जिस विदेशी जगह पर सावरकर ने अंग्रेजों की नाक में किया था दम.. वहां पहुंचे PM मोदी, दिलचस्प है कहानी
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जिस विदेशी जगह पर सावरकर ने अंग्रेजों की नाक में किया था दम.. वहां पहुंचे PM मोदी, दिलचस्प है कहानी

PM Modi France Visit: पीएम मोदी ने अपने फ्रांस की 3 दिवसीय यात्रा में फ्रांसीसी शहर मार्सिले पहुंचकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी वीर सावरकर को श्रद्धांजलि दी. मार्सिले शहर का सावरकर से केनेक्शन जुड़ा है.  

जिस विदेशी जगह पर सावरकर ने अंग्रेजों की नाक में किया था दम.. वहां पहुंचे PM मोदी, दिलचस्प है कहानी

PM Modi France Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय फ्रांस यात्रा पर थे. वहीं इसके अंतिम चरण में वह मार्सिले गए. मंगलवार 11 फरवरी 2025 को फ्रांसीसी शहर मार्सेली पहुंचे पीएम ने इस शहर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर से जुड़े एक महत्वपूर्ण इतिहास को याद किया.  

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सावरकर को दी श्रद्धांजलि 
मार्सेली को लेकर पीएम ने कहा,' मार्सेली का भारत की आजादी में खास महत्व है. वीर सावरकर ने यहीं से साहसिक पलायन का प्रयास किया था.'पीएम ने कहा,' मैं मार्सेली के लोगों और उस दौरान के फ्रांसीसी आंदोलकारियों का धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने वीर सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों न  सौंपने की बात की थी. वीर सावरकर आज भी हमारी पीढ़ियों को प्रेरित करते हैं.' 

मार्सिले और सावरकर का कनेक्शन 
बता दें कि मार्सेली और वीर सावरकर का कनेक्शन साल 1910 में जुड़ता है. सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से एक राजनैतिक कैदी के रूप में लंदन से भारत ले जाया जा रहा था. इस दौरान 8 जुलाई साल 1910 को उनका एस एस मोरिया जहाज फ्रांस स्थित मार्सेली के बंदरगाह पर पहुंचा. सावरकर ने इसे भागने का अवसर बनाया और फ्रांस में शरण लेने की आशा में एक पोर्टहोल के जरिए जहाज से बाहर निकलने की कोशिश की. वह तट पर तैरने लगे, हालांकि इससे पहले की वह सफल होते उन्हें फ्रांसीसी अधिकारियों ने अंग्रेजों को सौंप दिया. 

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फ्रांस का आरोप 
सावरकर के भागने के प्रयास से फ्रांस और ब्रिटने के बीच काफी कूटनीतिक तनाव रहा. फ्रांस का आरोप था कि सावरकरक की वापसी अअंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन था. इस मामले में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. वहीं साल 1911 में मामले को लेकर स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सावरकर की गिरफ्तारी में अनियमितता थी, हालांकि ब्रिटेन उन्हें वापस देने के लिए बाध्य नहीं था. फ्रांसीसी सरकार का तर्क था कि सावरकर को ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपना अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करना था. 

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