Bihar Chunav 2025: कांग्रेस के लिए 2029 से पहले सहयोगियों की जरूरत नहीं के बराबर है. खासतौर से तब, जब सारे सहयोगी एक सुर में यह बोल रहे हैं कि इंडिया ब्लॉक लोकसभा चुनाव के लिए बना था. यह बात कांग्रेस भी बोल सकती है कि राज्यों के चुनाव में इंडिया ब्लॉक का कोई मतलब नहीं है, लेकिन कांग्रेस क्या इतनी हिम्मत दिखा पाएगी?
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कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) 18 दिनों के भीतर दूसरी बार बिहार के दौरे पर आने वाले हैं. पिछले महीने की 18 तारीख को वे पटना आए थे और अब एक बार फिर 5 फरवरी को वे पटना आ रहे हैं. कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) ने बताया है कि उनके दौरे की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. राहुल गांधी के पटना दौरे को लेकर सड़कों को राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पोस्टर से पाटने की तैयारी की जा रही है. अब सवाल यह है कि राहुल गांधी 18 दिनों के भीतर दूसरी बार बिहार क्यों आ रहे हैं? यह तो जगजाहिर है कि दिल्ली के बाद इस साल केवल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है और दिल्ली चुनाव बीतते ही बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) के लिए सभी दलों की कसरत शुरू हो जाएगी. कुछ जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी चुनावी कसरत और राजद से संबंधों को मजबूत करने की दिशा में अहम योगदान दे सकते हैं. फिर भी एक सवाल यह है कि एक तरफ लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस को आंखें दिखा रहे हैं तो फिर राहुल गांधी किस तरह कांग्रेस और राजद के संबंधों में गर्मजोशी ला सकते हैं?
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कुछ दिनों पहले लालू प्रसाद यादव ने इंडिया ब्लॉक की कमान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को देने की पैरवी की थी. उन्होंने यह भी कहा था कि अगर ऐसा होता है तो इससे कांग्रेस को परेशान नहीं होना चाहिए. उसके बाद तेजस्वी यादव ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में खुलकर आम आदमी पार्टी का पक्ष लिया और वहां चुनाव में राजद का कोई प्रत्याशी भी नहीं उतारा. इस तरह राजद के शीर्ष नेताओं लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को एक तरह से आंख दिखाने का काम किया है. अब सवाल यह है कि कांग्रेस इसको किस तरह ले रही है?
जिस तरह लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को उसकी औकात दिखाई, उसी तरह राहुल गांधी ने पिछली बार के पटना दौरे में जातिगत जनगणना को फर्जी करार दे दिया था. जबकि उसी जातीय जनगणना को तेजस्वी यादव अपनी उपलब्धि बताते हैं. हालांकि राजद नेता और प्रवक्ता मनोज झा ने इसका दोष मीडिया पर फोड़ते हुए कहा था कि राहुल गांधी की बातों को सही तरह से प्रस्तुत नहीं किया गया और उनके कहने का आशय यह नहीं था. जाहिर है कि राहुल गांधी ने अपने पूरे होशोहवास में यह बयान दिया था और कांग्रेस ने आज तक उसका खंडन भी नहीं किया है.
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तो क्या राहुल गांधी जैसे को तैसा वाला जवाब देने की मुद्रा में आ गए हैं. हालांकि पिछले दौरे में राहुल गांधी से मिलने तेजस्वी यादव गए थे और वहां उन्होंने राबड़ी आवास आने का निमंत्रण दिया था. राहुल गांधी वहां गए भी थे और बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया गया था. फिर भी सवाल उठता है कि क्या राजद को लेकर कांग्रेस सहज है और क्या लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के बयानों को कांग्रेस ने नजरंदाज कर दिया है. लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को तो जो बोलना था, बोल चुके. अब बारी राहुल गांधी की है. अब उन पर कांग्रेस की लाइन और लेंथ तय करने की जिम्मेदारी है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस अलग थलग पड़ गई और इंडिया ब्लॉक का कोई भी दल कांग्रेस को सपोर्ट करता नहीं दिखा, ऐसे में राहुल गांधी पर जिम्मेदारी आन पड़ी है कि वह लॉन्ग टर्म के लिए कांग्रेस की लाइन और लेंथ तय करें. कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक की जरूरत अब केवल 2029 के लोकसभा चुनाव में होगी. गठबंधन के सभी दल इस बात को भलीभांति जानते हैं. इस बीच में विधानसभा के जितने चुनाव होंगे, वहां सहयोगी दलों का रसूख तय होगा. कुछ राज्यों में कांग्रेस की भी अग्निपरीक्षा होगी. कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि गुजरात को छोड़कर कोई ऐसा राज्य नहीं है, जहां पर किसी तीसरे दल की गुंजाइश है. पश्चिम बंगाल इसमें अपवाद हो सकता है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस इंडिया ब्लॉक का हिस्सा ही नहीं है.
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तमिलनाडु में कांग्रेस अपने सहयोगी डीएमके के भरोसे है तो असम में उसे बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ की जरूरत हो सकती है. कांग्रेस की दिक्कत यह है कि उसके वोट के लुटेरे खुद उसके साथी दल ही हैं. जहां भी कांग्रेस गठबंधन करती है, सहयोगी दल उसका वोट उड़ा ले जाते हैं और वह खुद दोयम दर्जे की पार्टी बनकर रह जाती है. कांग्रेस दिल्ली और पंजाब गंवा चुकी है. गुजरात में भाजपा से उसका सीधा मुकाबला है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी ज्यादातर सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की स्थिति में आ गई है. जाहिर सी बात है कि आम आदमी पार्टी गुजरात में कांग्रेस के वोटबैंक पर डाका डाल रही है. और जिन राज्यों में वह सीधे सीधे भाजपा के सामने फाइट में है, वहां वह कमजोर पड़ जाती है. हालांकि हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्य इसके अपवाद हैं.
मतलब यह कि 2029 से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, वहां कांग्रेस को खोने के लिए कुछ भी नहीं है. केवल वह असम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में है. इन राज्यों में से असम को छोड़कर उसे किसी राज्य में सहयोगी दल की जरूरत नहीं पड़ने वाली. तो वह क्षेत्रीय दलों जैसे बिहार में राजद, यूपी में अखिलेश यादव, दिल्ली, पंजाब और गुजरात में अरविंद केजरीवाल से नाता क्यों रखे, जो उसी के वोटबैंक पर गिद्धदृष्टि जमाए बैठे हैं.
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बिहार में अभी राजद को कांग्रेस की जरूरत है. यूपी में अखिलेश यादव को कांग्रेस की जरूरत है, लेकिन ये दल दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आंख दिखा चुके हैं. तो फिर कांग्रेस को क्या पड़ी है कि वह बिहार में राजद को मजबूत बनाने का काम करे और क्यों करे. एक बात यह भी है कि अगर इन राज्यों में कांग्रेस सहयोगी दलों का साथ नहीं देगी तो क्या 2029 के लोकसभा चुनाव में ये सभी दल कांग्रेस का साथ देंगे? तो सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस केवल लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल करने के लिए राज्यों में खुद की बलि दे रही है?
जब किसी भी राज्य में कांग्रेस बचेगी ही नहीं तो वह लोकसभा चुनाव में कैसे सफल होगी? अगर कांग्रेस अभी से एकला चलो की नीति अपनाती है तो हो सकता है कि शुरुआत में उसे सफलता न मिले, लेकिन राज्यों में उसके मायूस पड़े कार्यकर्ता फिर से सक्रिय हो सकते हैं और इससे कांग्रेस को नई ऊर्जा मिल सकती है. अगर कांग्रेस यह रास्ता अपनाती है तो भले ही 2029 में न सही, लेकिन 2034 में वह मजबूती से टक्कर देने की स्थिति में आ सकती है. फैसला कांग्रेस को करना है.