कांग्रेस है कि मानती नहीं, 0 पर आउट होने के बावजूद दिल्‍ली में गिना रही अपनी सफलताएं
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कांग्रेस है कि मानती नहीं, 0 पर आउट होने के बावजूद दिल्‍ली में गिना रही अपनी सफलताएं

Delhi Results 2025: पहले कांग्रेस के थिंक टैंक ने अपना शाबाशी दिखाई और अब दिल्ली कांग्रेस के मुखिया इसे अलग नजरिए से देख रहे हैं. यह तब है जबकि कांग्रेस को उसके सहयोगी दलों का भी पूरा समर्थन नहीं मिला. सपा और तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के बजाय AAP का समर्थन किया. इसे कांग्रेस समझ रही है कि नहीं?

कांग्रेस है कि मानती नहीं, 0 पर आउट होने के बावजूद दिल्‍ली में गिना रही अपनी सफलताएं

Congress Delhi Election: भारत के सुदूर अवधी गांवों में एक कहावत कही जाती है.. जिसमें किसी चिड़िया के झुंड को गिना जाता है. तीतर के दो आगे तीतर.. तीतर के दो पीछे तीतर. सही संख्या का तो पता नहीं चलता लेकिन इस कहावत का तंज पता चल जाता है. ऐसी ही गिनती पिछले कई सालों से कांग्रेस अपने प्रदर्शन पर करती आ रही है. अब देखिए ताजा उदाहरण दिल्ली का. दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार तीसरी बार जीरो सीट मिली है. इस जीरो में भी कांग्रेस लगातार अपनी जीत देख रही है. पहले कांग्रेस के थिंक टैंक ने अपना शाबाशी दिखाई और अब दिल्ली कांग्रेस के मुखिया देवेंद्र यादव इसे अलग नजरिए से देख रहे हैं. उनका दावा है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में अपनी स्थिति को बेहतर बनाया है और वह मतदाताओं के बीच यह धारणा स्थापित करने में सफल रही कि यह मुकाबला दोतरफा नहीं बल्कि त्रिकोणीय था. उन्होंने इसे समझाया भी है.

'इस बार का जीरो पिछली बार से अलग'
असल में दिल्ली कांग्रेस के मुखिया ने जीरो और जीरो में फर्क बताया है. देवेंद्र यादव का कहना है कि इस बार महत्व अलग है क्योंकि पार्टी को 6.34% मत प्राप्त हुए हैं, जो पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 2% अधिक है. उनका तर्क है कि यह कांग्रेस के लिए भविष्य में अपने मूल वोटबैंक दलित, अल्पसंख्यक और वंचित वर्ग को वापस लाने की दिशा में सकारात्मक संकेत है. कांग्रेस नेता ने कहा कि हम लगातार तीसरी बार विधानसभा में नहीं पहुंच सके, यह हमारे लिए व्यक्तिगत नुकसान है, लेकिन हमने यह धारणा बनाने में सफलता पाई कि यह केवल आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला नहीं था.

आप को हराने में रोड़ा बन गए.. 
यह बात तो सही है कि दिल्ली चुनाव परिणामों में दिलचस्प पहलू यह भी रहा कि कांग्रेस ने भले ही एक भी सीट न जीती हो लेकिन 13 सीटों पर AAP की हार में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई. इन सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को जितने वोट मिले, वे AAP की हार के अंतर से अधिक थे. शायद इस वजह से ही यह सवाल भी उठने लगा कि क्या कांग्रेस ने AAP को कमजोर कर बीजेपी की जीत का रास्ता आसान कर दिया. देवेंद्र यादव का भी मानना है कि कांग्रेस के बढ़ते वोट शेयर से यह साबित होता है कि पार्टी का जनाधार फिर से मजबूत हो रहा है.

तो फिर गठबंधन सहयोगियों का कांग्रेस से किनारा क्यों?
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को उसके सहयोगी दलों का भी पूरा समर्थन नहीं मिला. सपा और तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के बजाय AAP का समर्थन किया. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तर्क दिया कि दिल्ली में बीजेपी को हराने के लिए AAP सबसे मजबूत स्थिति में थी. इस कदम ने गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए क्योंकि यह दर्शाता है कि क्षेत्रीय दल दिल्ली में कांग्रेस को एक प्रभावी ताकत के रूप में नहीं देख रहे. इसका जवाब शायद अभी कांग्रेस के पास नहीं होगा.

अब संगठन को मजबूत करने पर फोकस?
यही होना भी था और होना भी चाहिए. कांग्रेस अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर रही है. देवेंद्र यादव ने बताया कि पार्टी अब अपने कैडर को मजबूत करने और दिल्ली की जनता के मुद्दों को मुखरता से उठाने पर ध्यान देगी. उनका कहना है कि AAP सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष को कांग्रेस अपने पक्ष में भुना सकती है. उन्होंने AAP सरकार पर भ्रष्टाचार, बुनियादी सुविधाओं की कमी और प्रशासनिक विफलताओं का आरोप लगाते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी’ वाली छवि धूमिल हो चुकी है.

तो क्या कांग्रेस फिर से खड़ी हो सकेगी?
राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी विश्वसनीयता वापस हासिल करना है. पिछले 15 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस के लिए यह जरूरी है कि वह अपने परंपरागत मतदाताओं दलित, मुस्लिम और वंचित वर्ग का विश्वास फिर से जीते. देवेंद्र यादव का कहना है कि अगर हमारे 32-34% कोर वोटबैंक ने हमें समर्थन दिया होता तो नतीजे अलग हो सकते थे. अब देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस क्या करने वाली है.

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