Basant Utsav at Ajmer Dargah : अजमेर दरगाह में बसंत उत्सव; कब और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत ?
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Basant Utsav at Ajmer Dargah : अजमेर दरगाह में बसंत उत्सव; कब और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत ?

Basant Utsav at Ajmer Dargah: अजमेर शरीफ दरगाह में मंगलवार को बसंत उत्सव मनाया गया. कहा जाता है कि चिश्तिया सिलसिले की इस रस्म बसंत का आगाज़ हज़रत अमीर खुसरो ने किया था. आइये जानते हैं कब और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत? 

Basant Utsav at Ajmer Dargah : अजमेर दरगाह में बसंत उत्सव; कब और कैसे हुई इस परम्परा की शुरुआत ?

अजमेर: पिछले साल अजमेर दरगाह को शिव मंदिर बताये जाने को लेकर इसपर काफी विवाद हुआ था. यहाँ तक कि इस सम्बन्ध में विश्व हिन्दू परिषद् की एक याचिका को स्थानीय कोर्ट ने कबूल भी कर लिया है, और इस मामले में अभी सुनवाई भी चल रही है.
इस बीच इस साल जनवरी में अजमेर दरगाह में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की सालाना उर्स में भाजपा शासित राज्यों सहित आधे दर्ज़न से ज्यादा  राज्यों के मुख्य मंत्रियों और केन्द्रीय मंत्रियों ने मजार पर चादर चढ़ाई.

अजमेर दरगाह भले ही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की हो लेकिन इस दरगाह में आस्था रखने वाले और बाबा से प्रेम करने वालों में कोई भेद नहीं है. मुल्क का फिरकावाराना माहौल चाहे जैसा भी हो, दरगाह में हमेशा एकता और भाईचारे का माहौल बना रहता है. यही वजह है कि रोजाना हजारों की तादाद में हिंदू अकीदतमंद दरगाह में जियारत के लिए आते हैं. यहाँ इस्लामिक पर्व- तैयोहारों के साथ हिन्दू पर्व और उत्सव भी उतने ही भक्ति भाव से मनाया जाता है. अजमेर दरगाह भारत के गंगा- जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल है. 

मंगलवार को बाबा के इस दरगाह में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में वसंत उत्सव हर साल की तरह इस साल भी धूमधाम से मनाया गया. इस मौके पर अमीर खुसरो के लिखे गीत गाये गए. शाही कव्वाल खुसरो की रचना 'क्या खुशी और ऐश का सामान लाती है वसंत', 'ख्वाजा मोइनुद्दीन के घर आज आती है वसंत' जैसे गीत गाए. 

वसंत उत्सव में शामिल होने वाले अजमेर दरगाह दीवान के वारिस सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने बताया कि वसंत उत्सव की यहाँ खास अहमियत है, क्योंकि यह न सिर्फ प्रकृति के सौंदर्य से जुड़ा है, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की भी अलामत है. सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने  कहा, "भारत की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है. वसंत का त्योहार हिंदुस्तान की परंपरा और संस्कृति को जोड़ने का काम करती है. " 

कब और कैसे शुरू हुई अजमेर दरगाह में वसंत उत्सव मनाने की परम्परा 
सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने बताया कि दरगाह में वसंत उत्सव मानने का रिवाज निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह से जुड़ा है. एक बार की बात है,  जब निज़ामुद्दीन औलिया के भांजे का निधन हो गया. इस बात से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा था. तब वह लंबे अरसे तक अपनी कुटिया में ही बैठे रहते थे. उनके चाहने वाले उनके दर्शन करने के लिए आते थे.  इसी दौरान, अमीर खुसरो क‍िसी यात्रा पर थे. उन्होंने रास्ते में देखा कि हिंदू लोग वसंती फूल लेकर मंदिर में पूजा करने के लिए जा रहे हैं. उन्होंने इन लोगों से पूछा कि आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ? जवाब में लोगों ने कहा कि हम यह फूल अपने भगवान को अर्पित कर रहे हैं. अमीर खुसरो इससे बहुत मुतासिर हुए और उन्होंने वहां एक वसंती गीत की रचना की और उसे गाया. जब ये गीत निज़ामुद्दीन औलिया के कानों में पड़े, तो वह अपनी कुटिया से बाहर आ गए. तब से यह परंपरा अजमेर शरीफ में शुरू हो गई और आज तक चली आ रही है. इस रस्म का मकसद न सिर्फ एक त्योहार मनाना नहीं है, बल्कि यह हमारे मुल्क की विभिन्न सभ्यताओं और धर्मों के बीच मेल-मिलाप और सौहार्द को बढ़ावा देना है. 

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