचार किया गया है जिसके सहारे इस वोट बैंक को अपने हिस्से में बनाए रखने की नीतीश और तेजस्वी की कोशिश है. उस विधायक का नाम है रत्नेश सदा. 

एकदम साफ-सुथरी छवि के नेता जिनकी राजनीति शुरू होती है 2010 से और तब से लेकर 14 साल के राजनीतिक करियर में उनके ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. राजनीति को भी अपने शुरुआत  जीवन के संघर्ष की तरह ही पॉजीटिव तरीके से लेने वाले रत्नेश सदा 2010 में जेडीयू के टिकट पर सोनबरसा राज सुरक्षित सीट से पहली बार विधायक बने थे. 

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बता दें कि 16 जून को नीतीश कैबिनेट का विस्तार होनेवाला है. ऐसे में उनका नाम सबसे ऊपर है. आपको बता दें कि संघर्षों से भरे जीवन से कब राजयोग से सदा का नाता जुड़ा यह जान लेना जरूरी है. रत्नेश सदा रिक्शा चलाने का काम करते थे. इसके बाद 2010 में उनको जेडीयू के टिकट पर विधायकी में जीत हासिल हुई और 13 साल के राजनीतिक सफर के बाद अब वह नेता से मंत्री बनने की राह पर चल निकले हैं. 

हालांकि रत्नेश का राजनीतिक जीवन भी संघर्षों से भरा रहा. 1987 से ही वह राजनीति के मैदान में उतर आए लेकिन विधायक 2010 में बने. वह प्रारंभ में रिक्शा चलाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे. रत्नेश के पिताजी भी मजदूरी करते थे. हालांकि इन संघर्षों से लड़ते रहे रत्नेश ने स्नातक तक की पढ़ाई भी की. अब चुनाव आयोग में दायर हलफनामे की मानें तो उनकी कुल चल-अचल संपत्ति 1.30 करोड़ है. तीन बेटे और दो बेटियों के पिता रत्नेश सदा का जीवन बेहद सादा रहा है. वह अपनी पार्टी के महादलित प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं, उन्हें सोनबरसा राज सुरक्षित सीट से लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल हुई है. वह नीतीश कुमार के करीबी भी माने जाते हैं. 

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