नई दिल्लीः हिंद महासागर में हथियारों की होड़ मची है. चीन और पाकिस्तान के बढ़ते गठजोड़ के चलते भारत के लिए अपनी समुद्री रक्षा क्षमताओं को उन्नत स्तर पर ले जाना काफी अहम है. नई दिल्ली इस दिशा में लगातार जुटा हुआ है. अब रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि भारत की परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी को 2025 के आखिर तक नौसेना में शामिल कर लिया जाएगा. ये समुद्री सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण कदम होगा.
3 साल तक चला ट्रायल
रिपोर्ट्स की मानें तो भारत की परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिदमन को इस साल आधिकारिक रूप से नौसेना में शामिल कर दिया जाएगा. ये न्यूक्लियर-पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) है, जो करीब तीन साल से गहन समुद्री परीक्षणों से गुजर रही है. ये ट्रायल इसकी गुप्त संचालन क्षमता, परमाणु सुरक्षा और मिसाइल तैनाती क्षमताओं को सुनिश्चित करने के लिए किए गए हैं.
आईएनएस अरिदमन का निर्माण भारत की अरिहंत-क्लास पनडुब्बियों के तहत किया गया है. पिछले तीन साल में इस पनडुब्बी के प्रोपल्शन सिस्टम, स्टील्थ विशेषताएं और गहरे समुद्र में संचालन क्षमता को चेक किया गया. इन ट्रायल का उद्देश्य इसे अलग-अलग तरह के समुद्री हालात में चुपचाप और प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए तैयार करना है.
एडवांस्ड है INS अरिदमन
आईएनएस अरिदमन भारत की तीसरी परमाणु पनडुब्बी है. इससे पहले नौसेना के पास परमाणु ऊर्जा से चलने वाली आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात पनडुब्बी हैं. हालांकि आईएनएस अरिदमन ज्यादा एडवांस्ड है. इसकी लंबाई 10 मीटर ज्यादा है, जिससे इसका विस्थापन भार 1 हजार टन से ज्यादा बढ़ गया है. ये अधिक सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) ले जाने में सक्षम होगी. नौसेना में कमीशनिंग के बाद ये भारत की क्षमताओं को और मजबूत करेगी.
चीन काफी आगे बढ़ा
बता दें कि हिंद महासागर में हथियारों की होड़ काफी तेजी से चल रही है. चीन अपनी समुद्री क्षमताओं को तेजी से मजबूत कर रहा है. अभी चीन के पास 6 परमाणु पनडुब्बी, 6 अटैक परमाणु पनडुब्बी, 48 एआईपी तकनीक से लैस परंपरागत पनडुब्बियां हैं. भारत के पास अभी एआईपी तकनीक से लैस पनडुब्बियां नहीं हैं. हालांकि इसे लेकर भारत की जर्मनी से बातचीत चल रही है लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि सौदा होने की स्थिति में भारत को पहली पनडुब्बी 2030 तक मिल पाएगी. वहीं पाकिस्तान भी अपनी नौसेना को तेजी से एडवांस कर रहा है.
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