Freedom Fighters of Bihar: मगफूर अहमद अजाजी ने 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होकर महात्मा गांधी का अनुसरण किया. उन्होंने 'मुठिया' अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन एकत्रित करना था. इसके तहत हर भोजन से पहले एक मुट्ठी अनाज एकत्रित किया जाता था.
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Freedom Fighters Magfur Ahmed Ajaji: आज जब पूरा देश अपनी आजादी का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस पावन अवसर पर हमें अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना चाहिए, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बिहार के मगफूर अहमद अजाजी भी ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका योगदान अक्सर भुला दिया जाता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मगफूर अहमद अजाजी का जन्म 3 मार्च 1900 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के दिहुली गांव में हुआ था. अजाजी के पिता हफीजुद्दीन हुसैन और दादा इमाम बख्श एक बहुत बड़े जमींदार थे. उनकी माता का नाम महफूजुन्निसा था. अजाजी ने हजरत फजले रहमान गंज मुरादाबादी के शिष्य बनकर 'अजाजी' की उपाधि प्राप्त की. उनकी देशभक्ति उनके पिता से ही मिली, उन्होंने यूरोपियन नील बागान मालिकों के खिलाफ किसानों को संगठित किया था.
साल 1921 में शुरू किया 'मुठिया' अभियान
जानकारी के लिए बता दें कि अजाजी के बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया और उनके पिता का देहांत लखनऊ में इलाज के दौरान हो गया. उस समय अजाजी स्कूल में पढ़ रहे थे. उनकी प्रारंभिक और धार्मिक शिक्षा मदरसा-ए-इमदादिया दरभंगा से हुई और फिर दरभंगा के नॉर्थ ब्रुक जिला स्कूल में दाखिला लिया. रॉलेट एक्ट के विरोध में उन्होंने स्कूल से निष्कासन का सामना किया. साथ ही अजाजी ने पूसा हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होकर महात्मा गांधी का अनुसरण किया. उन्होंने 'मुठिया' अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन एकत्रित करना था. इसके तहत हर भोजन से पहले एक मुट्ठी अनाज एकत्रित किया जाता था. अजाजी ने मुजफ्फरपुर की कांग्रेस और खिलाफत समितियों के लिए धन जुटाने के लिए एक सात सूत्री कार्यक्रम शुरू किया, जिससे जिला कांग्रेस के लिए जमीन खरीदी गई. बता दें कि आजादी के 78 साल बाद अब इस जमीन को तिलक मैदान मुजफ्फरपुर के नाम से जाना जाता है.
सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में किया काम
बता दें कि अजाजी ने अपने पैतृक गांव दिहुली में अपने पश्चिमी कपड़ों का अलाव जलाया और अक्टूबर 1921 तक मुजफ्फरपुर जिला असहयोग आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया. औपनिवेशिक अधिकारियों ने आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस द्वारा अजाजी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में विरोध मार्च में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया. साथ ही 1941 में अजाजी ने व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर लोगों को लामबंद किया. मुजफ्फरपुर में शांतिपूर्ण विरोध मार्च के दौरान पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किए जाने पर उन्हें गंभीर चोटें आईं. 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे में कांग्रेस कार्यसमिति के अधिवेशन में उन्होंने ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले प्रस्ताव को पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1960 में मुजफ्फरपुर में उर्दू सम्मेलन के बने अध्यक्ष
बता दें कि जब देश आजाद हो गया तो भारत सरकार ने दिल्ली के लाल किला के आजादी के दीवाने संग्रहालय में उनकी तस्वीर को सजाया है. मगफूर अहमद अजाजी 1960 में मुजफ्फरपुर में उर्दू सम्मेलन के अध्यक्ष थे, जिसमें उर्दू को बिहार में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग की गई. उनकी मृत्यु 26 सितंबर 1966 को मुजफ्फरपुर में हुई. उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए और उन्हें काजी मोहम्मदपुर कब्रिस्तान में दफनाया गया. यह अंतिम संस्कार का जुलूस शहर के इतिहास में सबसे बड़ा था जिसमें सभी वर्ग, जाति और धर्मों के लोग शामिल हुए.
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