उत्तर प्रदेश विधानसभा ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 में संशोधन कर उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024 को मंज़ूरी दे दी है. सरकार ने मौजूदा कानून को और सख्त करने के मकसद से ऐसा किया है. अब किसी को बहला- फुसलाकर, धोखे में रखकर या प्रेम जाल में फंसाकर उसका धर्म बदलने पर मुजरिम को उम्र कैद तक की सजा हो सकती है.
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को कथित लव जिहाद को रोकने के लिए उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) (UP Prohibition of Unlawful Conversion of Religion (Amendment) Bill, 2024) को मंजूरी दे दी गई है. एक दिन पहले यानी विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन ही इस बिल को सदन में पेश किया गया था, और अगले दिन मंगलवार को इस विधेयक को मंजूरी मिल गई है. अब इस बिल को विधान परिषद में पास होने के लिए भेजा जाएगा. अगर ये बिल वहां भी पास हो जाता है तो यह राज्यपाल के पास दस्तखत के लिए भेजा जाएगा. फिर इसे आखिरी मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा. हालांकि, उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण से जुड़ा यह कोई पहला कानून नहीं है. सरकार ने इससे पहले भी 2021 में धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक को विधानसभा में पास किया था.
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कथित जबरन धर्मांतरण के लिए कुछ हिंदू संगठनों द्वारा गढ़े गए शब्द 'लव जिहाद' पर रोक लगाने के इरादे से यह पहल की थी. नवंबर 2020 में जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए सरकार ने अध्यादेश जारी किया था. बाद में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा विधेयक पास होने के बाद उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 को लागू किया गया. इस तरह उत्तर प्रदेश देश का १०वां राज्य बन गया है, जहाँ कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कानून बनाया गया है. इसके अलावा भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तरखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड और ओडिशा में ये कानून अस्तित्व में है.
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पुराने कानून में क्या था ?
पुराने कानून में किसी को प्रेम जाल में फंसाकर धोखे, दबाब या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करने पर 1 से 10 साल तक सजा और 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान था.
जब पहले से कानून था तो क्यों किया गया इसमें बदलाव ?
सरकार का मानना है कि इस मामले में अपराध की संवेदनशीलता, महिलाओं की गरिमा व सामाजिक स्थिति, और एससी-एसटी समुदाय का अवैध धर्मांतरण रोकने के लिए यह महसूस किया गया था कि सजा और जुर्माने को और सख्त करने की जरूरत है, इसलिए, यह विधेयक लाया गया है.
नए कानून में क्या है ?
नए कानून पर क्या बोला विपक्ष
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ में संशोधन संबंधी विधेयक को लेकर सरकार की आलोचना की और इलज़ाम लगाया कि यह सांप्रदायिक राजनीति के जरिए लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश है.
नए कानून की प्रदेश में कोई जरूरत नहीं है: मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी
इस बीच नए कानून का ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के सद्र मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने विरोध किया है. उन्होंने कहा, "नए कानून की प्रदेश में कोई जरूरत नहीं है.
इस कानून में सख्त से सख्त धाराएं शामिल की जा रही हैं. जबकि, धर्म स्थल विधेयक और लव जिहाद पर इससे पहले भी कानून बन चुके हैं. उन कानूनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. उन्हीं धाराओं में पुलिस के जरिए एफआईआर लिखी जाए."
क्या कहते हैं कानून के एक्सपर्ट ?
"अगर किसी अंतर्धार्मिक शादी में किसी महिला को जबरन पति का धर्म मानने के लिए बाध्य किया जा रहा हो, तो ऐसे मामले में ये कानून निसंदेह महिलाओं के हक़ में होगा, लेकिन अगर पीड़ित महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है, तो फिर उसे इस कानून से फायदा मिलने के बजाये नुक्सान ही उठाना होगा. देश की अदालतों में महिलाओं से जुड़े कानूनों की सुनवाई और उसके निपटाने की प्रक्रिया इतनी पेचीदा और अव्यावहारिक है कि उसका फायदा पीड़ित महिलाओं को नहीं मिल पाता है. इस कानून का हश्र भी तीन तलाक़ और दहेज़ उत्पीड़न कानूनों जैसा होगा, जहाँ अंततः आरोपी को लाभ और पीड़ित को नुक्सान उठाना पड़ता है. इस कानून के दुरुपयोग की भी सम्भावना बढ़ेगी. इसलिए, महिलाओं को अगर इन्साफ देना है तो उसके लिए कानून से ज्यादा देश के पितृसत्तात्मक समाज और सोच को बदलने की ज़रूरत है."
ज्योति कुमारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
क्या इस्लाम में है लव जिहाद का प्रावधान ?
लव जिहाद के इलज़ाम पर मुफ़्ती मोहम्मद मुकर्रम कहते हैं, इस्लाम में शादी के लिए किसी बालिग लड़का या लड़की की मर्ज़ी का शामिल होना बेहद ज़रूरी है. यह निकाह की पहली शर्त है. बिना मर्ज़ी के किसी लड़की/ लड़के को जबरन, धोखे से या किसी तरह का लालच देकर निकाह करना हराम है. वहीँ, निकाह के लिए ये भी शर्त है कि लड़की और लड़का दोनों को ईमान वाला होना यानी मुसलमान होना ज़रूरी है. अगर निकाह में लड़की या लड़का मुसलमान नहीं है, तो फिर निकाह जायज़ नहीं है. अगर कोई मुसलमान इस नियत से किसी गैर- मुस्लिम लड़की से शादी करता है, कि बाद में उसे इस्लाम में दाखिल कर लिया जाएगा, तो इस सूरत में भी उसकी शादी या निकाह इस्लाम की नज़र में नाजायज है. मुफ़्ती मोहम्मद मुकर्रम कहते हैं, जब इस्लाम बिना निकाह के किसी गैर- मर्द या औरत को आपस में मिलने-जुलने की ही इज़ाज़त नहीं देता है, तो फिर दूसरे मजहब की लड़कियों को बहला- फुसलाकर या धोखे में रखकर निकाह करने को जायज़ कैसे ठहराया जा सकता है. अगर कोई ऐसा करता है, तो उसका इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है.
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मुस्लिम लड़कियों की हिन्दू लड़कों से शादियाँ लोक विमर्श का मुद्दा नहीं बनता है
लव जिहाद के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्त्ता और शोधार्थी डॉक्टर फैज़ अहमद किदवई कहते हैं, "अंतर्धार्मिक शादियाँ कोई नया मसला नहीं है. भारत में हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के स्त्री-पुरुष शुरू से ही अंतर्धार्मिक शादियाँ करते आ रहे हैं. उच्च वर्ग और मध्यम वर्गों में ऐसी शादियाँ खूब हो रही है, लेकिन उसकी कोई चर्चा नहीं होती है. लेकिन जब आर्थिक तौर से कमजोर वर्गों में ऐसी अंतर्धार्मिक शादियाँ होती है, और वो किसी वजह से नहीं चलती है, टूट जाती है, तो लड़कियां लव जिहाद का इलज़ाम लगा देती है, और कट्टर हिंदूवादी संगठन के लोग और सियासतदान इसमें कूद पड़ते हैं, क्योंकि उन्हें इसका फायदा मिलता है. इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर हिन्दू वोटों का एक ख़ास पार्टी की हिमायत में धुर्विकरण हुआ है और इससे मुसलमानों की छवि बिगाड़ने और उनका दानवीकरण करने में मदद मिलती है. बड़ी तादाद में मुस्लिम लड़कियां भी हिन्दू लड़कों से शादी कर रही हैं, लेकिन ये लोक विमर्श का मुद्दा नहीं है.
शादी के बाद फ़ोर्सफुल कन्वर्जन पर लगेगा रोक
पत्रकार और थियेटर आर्टिस्ट समर आफरीन कहती हैं, नाम और अपना मजहब छुपाकर किसी लड़की को अपने प्यार में फंसाना एक आपराधिक कृत्य है. आपराधिक नेचर का कोई भी इंसान ऐसा कर सकता है. इस तरह के मामले अक्सर मजदूरों या लॉ इनकम ग्रुप वर्ग में देखा गया है. वहीँ, आर्थिक रूप से कुछ पिछड़े मुसलमानों में एक आम धारणा यह भी देखा गया है कि वो किसी को मुसलमान बनाने को एक पून्य कार्य के तौर पर देखते हैं, भले ही उनका खुद इस्लाम से कोई वास्ता न हो. यही वजह है कि मुट्ठी भर ऐसे मामलों की वजह से एक आपराधिक कृत्य को इस्लाम से जोड़कर इसे लव जिहाद का नाम दे दिया गया, जबकि 2016 में केरल में मुस्लिम पुरुष शेफिन जहाँ और उसकी हिन्दू से मुस्लिम बनी बीवी हदिया के केस में गठित NIA ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा है कि देश में संगठित तौर पर लव जिहाद का कोई मामला नहीं है. तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी संसद में इस मुद्दे पर अपना बयान दे चुके हैं कि देश में संगठित लव जिहाद का कोई मामला नहीं है. हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि लड़कियां प्रेम में पड़कर लड़कों से शादी तो कर लेती हैं, लेकिन बाद में उसे परिवार का हवाला देकर अपने पति का धर्म अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है. जैसा की रांची के नेशनल शूटर तारा सहदेव और उसके मुस्लिम पति रकीबुल उर्फ़ रणजीत के केस में हुआ था. रकीबुल का परिवार कुछ साल पहले ही हिन्दू से इस्लाम कबूल किया था. तारा को उसने अपनी असली पहचान छुपाकर शादी की और बाद में उसे इस्लाम अपनाने के लिए प्रताड़ित करने लगा. ऐसे मामलों में ये कानून महिलाओं को ज़रूर सुरक्षा प्रदान करेगा.