जब चांद पृथ्वी से पूरा दिखाई देता है उसे पूर्मिणा कहते है और जब चांद नहीं दिखाई देता तो उसे अमावस्या कहते हैं. इन दोनों के बीच ही चंद्रमा कि गतिविधि चलती रहती है. इन दोनों स्थितियों का कारण एक ही है बस पोजिशन का अंतर होता है. यह सब आकाशीय पिंडों के आकार, गति, रोशनी, कोण और दिशा पर निर्भर करता है. तो चलिए समझते हैं आखिर यह कैसे होता है.
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि ग्रह और उपग्रह क्या होते हैं. सुर्य एक तारा है जो तारे की परिक्रमा करे वह ग्रह कहलाता है और जो आकाशीय पिंड ग्रह के चारों और परिक्रमा करे वह उपग्रह कहलाता है. ग्रह और उपग्रह में अपना प्रकाश नहीं होता, यह दोनों ही तारे के प्रकाश के कारण चमकते हैं. ठीक इसी तरह पृथ्वी एक ग्रह है जो सूर्य का चक्कर लगा रही है और चंद्रमा एक प्राकृतिक उपग्रह है जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है. पृथ्वी की तरह चंद्रमा के पास भी अपना प्रकाश नहीं है यह भी सूर्य के प्रकाश से चमकता है.
काई भी आकाशीय पिंड दो तरह से गति करते हैं एक वो अपनी ही धुरी पर घूमते हैं और दूसरा ये कि वो किसी दूसरे पिंड के चारों ओर घूमते हैं. दिलचस्प बात यह है कि चंद्रमा के अपनी धुरी पर घूमने और पृथ्वी की परिक्रमा करने में जो समय लगता है वो समान है लगभग 29.5 दिन में वो पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है और इतने ही समय में वो अपनी धुरी पर भी एक चक्कर पूरा करता है यही कारण है कि पृथ्वी से चांद का एक हिस्सा ही चमकता है. कभी भी पृथ्वी से चांद की दूसरी साइड नहीं दिखती, हमेशा एक हिस्सा ही पृथ्वी की ओर रहता है और दूसरा हिस्सा पृथ्वी से बाहर की ओर रहता हैं.
अमावस्या की स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य की रोशनी चांद के उस हिस्से पर पड़ती है जो पृथ्वी से दिखाई नहीं देता. इसी को हम अंधेरी रात या काली रात कहते हैं इस स्थिति में चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी एक सीधी रेखा में 180 डिग्री पर होते हैं जब यहां से चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा की ओर गति करता है तो धीरे धीरे सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के उस हिस्से ही ओर बढ़ने लगता है जो पृथ्वी से दिखाई देता है इसीलिए हमें चांद बढ़ता हुआ प्रतीत होता है. पूर्णिमा की घटना ठीक इसी की उल्टी होती है.
पूर्णिमा के समय भी चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी एक सीधी रेखा में 180 डिग्री पर होते हैं लेकिन यहां पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच होती है और सूर्य की रोशनी सीधे चांद के उस आधे हिस्से पर पड़ रही होती है जो पृथ्वी से पूरी तरह दिखाई देता है. सूर्य कि रोशनी चांद से परिवर्तित होकर पृथ्वी के उस हिस्से पर पड़ रही होती हैं जो हिस्सा सूर्य की ओर नहीं है या जहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच रही. आसान भाषा में कहें तो चांद से टकराकर सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के उस हिस्से पर पड़ता है जहां पृथ्वी पर रात हो रही होती है और इसे ही चांदनी रात या पूर्णिमा कि रात कहते हैं. यानि जिसे हम चांद की रोशनी समझते हैं वास्तव में वो सूर्य का प्रकाश ही होता है जो चांद से टकराकर हमारे पास तक पहुंच रहा होता है. जब यहां से चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा की ओर गति करता है तो धीरे धीरे सूर्य का प्रकाश चांद के उस हिस्से ही ओर बढ़ने लगता है जो पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है. इसी कारण पृथ्वी से हमें चांद घटता हुआ नजर आता है और यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है.
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