Mysore Mahal Queen: भारत के सबसे अमीर राजा के महल में 750 किलो सोने का सिंहासन, चांदी की नक्काशी, हीरे-मोती से जड़ी सजावट तो दिख जाती है, लेकिन इस महल से जुड़ा एक ऐसा रहस्य है, जो 400 सालों तक इस राज परिवार का पीछा करता रहा.
India Richest King Mysore Palace: जब भी बात राजा-महाराजाओं की होती है तो भारत के इस महल की चर्चा जरूर होती है. भारत में राजशाही भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन राजपरिवारों का शाही रुतबा आज भी बरकार है. फिर चाहे ग्वालियर का जय विलास पैलेस हो या मैसूर का अम्बा विलास पैलेस. भारत के सबसे अमीर राजा के महल में 750 किलो सोने का सिंहासन, चांदी की नक्काशी, हीरे-मोती से जड़ी सजावट तो दिख जाती है, लेकिन इस महल से जुड़ा एक ऐसा रहस्य है, जो 400 सालों तक इस राज परिवार का पीछा करता रहा.
भारत में जब राजा-महाराजाओं के पैलेस की बात होती है तो सबसे आलीशान पैलेसों में गिनती होती है मैसूर पैलेस की. साल 1897 से 1912 के बीच महाराजा कृष्णराजेंद्र वाडियार IV ने करवाया था.
मैसूर पैलेस के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं कि मैसूर पैलेस की मौजूदा इमारत से पहले यह महल चंदन की लकड़ी से बना था, लेकिन साल 1897 में राजकुमारी जयालक्षमणि की शादी के दौरान चंदन की लकड़ी से बना महल आग लगने की वजह से तबाह हो गया, जिसके बाद ये खूबसूरत पैलेस बनाया गया था.
मैसूर पैलेस को अंबा विलास पैलेस से नाम से भी जाना जाता है. यह महल ताज महल के बाद यह देश का दूसरा सबसे घूमा जाने वाला जगह है. इस महल को जब भी आप देखने जाए तो इसके सिंहासन को जरूर देखें. ये सिंहासन 750 किलो सोने से बना है. ये इतना लंबा-चौड़ा है कि उसपर बैठने के लिए सीढ़ी लगाई गई है. इस महल को बनाने में 15 साल का वक्त लग गया.
महाराजा कृष्णराजेंद्र वाडियार IV भारत के सबसे अमीर राजा थे. महल के बनाने में पानी की तरह पैसा बहाया गया. महल की दीवारों पर सोने की परत चढ़ाई गई. नक्काशी से लेकर कांच के गुंबज वाले छ्त इसका आकर्षण है. दरबार हॉल की सजावट में सोने की पत्तियों का इस्तेमाल किया गया है. छत पर सोने की जटिल नक्काशी की गई है.
महल के भीतर 12 मंदिर हैं. दशहरा के मौके पर जहां देवी परिक्रमा के लिए निकलती है. सोने-चांदी के सजे हाथियों के काफिले की अगुआई करने वाले हाथी की पीठ पर 750 किलो शुद्ध सोने का अम्बारी (सिंहासन) होता है, जिसमें माता चामुंडेश्वरी की मूर्ति रखी होती है.
दशहरा पर मैसूर के राजमहल की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। लाखों लाइटों की रौशनी से महल सोने का चमक जाता है. सोने-चांदी से सजे हाथियों का काफिला 21 तोपों की सलामी के बाद मैसूर राजमहल से निकलता है . लोग दूर-दूर से इसे देखने पहुंचते हैं.
Housing.com के मुताबिक 31,36,320 वर्ग फीट में फैले मैसूर पैलेस की वैल्यूएशन करीब 3,136.32 करोड़ रुपये है. महल के एक हिस्से को अब म्यूजियम बना दिया गया है, जहां आप टिकट लेकर जा सकते हैं और राजा-महाराजाओं के ठाठ-बाट को करीब से देख सकते हैं.
महल के अंदर शाही परिवार के लिए बनाए गए निजी कक्ष बेहद भव्य और आकर्षक हैं. महल को राजाओं और रानियों के रहने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गया था, हर एक चीज़ शाही ठाठ को दिखती है. मैसूर महल के अंदर कई हॉल ऐसे भी हैं जहाँ शाही कार्यक्रम, दरबार और विवाह समारोह आयोजित होते थे.
मैसूर का वाडियार राजवंश भारत का सबसे अमीर राज परिवार रहा है, लेकिन इस परिवार का एक रानी का श्राप था, जो 400 सालों तक परिवार का पीछा करता रहा. खुद वाडियार राजघराना मानता है कि एक श्राप 400 साल से उनका पीछा कर रहा था, जिस कारण उनके वंश में संतान पैदा नहीं हो रही थी.
कहा जाता है कि साल 1612 में दक्षिण के सबसे ताकतर विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद वाडियार राजा ने विजयनगर की सारी संपत्ति लूट ली थी. विजयनगर की तत्कालीन महारानी अलमेलम्मा के पास काफी सोने, चांदी और हीरे-जवाहरात थे. वाडियार ने महारानी के पास दूत भेजा और उन्हें सारे गहने वाडियार साम्राज्य को सौंपने को कहा. रानी अलमेलम्मा ने जब गहने देने से इनकार किया तो वाडियार ने शाही फौज भेजकर उनसे जबरन खजाना हथिया लिया था.
इससे दुखी होकर रानी अलमेलम्मा ने वाडियार के राज परिवार को श्राप दिया था कि जिस तरह तुम लोगों ने मेरा घर उजाड़ा है उसी तरह तुम्हारा राजवंश संतानविहीन हो जाए. श्राप देने के बाद रानी अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
श्राप से बचने के लिए मैसूर महल के अंदर अलामेलम्मा की मूर्ति की देवी के रूप में पूजा की जाने लगी, लेकिन श्राप से मुक्ति नहीं मिली. वडियार के राजपरिवार के इकलौते बेटे की मौत हो गई थी. जिसके बाद से राजपरिवार में बेटा नहीं हुआ. मैसूर के राजपरिवार को उत्तराधिकारी के रूप में किसी को गोद लेना पड़ता है. राजपरिवार उत्तराधिकारी के रूप में जिसे गोद लेता है वह हमेशा परिवार का ही कोई व्यक्ति होता है.
मैसूर के 27वें राजा यदुवीर की शादी 27 जून 2016 को डूंगरपुर की राजकुमारी तृषिका सिंह से हुई थी, राजकुमारी तृषिका सिंह जब मैसूर की रानी बनकर आई तो उन्होंने 400 साल पुराने श्राप को तोड़ दिया और राजपरिवार में बेटे का जन्म हुआ. बता दें कि यदुवीर वाडियार ने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स से इंग्लिश और इकोनॉमिक्स की डिग्री हासिल की है और वो वाडियार के मौजूदा राजा हैं.
वाडिय़ार परिवार ने मैसूर पैलेस के एक हिस्से को म्यूजियम बनाया है. वहीं हेरिटेज होटल से भी राज परिवार की अच्छी कमाई होती है. मैसूर का राज परिवार रॉयल सिल्क ऑफ मैसूर नाम से सिल्क के कारोबार में शामिल है.
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