Karpuri Thakur Birth Anniversary: कर्पूरी ठाकुर किसके हैं और यह सवाल क्यों वाजिब है? इसके लिए हमें बिहार के अति पिछड़ा वर्ग के महत्व को समझना होगा, जो 2005 के बाद से अचानक बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा खिलाड़ी बन गया है. कर्पूरी ठाकुर वैसे तो अति पिछड़ा वर्ग के नेता हैं, लेकिन उनको अपना बनाने में ईबीसी फैक्टर का अहम रोल है.
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Bihar Politics: विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी राजनीतिक पार्टियों के बीच 24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर का 101वां जयंती (Karpuri Thakur Birth Anniversary) समारोह मनाने की होड़ लगी हुई है. सियासी संग्राम में सभी दल खुद को कर्पूरी ठाकुर की विरासत का असली उत्तराधिकारी मान रहे हैं. अब सवाल यह उठता है कि आखिर कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) किसके हैं. कर्पूरी ठाकुर के बहाने अति पिछड़े वर्ग के वोटरों को साधने की कोशिश की जा रही है. जेडीयू और बीजेपी का दावा है कि कर्पूरी ठाकुर को सम्मान देने का काम एनडीए ने किया है और कांग्रेस के अलावा लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने भी कर्पूरी ठाकुर का अपमान किया है.
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बिहार की राजनीति में 24 जनवरी की अहमियत राजनीतिक रूप से बहुत ज्यादा है. पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर की इस दिन जयंती मनाई जाती है. राज्य के राजनीतिक दलों में उनकी विरासत पर दावा जताने की होड़ सी मची रहती है. एक बार फिर राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल अतिपिछड़ों की गोलबंदी करने के लिए कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने में जुट गए हैं. कांग्रेस और वामपंथी दलों को छोड़ लगभग सारे दल कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाते हैं.
पटना में तीनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी के कार्यालयों के बाहर कर्पूरी ठाकुर जयंती को लेकर पोस्टर भी दिखने लगे हैं. जेडीयू ने अपने पार्टी कार्यालय के सभागार का नाम ही जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम पर रख दिया है तो RJD भी सभागार का नाम कर्पूरी सभागार कर दिया है.
पूर्व मंत्री और एमएलसी नीरज कुमार कहते हैं, जननायक कर्पूरी जी के सम्मान में जेडीयू कार्यालय में हर जिले में कर्पूरी सभागार बनाए गए हैं. 38 जिलों में जननायक कर्पूरी ठाकुर छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं. नरेंद्र मोदी जी के कैबिनेट में स्व. कर्पूरी ठाकुर जी के बेटे हैं. यह अपने आप में बड़ा सम्मान है. इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के प्रयासों से आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से नवाजा.
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नीरज कुमार बोले, लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के चलते जननायक कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ा था. कांग्रेस और आरजेडी फर्जी दावा करते हैं. जननायक कर्पूरी जी का अपमान लालू प्रसाद यादव से ज्यादा किसने किया है. उन्होंने कहा कि दस्तावेज झूठ नहीं बोलते हैं.
नीरज कुमार ने एक पेपर दिखाते हुए कहा, शिवनंदन पासवान जी विधानसभा के तत्कालीन उपाध्यक्ष तब सदन की कुर्सी पर बैठे थे. उन्होंने लालू प्रसाद यादव से अनुरोध किया कि कर्पूरी जी सदन में आने वाले हैं. मुझे उन्हें लेने जाना था पर मैं किसी कारणवश नहीं जा पाउंगा. कृपया उन्हें बुलवा लें, लेकिन लालू प्रसाद बोले,मेरे जीप में तेल नहीं है. वह रिक्शा से चले आएं. दो बार मुख्यमंत्री रहे, गाड़ी क्यों नहीं खरीद लेते हैं.
बीजेपी एमएलसी नवल किशोर यादव ने कहा, लालू प्रसाद यादव कर्पूरी ठाकुर के कभी भी शुभचिंतक नहीं रहे और न ही कर्पूरी जी के विचारों को इन लोगों ने फॉलो किया. कर्पूरी जी ने कभी भी घोटाला करने की सोची भी नहीं थी. वे ईमानदार नेता थे. लालूजी कभी कर्पूरी जी के करीबी नहीं रहे. लालू प्रसाद यादव का जिस तरह आचरण है, कर्पूरी ठाकुर हमेशा उसके विरोधी रहे हैं. कर्पूरी जी के विचारधारा पर लालू प्रसाद यादव चलते तो भ्रष्टाचार और घोटाला नहीं करते.
वहीं, राजद नेता और बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री रामचंद्र पूर्वे ने कहा, बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सोच को विस्तारित करने में किसी एक व्यक्ति का योगदान है तो वह लालू प्रसाद यादव का है. कर्पूरी जी के अंतिम समय में कोई व्यक्ति रहने का काम किया तो वह हैं लालू प्रसाद यादव. लालू प्रसाद यादव को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि उनकी गोद में कर्पूरी जी ने प्राण त्यागे. यह विचार उन पार्टियों का क्यों नहीं मिला, इसलिए कर्पूरी ठाकुर के असली राजनीतिक वारिस लालू यादव हैं.
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कांग्रेस विधायक प्रतिमा कुमारी ने कहा, जिनको कर्पूरी ठाकुर की सोच, उनके फॉलोवर्स, उनकी विचारधारा से कोई लगाव नहीं है, वैसे लोग उनकी जयंती और पुण्यतिथि मनाकर टीआरपी बटोरना चाहते हैं. महापुरुषों की जयंती मनाई जानी चाहिए. हमारे कांग्रेस में हर महीने कई महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है लेकिन कांग्रेस इसका राजनीतिक लाभ नहीं उठाना चाहती. दूसरी ओर, भाजपा और अन्य दल जयंती मनाकर इसका फायदा उठाना चाहते हैं.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजनीतिक पार्टियां कर्पूरी ठाकुर को इतनी अहमियत क्यों दे रही हैं, जबकि बिहार में नाई जाति की आबादी 2 प्रतिशत से भी कम है. उस समाज के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत के लिए इतनी हायतौबा उनके निधन के इतने साल बाद क्यों मच रही है? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उनकी पहचान अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के सबसे बड़े नेता की बन गई है. छोटी-छोटी आबादी में बंटी विभिन्न जाति समूहों में 100 से ज्यादा जातियां शामिल हैं.
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2005 में नीतीश कुमार को पहली बार बहुमत से मुख्यमंत्री बनाने में इस समूह का अहम योगदान रहा है. इस वजह से देखें तो यह समूह अब बिहार में राजनीतिक तौर पर बेहद अहम बन गया है. हर दल इस वोट बैंक को अपने खेमे में करना चाहता है. 2025 का विधानसभा चुनाव एनडीए और महागठबंधन इसी समीकरण को साधकर जीतना चाहते हैं. इसीलिए सभी दल खुद को स्व. कर्पूरी ठाकुर का हिमायती बता रहे हैं.