'दिल्ली में बैठकर हर घटना की निगरानी संभव नहीं...' सुप्रीम कोर्ट का बयान
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'दिल्ली में बैठकर हर घटना की निगरानी संभव नहीं...' सुप्रीम कोर्ट का बयान

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में आज जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली मॉब लिंचिंग को लेकर बयान दिया है. कोर्ट का कहना है कि इसके हर एक घटना की निगरानी संभव नहीं है.   

'दिल्ली में बैठकर हर घटना की निगरानी संभव नहीं...' सुप्रीम कोर्ट का बयान

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम दिल्ली में बैठकर देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली मॉब लिंचिंग (भीड़ की हिंसा) की हर एक घटना की निगरानी नहीं कर सकते. यह व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है. हम भीड़ की हिंसा को लेकर पहले ही 2018 में  विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर चुके है. अगर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हो रहा है या कोई शख्श पीड़ित है तो वो इसके लिए सक्षम ऑथोरिटी का रुख कर सकते है. वो आला अधिकारी या कोर्ट का रुख सकते हैं. 

गौरक्षकों को लेकर दायर याचिका
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन नाम की ओर से दायर याचिका में गौरक्षा के नाम पर होने वाली घटनाओं का हवाला देते हुए कहा गया था कि सरकार इन्हें रोक पाने  के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रही है. याचिकाकर्ता का कहना था कि  सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में तहसीन पूनावाला बनाम भारत सरकार केस में जो दिशानिर्देश जारी किए थे, उन पर राज्य अमल नहीं कर रहे है. 

'SC का आदेश सब पर लागू'
आज  जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा है कि हम 2018 में दिए फैसले में ही भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी कर चुके है. आर्टिकल 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी दिशानिर्देश सब ऑथोरिटी पर लागू होते है. उन पर अमल करना सभी राज्यों को की सवैंधानिक जिम्मेदारी है. अगर इस फैसले का पालन नहीं हो रहा तो लोगों के पास क़ानूनी राहत के विकल्प मौजूद है. वो इसे आलाधिकारी, कोर्ट के सामने रख सकते है. सुप्रीम कोर्ट का काम हर घटना का माइक्रो मैनेजमेंट करना नहीं है.

'एक समान मुआवजे का आदेश नहीं दे सकते'
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी साफ किया कि मॉब लिंचिंग के केस में एकसमान मुआवजे के लिए वो निर्देश नहीं दे सकता.  ऐसे केस में कितना मुआवजा दिया जाए, ये हर एक केस में अलग अलग होगा. मसलन इस तरह की हिंसा के शिकार एक शख्श को अगर ज्यादा चोट लगती है, दूसरे को कम चोट लगती है तो दोनों के लिए एक समान मुआवजा तय कर देना ज्यादती होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कोर्ट और ऑथोरिटी का विशेषाधिकार बनता है कि वो  केस में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर मुआवजे की रकम तय करे.

गौरक्षा के लिए बने क़ानून पर सुनवाई से इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने  इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यों में गौ रक्षा के लाये कानून की वैधता पर  सुनवाई से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कानूनो की वैधता को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. इन पर सीधे सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई करना ठीक नहीं होगा. 

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