महाभारत के पांडवों से जुड़ा है बागपत का इतिहास, क्षेत्र में सबसे ज्यादा बागों की वजह से मुगलों ने रखा ये नाम, जानें पूरा इतिहास
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महाभारत के पांडवों से जुड़ा है बागपत का इतिहास, क्षेत्र में सबसे ज्यादा बागों की वजह से मुगलों ने रखा ये नाम, जानें पूरा इतिहास

History of Baghpat: हर शहर का अपना एक इतिहास होता है, बागपत की बात की जाए तो इसका इतिहास कुछ ज्यादा ही लंबा और रोचक है. महाभारत और मुगलकाल के साथ यहां सिंधु , गुप्त  और मध्य कालीन सभ्यता तक के साक्ष्य मिलते हैं. 

महाभारत के पांडवों से जुड़ा है बागपत का इतिहास, क्षेत्र में सबसे ज्यादा बागों की वजह से मुगलों ने रखा ये नाम, जानें पूरा इतिहास

Baghpat News: उत्तर प्रदेश का बागपत जिला अपने आप में कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को समेटे हुए है. महाभारतकाल में इसे 'व्याघप्रस्थ' के नाम से जाना जाता था. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान को कौरवों से पांडवों के लिए मांगा था. पांडवों और कौरवों के बीच खेली गई शह-मात की ऐतिहासिक घटना का स्थल भी बागपत में मौजूद है. कहते हैं कि दुर्योधन और शकुनि की साजिश से बचने के लिए पांडव बरनावा के लाक्षागृह से सुरंग के रास्ते बागपत पहुंचे थे. मुगल काल में इसका नाम बागपत पड़ा, जो इसे बागों के शहर के रूप में पहचान दिलाता है. 

महाभारत और मुगलकाल समेत सिंधु सभ्यता के समेत 
1997 में बागपत को मेरठ से अलग कर स्वतंत्र जिला बनाया गया. जिले में कई पुरातात्विक स्थल और धरोहरें हैं जो इसके प्राचीन इतिहास को जीवंत करती हैं. सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई में सिंधु कालीन मृदभांड, तांबे की तलवारें, रथ, कब्रें आदि मिलीं, जो यह साबित करती हैं कि बागपत सिंधु और ताम्रनिधि सभ्यता का भी साक्षी रहा है. बरनावा में महाभारत कालीन लाक्षागृह के अवशेष भी मिल चुके हैं.

बागपत की सांस्कृतिक विविधता
बागपत का नाम गन्ना बेल्ट के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां गन्ने की खेती व्यापक स्तर पर होती है. इसके अलावा यहां की भाषा, संस्कृति, और खान-पान में दिल्ली और हरियाणा का प्रभाव भी दिखाई देता है, जो यमुना किनारे बसे इस जिले की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है.

बागपत में कई धार्मिक स्थल
जिले के कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी हैं, जैसे पुरामहादेव मंदिर, मां मनसा देवी मंदिर और बालैनी का महर्षि वाल्मीकि मंदिर. मान्यता है कि अयोध्या से निष्कासन के बाद सीता माता यहीं रहीं और लव-कुश का जन्म भी इसी मंदिर में हुआ. पुरा में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर भी ऐतिहासिक महत्व रखता है, जहां भगवान परशुराम ने शिवलिंग की स्थापना की थी. 

ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना बागपत
इतना ही नहीं, बागपत के विभिन्न स्थानों पर समय-समय पर कई महत्वपूर्ण मूर्तियां, सिक्के और अन्य अवशेष भी मिले हैं. जो इसके इतिहास की गहराई को और उजागर करते हैं. रटौल गांव में गुप्त कालीन मूर्तियां, सघावली अहीर गांव में कुषाणकालीन सिक्के, और बामनौली, रंछाड़, कुर्डी, काकौर जैसे स्थानों पर खुदाई में मिलीं प्राचीन वस्तुएं, बागपत की प्राचीनता को प्रमाणित करती हैं. 

बागपत का इतिहास न केवल महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, बल्कि सिंधु, हड़प्पा, गुप्त और मध्यकालीन सभ्यताओं के प्रमाण भी यहां मिलते हैं. यह जिला ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना होने के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है. इसके लिए यहां की धरोहरों के संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि बागपत का यह समृद्ध इतिहास और विरासत आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रह सके.

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