UCC News: नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई उत्तराखंड सरकार के खिलाफ पहुंचे हाईकोर्ट, लिव इन रिलेशनशिप और तलाक के नियमों को चुनौती
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UCC News: नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई उत्तराखंड सरकार के खिलाफ पहुंचे हाईकोर्ट, लिव इन रिलेशनशिप और तलाक के नियमों को चुनौती

UCC News: यूसीसी में तलाक और लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को लेकर एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने उत्तराखंड की धामी सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. वहीं जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने UCC में दिये गए नियम-कानूनों के खिलाफ सख्त नाराजगी जताई है.  

UCC News: नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई उत्तराखंड सरकार के खिलाफ पहुंचे हाईकोर्ट, लिव इन रिलेशनशिप और तलाक के नियमों को चुनौती

Nainital News: उत्तराखंड में लागू की गई समान नागरिक संहिता (UCC)के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस याचिका में UCC के तहत तलाक और लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़े प्रावधानों को लेकर सवाल उठाए गए हैं. बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई द्वारा दायर की गई इस याचिका पर जवाब देने के लिए हाईकोर्ट ने धामी सरकार को 6 सप्ताह का समय दिया है.

UCC को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल ?
उत्तराखंड सरकार ने 27 जनवरी 2025 को राज्य में  समान नागरिक संहिता लागू कर दी थी. इस कानून के तहत शादी और लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत कराना अनिवार्य कर दिया गया है. बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन में रहने वालों पर तीन महीने की जेल या 25,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है. साथ ही, अगर महिला लिव-इन रिलेशनशिप में गर्भवती हो जाती है, तो बच्चे के जन्म के 30 दिन के भीतर इसकी सूचना देना जरूरी होगा. 

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि UCC के कुछ प्रावधान मुस्लिम और पारसी समुदायों के पर्सनल लॉ से मेल नहीं खाते. उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. इसी वजह से इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. 

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी दी चुनौती
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी UCC के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.  इसके अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह कानून मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ है और इसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

उन्होंने तर्क दिया कि संविधान में अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की बात कही गई है, लेकिन यह महज एक मार्गदर्शक सिद्धांत है, न कि अनिवार्य कानून. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर देश में IPC और CRPC के प्रावधान हर राज्य में अलग-अलग हो सकते हैं तो फिर UCC को पूरे देश पर क्यों थोपा जा रहा है ?

सरकार का पक्ष क्या है ?
उत्तराखंड सरकार ने इस कानून को लागू करने से पहले लोगों से सुझाव लिए थे और कैबिनेट में इसे मंजूरी दी गई थी. सरकार का कहना है कि UCC लागू होने से सभी नागरिकों के लिए समान कानून होंगे और इससे कानूनी विवादों में कमी आएगी.

हालांकि, इस पर राजनीतिक और कानूनी बहस तेज हो गई है. हाईकोर्ट में इस पर सुनवाई इसी सप्ताह हो सकती है और जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल इस मामले की पैरवी करेंगे. 

अब देखना होगा कि हाईकोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाता है और क्या उत्तराखंड में लागू UCC में कोई बदलाव किया जाएगा या नहीं. 

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