भरतपुर: 289 वर्ष से दुर्ग के रक्षक के रूप में विराज रहें है अर्धनारीश्वर
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भरतपुर: 289 वर्ष से दुर्ग के रक्षक के रूप में विराज रहें है अर्धनारीश्वर

र्धांगेश्वर शिव सदियों से लोहागढ़ दुर्ग के रक्षक के रूप में यहां विराजमान है. अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिव की आराधना और पूजा करने से श्रद्धालु में ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भय और शोक आदि दोष दूर हो जाते हैं.

अर्धांगेश्वर शिव मंदिर

Bharatpur: भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग के पास सुजाग गंगा नहर के तट पर स्थित अनूठे अर्धांगेश्वर शिव मंदिर अपने आप में अनोखा है. भरतपुर के लोहागढ़ दुर्ग के चारों तरफ फैली सुजान गंगा नहर के किनारे पर एक छोटे से मंदिर में विराजे अर्धांगेश्वर शिव बीते करीब 289 वर्ष से दुर्ग के रक्षक के रूप में विराजमान हैं. बृज क्षेत्र का यह एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है, जिसमें अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिवलिंग स्थापित है. मान्यता है कि इस शिव मंदिर में पूरे मनोभाव से यदि श्रद्धालु कोई मनोकामना करता है, तो वह अवश्य पूरी होती है. 

अर्धनारीश्वर स्वरूप में स्थापित है शिव

मंदिर में अर्धनारीश्वर स्वरूप में स्थापित शिवलिंग इसकी महत्ता को और भी बढ़ा देता है. बताया जाता है कि करीब 289 वर्ष पुराने मंदिर में सच्चे मन से माथा टेकने वाले की मनोकामना अवश्य पूरी होती है. सावन मास में इस शिव मंदिर में दर्शन-पूजन करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. यह अनूठा शिवलिंग ज्ञान गंगा किनारे खिरनी घाट पर स्थापित है. अर्धांगेश्वर शिव मंदिर में करीब 4 फीट का शिवलिंग विराजमान है. पीले पत्थर से निर्मित इस शिवलिंग पर चारों तरफ शेषनाग को उकेरा गया है. साथ ही शिवलिंग के शीर्ष भाग में शिव और पार्वती का आधे-आधे चेहरे की भी शिल्पकारी कर निर्मित किया गया है. अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिवजी जटाधारी और मां पार्वती को नथवेशर रूप में उकेरा गया है. पास ही में नंदी भी विराजमान हैं. इसी तरह का एक और प्राचीन शिवलिंग मंदिर परिसर के पश्च भाग में भी स्थापित हैं, जिस पर शिवजी की त्रिनेत्र रूप को प्रदर्शित किया गया है.

लोहागढ़ दुर्ग के स्थापना काल से है स्थापित

वैदिक पंडित प्रेम शर्मा ने इस अनूठे मंदिर की महिमा के बारे में बताते हुए कहा कि मंदिर और शिवलिंग की असल स्थापना वर्ष तो कोई नहीं जानता, लेकिन बताया जाता है कि लोहागढ़ दुर्ग की स्थापना काल में ही इसकी भी स्थापना की गई थी. साथ ही मान्यता ये भी है कि ये शिवलिंग इसी स्थान पर प्रकट हुआ था. लोगों का मानना है कि अर्धांगेश्वर शिव सदियों से लोहागढ़ दुर्ग के रक्षक के रूप में यहां विराजमान हैं. पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि शास्त्रों में अर्धनारीश्वर स्वरूप शिव की आराधना के कई प्रकार के महत्व का बखान किया गया है. अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिव की आराधना और पूजा करने से श्रद्धालु में ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, भय और शोक आदि दोष दूर हो जाते हैं.

श्रावण मास में उमड़ती है भीड़

पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि मंदिर की मान्यता और आस्था के चलते यूं तो हर दिन श्रद्धालु यहां पर जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करने आते हैं लेकिन, श्रावण मास में यहां पर दर्शन के लिए काफी भीड़ रहती है. पूरे श्रावण मास में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा से मंदिर आकर भगवान शिव की आराधना और पूजा करते हैं. पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि मंदिर की देखभाल और रखरखाव का कार्य परंपरागत तरीके से स्वर्णकार समाज करता आ रहा है. कुछ समय पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य भी स्वर्णकार समाज ने ही करवाया था.

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