How did Lord Rama Die: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, दुनिया में जब-जब पाप और अनाचार बढ़ता है तो भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं और दुष्टों का संहार करते हैं. सतयुग में वे भगवान राम के रूप में धरती पर आए थे. लेकिन लंका से लौटने के कई वर्षों बाद कुछ ऐसा घटित हुआ कि उन्हें जल समाधि लेकर दुनिया को छोड़ना पड़ गया. उसके बाद अयोध्या का क्या हुआ था.
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह बात सर्विविदित है कि भगवान न तो जन्म लेते हैं और न ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं. हालांकि धरती पर धर्म, सत्य को बरकरार रखने के लिए वे समय-समय पर मानव रूप में आते रहे हैं और कार्य पूरा करके फिर से बैकुंठ प्रस्थान करते रहे हैं. जब सतयुग में भगवान ने श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लिया तो सबने खुशियां मनाई थी. अनेक राक्षसों और दानवों के राजा रावण का वध करके वे वापस लौटे तो अयोध्या वासियों ने जय-जयकार की थी. हालांकि बाद में एक पीड़ादायक घटना हुई और उन्होंने बैकुंठ जाने के लिए सरयू नदी में जल समाधि ले ली.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अग्नि परीक्षा में पास होने के बावजूद जब प्रभु श्रीराम ने लोगों की आलोचना को देखते हुए माता सीता को त्याग दिया था तो इससे वे बहुत आहत हुईं और वन चली गईं. वहां पर उन्होंने लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया. बड़े होने पर उनका अनजाने में श्रीराम की सेना के साथ युद्ध हुआ. बाद में माता सीता ने लव-कुश को सच्चाई बताकर अपने पिता श्रीराम के पास अयोध्या भेज दिया और स्वयं धरती की गोद में समा गईं. इस घटना से भगवान राम अंदर ही अंदर टूट गए.
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, एक अन्य घटना भी है. एक बार यमराज संत का भेष बनाकर अयोध्या पहुंचते हैं और श्रीराम से गुप्त वार्ता का आग्रह करते हैं. जब श्रीराम उनसे मिल रहे होते हैं तो वे लक्षमण को पहरे पर खड़ा कर किसी को भी आने से मना कर देते हैं. उसी अवधि में महर्षि दुर्वासा श्रीराम से मिलने के लिए उनके दरबार पहुंचते हैं. जब प्रभु राम के आदेश की वजह से लक्षमण उन्हें अंदर जाने नहीं देते. इस पर दुर्वासा उन्हें श्राप देने की चेतावनी देते हैं. जिसके चलते लक्षमण उन्हें अंदर भेज देते हैं.
जब भगवान राम महर्षि दुर्वासा को अचानक अपने अपने दरबार में देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं. अपने आदेश की अवज्ञा होने पर क्रोध में आकर वे लक्षमण को राज्य से निकाल देते हैं. अपने भाई के आदेश का पालन कर लक्षमण राज्य से निकल जाते हैं और बेहद दुख व पीड़ा के बीच सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले लेते हैं. माता सीता के पश्चात अपने छोटे भाई के भी अकस्मात चले जाने से प्रभु श्रीराम बेहद आहत हो जाते हैं. वे फैसला कर लेते हैं कि अब उनके पृथ्वी से जाने का समय आ गया है.
इसके बाद वे अपने कुलगुरू महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचते हैं, जहां गुरुदेव उन्हें बैकुण्ठ गमन की आज्ञा दे देते हैं. उनके फैसले के बारे में जानकर सब लोग उनसे मिलने पहुंचते हैं. जहां पर वे विभिषण को लंका पर धर्म के अनुसार शासन करने का आदेश देते हैं. जबकि जामवंत को द्वापर युग के अंत तक धरती पर रहने को कहते हैं. वे हनुमान को अपनी इच्छानुसार धरती पर रहकर संकीर्तन करने और सुग्रीव को उनकी इच्छानुसार अपने साथ बैकुंठ चलने का वरदान देते हैं. इसके बाद वे सरयू नदी पर जाते हैं और वहां जल समाधि लेकर गो लोक को प्रस्थान कर जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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