जानिए कौन हैं पंडी राम मंडावी? छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकार जिन्हें मिला पद्मश्री सम्मान
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जानिए कौन हैं पंडी राम मंडावी? छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकार जिन्हें मिला पद्मश्री सम्मान

Padma Awards 2025: छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के पंडीराम मंडावी को आदिवासी परंपरा और संस्कृति की झलक दिखाने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया ह. सीएम विष्णुदेव साय ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर बधाई दी है.

 

जानिए कौन हैं पंडी राम मंडावी? छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकार जिन्हें मिला पद्मश्री सम्मान

Pandi Ram Mandavi: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की. पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में छत्तीसगढ़ के पंडी राम मंडावी का नाम भी शामिल है. वे नारायणपुर जिले के गोंड मुरिया जनजाति के काफी जाने-माने कलाकार हैं. उन्होंने अपनी कला में आदिवासी परंपराओं और संस्कृति को जीवंत रूप दिया है. उन्होंने 16 साल की उम्र में अपने पिता से यह कला सीखी और अपनी प्रतिभा के बल पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ख्याति प्राप्त की. आइए जानते हैं कौन हैं पंडी राम मंडावी.

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मुख्यमंत्री साय ने दी बधाई
गढ़बेंगाल निवासी पंडीराम मंडावी को उनकी लकड़ी कला और आदिवासी परंपरा और संस्कृति की झलक दिखाने के साथ ही उनके वाद्य यंत्र के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया जा रहा है. पंडीराम मंडावी के परिवार में बेहद खुशी का माहौल है. उन्हें बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. सीएम विष्णुदेव साय ने भी उन्हें बधाई दी है.

16 साल की उम्र में सीखा हुनर
नारायणपुर जिले के 68 वर्षीय पंडीराम  मंडावी को यह प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी शिल्पकला में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिया जाएगा. गोंड मुरिया जनजाति से संबंधित मंडावी ने बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हुए उसे वैश्विक पहचान दिलाई है. वे खासकर बस्तर बांसुरी, जिसे स्थानीय भाषा में 'सुलुर' कहा जाता है के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं. इसके अलावा उन्होंने लकड़ी पर उकेरी चित्रकारी, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से बस्तर की कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. उनकी कला न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि विदेशों में भी बहुत सराही गई है. पंडीराम मंडावी ने मात्र 16 साल की उम्र में अपने पूर्वजों से इस कला को सीखा और पिछले पांच दशकों से इसे संजोने और आगे बढ़ाने में समर्पित हैं.

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आदिवासी कला संस्कृति और परंपरा को निखारा
ज़ी मीडिया से खास बातचीत में पंडीराम मंडावी ने बताया कि उन्होंने 16 साल की उम्र से अपने पिता के साथ काम करते हुए इस कला को सीखा और उन्होंने लकड़ी की कला में अपनी आदिवासी कला संस्कृति और परंपरा को निखारा. वे अपनी कला के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर हुए और उन्हें विदेश जाने का मौका भी मिला. उनके बेटे बलदेव मंडावी ने कहा कि उनके पिता को मिला पद्मश्री सम्मान पूरे परिवार और नारायणपुर के लिए बहुत बड़ा सम्मान है. मेरे पिता मेरे आदर्श हैं और मैं भी उनके नक्शे कदम पर चल रहा हूं.

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