Arvind Kejriwal: दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब में अपनी सत्ता बचाना हो गया है. क्योंकि उसका दिल्ली मॉडल बुरी तरह फेल हो चुका है. आम आदमी पार्टी को अपना वर्चस्व बचाने के लिए एक नए मॉडल की आवश्यकता है.
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Delhi Assembly Elections: दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया, लगातार पिछले तीन चुनावों से जीत हासिल करती आ रही आम आदमी पार्टी (AAP) को बुरी तरह शिकस्त का सामना करना पड़ा है. साथ ही लंबे अरसे से राजधानी में सत्ता की तलाश में लगी भारतीय जनता पार्टी को शानदार जीत मिली है. अचानक आम आदमी पार्टी को मिली इस शिकस्त पर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि AAP को पंजाब में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक 'पंजाब-विशेष विकास मॉडल' तैयार करना होगा, क्योंकि इसका 'दिल्ली मॉडल' को अब जनता ने नकार दिया है.
भारतीय जनता पार्टी ने 70 में से 48 सीटें जीतकर 27 साल बाद पहली बार दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है. दिल्ली में करारी हार के बाद पंजाब में भी विपक्षी पार्टियां अब और आक्रामक होकर AAP को 2027 के विधानसभा चुनावों में चुनौती देने की कोशिश करेंगे. राजनीतिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिल्ली में AAP की हार से पार्टी को पंजाब में एक नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा. AAP को अब अपनी एकजुटता बनाए रखनी होगी और अपनी सरकार के प्रदर्शन में सुधार करना होगा.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक AAP की दिल्ली में हार से पंजाब में विपक्षी पार्टियों को फायदा मिलेगा. अब पंजाब भी चुनावी मोड में आ जाएगा और AAP का पूरा ध्यान इस राज्य पर केंद्रित होगा. AAP के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखना होगा ताकि उसके विधायक किसी दूसरी पार्टी में न जाएं. दूसरी चुनौती यह होगी कि सरकार का प्रदर्शन बेहतर किया जाए. इस वजह से अरविंद केजरीवाल पंजाब के मामलों में ज्यादा दखल देंगे ताकि पार्टी की छवि सुधारी जा सके.
विपक्ष की रणनीति पर बात करते हुए एक्सपर्ट्स ने कहा कि अगर शिरोमणि अकाली दल (SAD) और BJP मिलकर चुनाव लड़ते हैं,तो वे AAP को कड़ी चुनौती दे सकते हैं. अगर वे अलग-अलग लड़ते हैं तो उनकी स्थिति कमजोर रहेगी. वहीं कांग्रेस को भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नई रणनीति बनानी होगी.
दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार AAP के लिए दूसरा बड़ा झटका है. इससे पहले 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को पंजाब की 13 में से सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. जबकि दिल्ली की 7 सीटों पर AAP और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े थे और यहां भाजपा ने सभी सात सीटें अपने नाम कर ली थीं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, उनके मंत्री, सांसद और विधायक दिल्ली में AAP के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. उन्होंने पंजाब में 50 हजार सरकारी नौकरियां देने, 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 850 मोहल्ला क्लीनिक खोलने और एक निजी थर्मल पावर प्लांट खरीदने जैसे कामों को गिनाया था. जबकि विपक्षी दलों ने AAP सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है, कर्ज बढ़ रहा है और नशे की समस्या गंभीर होती जा रही है.
AAP की हार के बाद पंजाब में विपक्षी दलों ने कहा कि दिल्ली के लोगों ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी की 'झूठी बातों' को उजागर कर दिया है और भगवंत मान सरकार 'गलत वादों' के सहारे लोगों को गुमराह कर रही है. अब जब AAP मुश्किल दौर से गुजर रही है, विपक्षी दलों को इसे कमजोर करने का बड़ा मौका मिल गया है. कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने दावा किया कि अब AAP की पंजाब इकाई में अंदरूनी कलह शुरू होगी. भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के बीच सत्ता संघर्ष होगा.
केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने X पर लिखा,'दिल्ली में इतिहास बदल गया, 27 साल बाद BJP को जबरदस्त जनादेश मिला है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकासशील भारत के नजरिये में जनता के विश्वास का प्रमाण है.' बिट्टू ने AAP पर सबसे भ्रष्ट नेताओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया और कहा कि अब पंजाब में भी पार्टी का पतन निश्चित है.