पूरे दक्षिण एशिया के किसान टिड्डियों के हमले से परेशान हैं. उनकी मेहनत से उगाई फसल को टिड्डी चट कर रहे हैं. कोरोना संकट के बीच टिड्डियों का आगमन चौंकाने वाला है. इस संकट का संबंध कोरोना वायरस के संक्रमण से भी है.
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नई दिल्ली: भारत से पाकिस्तान तक खेतों में खड़ी फसलों को टिड्डियों का दल तहस नहस कर रहा है. इनके हमले से किसानों को लगभग 10 हजार करोड़ का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है.
मॉनसून के बाद बढ़ सकता है टिड्डी संकट
संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने दक्षिण एशिया में टिड्डी संकट को देखते हुए आशंका जताई है कि मॉनसून के बाद से टिड्डियों का हमला एक फिर तेज हो सकता है. क्योंकि इसी सीजन में टिड्डियों को प्रजनन काल होता है. जिसके बाद टिड्डियों की एक नई फौज किसानों की मेहनत से उगाई फसल को नष्ट करने के लिए चल पड़ेगी.
देश में रह रह कर हो रही बरसात की वजह से टिड्डियों को प्रजनन के लिए अनुकूल समय मिल रहा है. एक अनुमान के मुताबिक लगभग हर महीने में हो रही बरसात की वजह से टिड्डियों की प्रजनन क्षमता 400 गुना बढ़ गई है. जो कि बेहद घातक साबित हो सकती है.
भारत में टिड्डियों का हमला अभी राजस्थान, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से, मध्य प्रदेश और हरियाणा-पंजाब के किसान झेल रहे हैं. लेकिन अगर टिड्डियों की संख्या बढ़ी तो देश के कुछ और हिस्से इसकी चपेट में आ सकते हैं.
खाद्य सुरक्षा के लिए टिड्डी हैं भारी खतरा
टिड्डियों से इंसानों या जानवरों को सीधे तौर पर किसी तरह का खतरा नहीं है. लेकिन टिड्डियों के दल फसलों को नष्ट करते अपरोक्ष रुप से उन्हें भूखे मरने के लिए मजबूर कर देती हैं.
टिड्डियों का मुख्य भोजन हरी भरी फसलें हैं. आम तौर पर टिड्डियों को झुंड करोड़ो की संख्या में चलता है. माना जाता है कि एक वर्ग किलोमीटर में 4 से 8 करोड़ तक व्यस्क टिड्डियां होती हैं. ये लगभग 35 हजार लोगों के खाने लायक भोजन चट कर जाती हैं.
टिड्डियों का संकट केवल दक्षिण एशिया तक ही सीमित नहीं है. इसने दुनिया के 60 देशों को अपनी चपेट में ले रखा है जिसमें से ज्यादातर अफ्रीका और एशिया के देश हैं. टिड्डियों का आतंक दुनिया के 20 फीसदी हिस्से पर है जो कि संसार के 10 फीसदी लोगों को भूखा मरने के लिए मजबूर कर सकते हैं.
कोरोना संकट के कारण टिड्डियों की संख्या बढ़ी
भारत और पाकिस्तान जैसे दक्षिण एशियाई देशों में डेजर्ट लोकस्ट नाम की टिड्डी प्रजाति ने कहर मचा रखा है. यह हर साल ईरान और पाकिस्तान होते हुए भारत तक का सफर तय करती हैं. इनका प्रजनन मार्च और अक्टूबर के महीनों में होता है.
ईरान और पाकिस्तान में इन महीनों में इनका प्रजनन रोकने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जाता है. लेकिन इन दोनों ही देशों में इस साल कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की वजह से दवाओं का छिड़काव नहीं हो पाया. क्योंकि कोविड-19 के प्रसार के कारण ईरान और पाकिस्तान में टिड्डियों को मारने वाली दवा पहुंच ही नहीं पाई. जिसकी वजह से टिड्डियों का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ गया.
भारत में 27 सालों बाद इतनी ज्यादा संख्या में टिड्डियां देखी जा रही हैं.
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